क्या मोदी के चाणक्य की चतुरता कश्मीर में खरी उतर पाएगी, मिलेगी आतंक से मुक्ति?
कश्मीर की धरती पर गृह मंत्री बनने के बाद अमित शाह के ये पहले कदम हैं. कंधे पर जिम्मेदारी बड़ी है. दशकों से सुलगते कश्मीर के सवालों को सुशासन से शांत करना है.
अमित शाह के सामने कश्मीर मुद्दे पर चुनौतियां अब भी कायम हैं.
अमित शाह के सामने कश्मीर मुद्दे पर चुनौतियां अब भी कायम हैं.
कश्मीर की धरती पर गृह मंत्री बनने के बाद अमित शाह के ये पहले कदम हैं. कंधे पर जिम्मेदारी बड़ी है. दशकों से सुलगते कश्मीर के सवालों को सुशासन से शांत करना है. साथ है प्रचंड बहुमत और दबाव है जनआकांक्षाओं का. क्या इस बार कश्मीर की समस्या का ठोस उपाए निकलेगा? क्या इस बार कश्मीर धरती के स्वर्ग का तमगा दोबारा हासिल करेगा? क्या घाटी से आतंक का समूल नाश हो पाएगा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो अमित शाह के दिमाग में अगले दो दिनों तक कौंधते रहेंगे. अमित शाह को वो करके दिखाना है, जो आज तक कोई गृहमंत्री नहीं कर पाया.
यूं तो काम संभालते ही मोदी के इस चाणक्य ने कश्मीर की चुनौती पर काम करना शुरू कर दिया था लेकिन उनका मौजूदा दौरा असल परीक्षा होगी. लोगों के जहन में यूं तो सवाल 370 और 35 ए को लेकर भी हैं लेकिन सबसे ज्यादा नजर होगी हुर्रियत को लेकर गृहमंत्री के नजरिए पर. हुर्रियत द्वारा बातचीत की पेशकश के बाद घाटी में हवाओं का रुख कुछ बदला बदला सा भी है.
#LIVE | #DeshKiBaat में देखिए क्या शाह'नीति' से मिलेगी आतंक से मुक्ति? #JammuKashmir @AnilSinghviZEE https://t.co/o9c7MxUPjz
— Zee Business (@ZeeBusiness) June 26, 2019
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इस बारे में बीजेपी नेता शाहनवाज़ हुसैन ने कहा कि 'अमित शाह जी के दरवाजे सबके लिए खुले हैं.' वैसे सरकार इस बात को अच्छी तरह जानती है कि हुर्रियत घुटनों पर क्यों आई है. ज्यादातर हुर्रियत नेता या तो जेल में हैं या फिर नजरबंद हैं. ऊपर से ईडी और एनआईए टेरर फंडिंग और आतंक के तार जोड़ने में लगी हुई है. हुर्रियत चारों तरफ से घिरी हुई है. इसलिए उसके पास बातचीत के शिगूफे के अलावा और कोई चारा भी नहीं बचता है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारुक अब्दुल्ला ने कहा, 'अमित शाह गृह मंत्री है. हुर्रियत से बातचीत होती है तो स्वागत है. बहुत दिन से बातचीत नहीं हुई है.' कांग्रेस नेता केटीएस तुलसी का कहना है, 'कश्मीर नए गृह मंत्री का लिटमस टेस्ट होगा. देखते हैं कि बातचीत शुरू होती है या नहीं. दोनों तरफ से शांति बनानी होगी.'
सूत्र भी बताते हैं कि इस दौरे में अमित शाह ऐसा कोई संकेत नहीं देने जा रहे हैं, जिससे ये लगे कि सरकार हुर्रियत से समझौते के स्तर पर आ गई है. वैसे भी मोदी सरकार के बहीखाते में कश्मीर को लेकर कई उपलब्धियां पहले से जुड़ गईं हैं. मोदी सरकार में आतंक पर प्रहारों का नतीजा ये रहा कि अब आतंकियों की नई भर्ती पर लगाम लग चुकी है, जुमे की नमाज के बाद पत्थरबाजी थम चुकी है, अलगाववादियों की सुरक्षा वापस ले ली गई, सभी बड़े अलगाववादी जेल में हैं. अलगावादियों की फंडिंग पर ईडी का शिकंजा कस चुका है, आतंक से तार पर एनआईए की जांच अलग चल रही है.
ऐसे में ये तय है कि सरकार हुर्रियत के साथ समझौता नहीं करेगी. हालांकि अमित शाह ये संकेत जरूर देंगे कि देश की एकता, अखंडता और संविधान के दायरे में जो बातचीत के लिए आगे आना चाहता है, उसके लिए सरकार तत्पर है. इसके बावजूद अमित शाह के सामने कश्मीर मुद्दे पर चुनौतियां अब भी कायम हैं. कश्मीर में शांति बहाली और लोगों में विश्वास जगाना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी.
अनुच्छेद 370 और 35A तो पहले से सरकार के रडार पर हैं. कुल मिलाकर देखने वाली बात ये होगी कि क्या अमित शाह कश्मीर मुद्दे का समाधान निकालने वाले पहले गृह मंत्री बन पाएंगे? क्या मोदी के चाणक्य की चतुरता और कार्यकुशलता कश्मीर के पक्ष में खरी उतर पाएगी? हुर्रियत ने तो घुटने टेक ही दिए है, अब क्या अगला निशाना आतंकवाद के समूल नाश का होगा. कैसे निकालेंगे अमित शाह कश्मीर में शांति की राह. इसी पर है आज देश की बात.
08:07 PM IST