Karvy का साइड इफेक्ट- महंगा होगा मार्जिन फंडिंग के दम पर सौदा, ट्रेडर्स की बढ़ेगी मुश्किल
कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग में गड़बड़ी के बाद बैंकों ने अब ब्रोकर्स को शेयरों के बदले लोन देने पर सख्ती बढ़ा दी है. बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक, बैंकों ने ब्रोकर्स को जो पुराने लोन बांटे हैं, उन्हें भी लौटाने का नोटिस देना शुरू कर दिया है.
कार्वी एपिसोड के बाद ब्रोकिंग कम्यूनिटी की फंडिंग को लेकर बैंकों का भरोसा घटा है.
कार्वी एपिसोड के बाद ब्रोकिंग कम्यूनिटी की फंडिंग को लेकर बैंकों का भरोसा घटा है.
ब्रोकर्स की मार्जिन फंडिंग के दम पर जो ट्रेडर सौदे करते हैं, उनके लिए आने वाले दिनों में लागत बढ़ सकती है. क्योंकि, नकदी की किल्लत की वजह से ब्रोकर्स से मार्जिन फंडिंग के दम पर सौदा करना महंगा हो सकता है. दरअसल, कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग में गड़बड़ी के बाद बैंकों ने अब ब्रोकर्स को शेयरों के बदले लोन देने पर सख्ती बढ़ा दी है. बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक, बैंकों ने ब्रोकर्स को जो पुराने लोन बांटे हैं, उन्हें भी लौटाने का नोटिस देना शुरू कर दिया है.
बैंकों ने नई बैंक गारंटी देनी बंद कर दी है. जबकि मौजूदा बैंक गारंटी को भी खत्म करने की प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं. बड़े और मजबूत ब्रोकर्स से भी दिए गए लोन के बदले ज्यादा संपत्ति गिरवी रखने की मांग की जा रही है. कुछ ब्रोकर्स को जो लोन मंजूर किए जा चुके थे, उसे अब या तो रद्द किया जा रहा है या लोन की लिमिट घटाई जा रही है. बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक, कार्वी की घटना के बाद बैंक ब्रोकर्स से लिखित में ये ले रहे हैं कि गिरवी शेयर उनके ही हैं, न कि निवेशकों के.
कार्वी एपिसोड के बाद ब्रोकिंग कम्यूनिटी की फंडिंग को लेकर बैंकों का भरोसा घटा है. ऐसे में बैंक ब्रोकर्स को लोन बांटकर जोखिम में नहीं फंसना चाहते. हालांकि, इसका ज्यादा असर छोटे ब्रोकर्स पर होगा. क्योंकि, बड़े ब्रोकर्स के पीछे या तो उनकी NBFCs हैं या फिर उनके ही ग्रुप से जुड़े बैंक हैं. यहां से फंडिंग मिलना कठिन नहीं होगा. लेकिन, फंडिंग के लिए बैंकों और NBFCs पर निर्भर रहने वाले ब्रोकर्स के लिए बिज़नेस करना मुश्किल हो जाएगा.
TRENDING NOW
खासकर उन ब्रोकर्स के कामकाज पर ज्यादा मार पड़ेगी, जिनका मुख्य कारोबार मार्जिन फंडिंग था. शेयरों को गिरवी रखकर लोन देने का कारोबार मुख्य तौर पर कुछ निजी बैंकों तक ही सीमित था. सरकारी बैंक इस तरह के लोन प्रोडक्ट नहीं लाते.
कार्वी की घटना से ब्रोकिंग इंडस्ट्री की मुश्किल
- ट्रेडर्स के लिए ब्रोकर्स से मार्जिन फंडिंग महंगा होगा.
- बैंकों की तरफ से ब्रोकर्स के लोन पर सख्ती से संकट बढ़ेगा.
- मार्जिन फंडिंग बिजनेस पर निर्भर ब्रोकर्स पर ज्यादा मार.
- ब्रोकर्स को नए लोन और नई बैंक गारंटी नहीं मिल रही.
- पुराने लोन के लिए भी बैंकों से लोन वापसी का नोटिस.
- बैंकों की बड़े ब्रोकर्स से भी ज्यादा संपत्ति गिरवी रखने की शर्त.
- मंजूर लोन प्रस्ताव या तो रद्द या लिमिट घटाई जा रही.
- कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग की घटना के बाद भरोसा घटा है.
- बड़े के बदले छोटे और मिडल लेवल ब्रोकर्स को दिक्कत.
क्या है कार्वी का मामला
कार्वी पर आरोप है कि उसने ग्राहकों के शेयरों का दुरुपयोग करके लोन लिया था. 22 दिसंबर को इस मामले में सेबी ने NSE की एक जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्वी के खिलाफ ऑर्डर पास किया. ऑर्डर में नए क्लाइंट जोड़ने पर रोक लगा दी गई. साथ ही ग्राहकों के पावर ऑफ अटॉर्नी के इस्तेमाल पर भी रोक लगाई गई. बैंकों ने कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग को शेयरों के बदले में लोन बांटा था. लेकिन, 2 दिसंबर को NSDL ने कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के निजी डीमैट में रखे शेयरों को क्लाइंट के खातों में लौटा दिया.
SEBI के मुताबिक, कार्वी ने निवेशकों के पॉवर ऑफ अटॉर्नी का दुरुपयोग करते हुए शेयरों को अपने खाते में ट्रांसफर कर लिया था. इसके बाद बैंकों को गिरवी रखकर लोन हासिल किया. सेबी ऑर्डर के मुताबिक, 95000 निवेशकों के करीब 2300 करोड़ वैल्यू के शेयरों को बैंकों के पास गिरवी रखा था. बैंकों ने गिरवी शेयरों को निवेशकों के खाते में वापस लौटाने के सेबी के ऑर्डर और NSDL के एक्शन को SAT में चुनौती दी थी. लेकिन, बैंकों को कोई राहत नहीं मिली. SAT ने केस वापस सेबी के पास भेज दिया. सेबी को 12 दिसंबर तक बैंकों की अर्ज़ी पर फैसला देना है.
किसका कितना पैसा कार्वी में फंसा
बजाज फाइनेंस 345 करोड़ रु
ICICI बैंक 642 करोड़ रु
HDFC बैंक 350 करोड़ रु
इंडसइंड बैंक 140 करोड़ रु
08:30 PM IST