जड़ी-बूटी की खेती से राजस्थान का किसान बना 'करोबारी', विदेशों में मिली पहचान
राकेश ने एक स्वयं सहायता समूह ‛मारवाड़ औषधीय पादप स्वयं सहायता समूह’ बनाया हुआ है. इस समूह ने 2017 में 40 मीट्रिक टन सरपंखा ड्रग कंपनी को बेचकर 5 से 6 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफ़ा कमाया.
राकेश चौधरी राजस्थान की कुचामन सिटी के राजपुरा गांव में रहने वाले हैं. (फोटो: जी बिजनेस)
राकेश चौधरी राजस्थान की कुचामन सिटी के राजपुरा गांव में रहने वाले हैं. (फोटो: जी बिजनेस)
राजस्थान की कुचामन सिटी के राजपुरा गांव में रहने वाले राकेश चौधरी एक बिरले युवा किसान हैं, जो जड़ी-बूटी की खेती से न केवल अच्छी कमाई कर रहे हैं, बल्कि दाम के साथ-साथ नाम भी कमा रहे हैं. आलम ये है कि आज रकेश चौधरी अन्य किसानों को जड़ी-बूटी की खेती गुर बताने के लिए देश से बाहर भी जाते हैं. उनकी इस कामयाबी पर केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने उन्हें नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड में सदस्य भी बनाया है.
राकेश चौधरी राजपुरा गांव के रहने वाले हैं. वह बताते हैं कि घर में खेतीबाड़ी होती थी. इसलिए उनका खेती के तरफ शुरू से ही रुझान था, लेकिन शुरू में शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया. उन्होंने बीएससी और बीएड की तालीम हासिल की है.
राकेश बताते हैं कि जब वह पढ़ाई कर रहे थे, तब वे डॉ. गोपाल चौधरी से मिले थे. गोपाल किसानों को औषधीय पौधों की खेती के लिए जागरुक करते हैं, सरकारी अनुदान भी दिलवाते हैं. डॉ. गोपाल चौधरी की बातों से प्रभावित होकर राकेश चौधरी ने जयपुर स्थित मेडिसिनल प्लांट बोर्ड में अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया. राकेश ने अपने साथ-साथ अपने साथी किसानों का भी रजिस्ट्रेशन वहां करा दिया.
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शुरू में लगा झटका
राकेश बताते हैं कि उन्होंने 2005 में औषधीय पौधों की खेती शुरू की. लेकिन अभी तक उन्हें इसका ठोस ज्ञान नहीं था. जानकारी की कमी के कारण उन्होंने अपने खेतों में कलिहारी, सफेद मूसली और स्टीविया लगा दिया. राकेश बताते हैं कि ये तीनों ही चीजें उनके इलाके में नहीं उगती हैं, लेकिन उन्होंने वे ही फसलें यहां लगा दीं. अपनी पहली ही परियोजना में वे फसलें चयनित कीं, जो हमारे स्थानीय क्लाइमेट के विरुद्ध थीं. और नतीजा ये रहा कि सारी की सारी फसलें चौपट हो गईं, घोर निराशा हाथ लगी.
बड़े मुनाफे का स्वाद
इस झटके के बाद वे कृषि वैज्ञानिकों से मिले. कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि उनके इलाके में मुलैठी की अच्छी पैदावार हो सकती है और इसमें मुनाफा भी काफी ज्यादा है. पूरी जानकारी हासिल करने के बाद उन्होंने अपने खेतों में मुलैठी की खेती की. वैज्ञानिक तरीके से खेती की और नतीजा ये रहा कि खूब फसल हुई. वैज्ञानिकों की देखरेख में मुलैठी की कटाई और प्रोसेसिंग की और उसे बाजार में बेचा.
राकेश ने बताया कि वह अपने इलाके के ऐसे पहले किसान थे, जिसने खेती से बड़े मुनाफे का स्वाद चखा. क्योंकि खेती से किसान केवल रोटी तो खा सकते हैं, मुनाफा नहीं कमा सकते. लेकिन राकेश ने इस मिथ्या को तोड़ा.
मार्केट बनाने में दिक्कत
इसके बाद राकेश चौधरी ने पूरा मन बना लिया कि अब वह पूरी तरह से औषधीय पौधों की खेती करेंगे और अपने अन्य साथियों को भी करवाएंगे. उन्होंने प्लान तैयार किया कि किसानों की फसलों को खरीदकर आगे फार्मेसियों को बेचेंगे. इसके लिए उन्होंने सबसे पहला फोकस ग्वार पाठे यानी एलोवेरा की खेती पर किया. उन्होंने आसपास के गांवों में घूम-घूम कर 62 किसानों को अपने से जोड़ा और उन्हें एलोवेरा की खेती के लिए प्रोत्साहित किया. इसके लिए कृषि विभाग द्वारा उन्हें अनुदान भी दिया गया. कुछ समय बाद उनकी एलोवेरा की फसल तैयार थी, लेकिन इसे बेचा कैसे जाए, यह समस्या उनके सामने थी. उन्होंने उत्तर प्रदेश के छुटमलपुर के मनीष मित्तल से अपनी और अपने साथियों की फसल का सौदा किया.
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प्रोसेसिंग यूनिट तैयार की
इस तरह उन्हें एक राह मिली और वे इस राह पर आगे बढ़ निकले. ग्वारपाठे की सप्लाई के दौरान बॉम्बे की एक पार्टी सम्पर्क में आई. उस पार्टी को वह रोजना एक ट्रक अच्छी क्वालिटी का एलोवेरा सप्लाई करने लगे. इस पार्टी ने उनके एलोवेरा की क्वालिटी देख उनके गांव में ही प्रोसेसिंग यूनिट लगाने का प्रस्ताव रख दिया. इस तरह उन्हें एक किसान से एक कारोबारी बनने का मौका मिला. इस तरह उन्होंने अपने ही गांव की 90 महिला और 12 पुरुषों को रोजगार दिया.
इसके बाद राकेश ने आंवले की खेती और उसकी प्रोसेसिंग का प्लान तैयार किया. इसके लिए उन्होंने बाबा रामदेव जी की दिव्य योग फार्मेसी और पतंजलि आयुर्वेद के संपर्क किया और उनको भी माल सप्लाई किया पतंजलि के अलावा राकेश ने हिमालय, एम्ब्रोसिया, गुरुकुल फार्मेसी में भी पैठ बनाकर उन्हें माल सप्लाई किया.
250 परिवारों की कमाई बढ़ी
आज 250 किसान परिवार तो सीधे तौर पर राकेश से जुड़े हुए हैं. राजस्थान के 11 शुष्क जिलों के लगभग सभी किसानों का अच्छा खासा नेटवर्क विकसित हो चुका है जो औषधीय पौधों की खेती करते हैं. पारंपरिक खेती में 2 फसलों में सारे खर्चे निकाल कर किसान को 25000 रुपये से ज्यादा का लाभ नहीं मिल पाता, जबकि एक हेक्टेयर में ग्वारपाठे की खेती से ही किसान को आज 2 से ढाई लाख रुपयों का शुद्ध मुनाफ़ा हो रहा है.
GPS तकनीक से खेती
राकेश चौधरी इस समय अश्वगंधा, ग्वारपाठा, गोखरू बड़ा, छोटा गोखरू, बड़ी कंटकारी, काकनाशा (बिच्छूफ़ल), अरडू, नीम, सहजन, तुलसी, श्यामा तुलसी, शतावर, भूमि आंवला, गूगल, सरपूंखा (धमासा) आदि की खेती कर रहे हैं. सरपूंखा (धमासा) के लिए तो देश की नामीगिरामी ड्रग कंपनी ने 3 साल का अग्रीमेंट तक कर रखा है. राकेश गुड एग्रीकल्चर कलेक्शन प्रेक्टिस जिसे जीएसीपी तकनीक भी कहा जाता है, के नियमों के तहत कार्य करते हैं.
उपलब्धियां
राकेश ने एक स्वयं सहायता समूह ‛मारवाड़ औषधीय पादप स्वयं सहायता समूह’ बनाया हुआ है. इस समूह ने 2017 में 40 मीट्रिक टन सरपंखा ड्रग कंपनी को बेचकर 5 से 6 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफ़ा कमाया. राकेश के बड़े भाई राजेश की ‛राज हर्बल बायोटेक’ने 2016-17 में 1 करोड़ रुपये का कारोबार किया. उनकी एक अन्य फर्म ‛विनायक हर्बल’ ने 2017-18 में अब तक 2 करोड़ का कारोबार किया है. वर्ष 2020 तक 50 करोड़ रुपयों के टर्न ओवर का सपना हम किसानों ने संजोया है.
05:24 PM IST