स्पोर्ट्स गुड्स इंडस्ट्री का बड़ा हब है मेरठ, लेकिन स्किल्ड कारीगरों की कमी का क्या हो सकता है ऑप्शन
Sports Goods Industry: उत्तर प्रदेश का मेरठ स्पोर्ट्स इंडस्ट्री के लिए एक हब के रूप में काम करता है. लेकिन स्किल्ड कारीगरों की कमी के साथ ही बहुत सारी दुश्वारियों से इन सेक्टर्स को गुजरना पड़ता है.
(Source: PTI)
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Sports Goods Industry: उद्योग के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश की अपनी एक अलग खनक है. 75 ज़िलों में बंटा यूपी. ज़िलों में उद्योग को मिल रहे प्रोत्साहन से राज्य के औद्योगिक परिदृश्य की तस्वीर बदल रही है. राज्य के कुछ ऐसे ज़िले भी हैं जहां के कारीगरों के हुनर ने नई पहचान दिलाई है. उनके जरिए तैयार किए गए उत्पादों की विदेशी बाज़ारों में अच्छी डिमांड भी है. बात मुरादाबाद के हैंडीक्रॉफ्ट्स की हो, चाहे आगरा की लेदर इंडस्ट्री या फिर मेरठ में स्पोर्ट्स गुड्स मैन्युफैक्चरिंग की.
दुनिया भर में खेलकूद के सामान बनाने के क्षेत्र में मेरठ ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. वहीं, स्पोर्ट्स गुड्स मैन्युफैक्चरिंग के सेक्टर से बड़ी संख्या में एमएसएमई जुड़े हुए हैं. इन छोटे मंझोले उद्यमियों ने कड़ी मेहनत के बलबूते स्पोर्ट्स गुड्स मैन्युफैक्चरिंग में एक अलग मुक़ाम हासिल किया है. लेकिन, ग्लोबल स्तर पर बदलते समीकरणों का खासा असर यहां के MSMEs भी देख रहे हैं. रॉ मैटेरियल के मोर्चे से लेकर नए दौर की मैन्युफैक्चरिंग में टेक्नोलॉजी के बढ़ते दायरे से उद्यमी भी क़दम से क़दम मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं. ऐसे में उद्यमियों को सपोर्ट करने के लिए हम हर हफ़्ते एसएमई एक्सप्रेस में नए-नए मुद्दों पर चर्चा करते हैं. इसी कड़ी में इस बार हमने मेरठ क्लस्टर से जुड़े इंडस्ट्री लीडर्स के साथ स्पोर्ट्स गुड्स इंडस्ट्री की चुनौतियों पर मंथन कर नए मौकों का जायज़ा लिया.
वैश्विक अनिश्चितता, बड़े बाज़ारों में मंदी के संकेत
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पैंडेमिक के बाद स्पोर्ट्स इंडस्ट्री बाउंस बैक कर अपने पुराने ढर्रे पर धीरे-धीरे वापिस लौट रही थी. लेकिन वैश्विक अनिश्चितता के चलते कई प्रमुख बाज़ारों में मंदी के संकेत ने उद्यमियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. जानकारों की मुताबिक़ अमेरिका जैसे बड़े बाज़ार में मंदी के संकेत दिख रहे हैं. इंडस्ट्री लीडर्स की मानें तो भुगतान थोड़ा विलंब से हो रहा है. साथ ही ऑर्डर साइकिल फोरकास्ट को लेकर भी चिंताएं हैं.
वहीं, निर्यात की दृष्टि से देखा जाए तो यूएस, यूके और ऑस्ट्रेलिया बड़े बाज़ारों में शामिल हैं. लेकिन स्पोर्ट्स इंडस्ट्री पारंपरिक मार्केट्स से हटकर नए बाज़ारों पर फ़ोकस कर रही है. अंबर आनंद डायरेक्टर, नेल्को स्पोर्ट के मुताबिक़ लैटिन अमेरिका ने भारत से काफ़ी आयात करना शुरू कर दिया है. इसके साथ ही स्पोर्ट्स गुड्स मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री अफ्रीका में भी नए अवसरों को तलाश कर रही है.
स्किल्ड कारीगरों की कमी,जानें इंडस्ट्री का नज़रिया
मेरठ की स्पोर्ट्स गुड्स इंडस्ट्री हाल फ़िलहाल कुशल कारीगरों की कमी से जूझ रही है. ऐसे में इस बिज़नेस से जुड़े उद्यमियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. अंबर आनंद, डायरेक्टर, नेल्को स्पोर्ट के मुताबिक़ इस दौर में ऑटोमेशन एक बेहतर विकल्प है. इंडस्ट्री को इस दिशा में विचार करना चाहिए.
वहीं, खेलकूद के सामान बनाने वाले उद्यमी कारोबार के विस्तार में ज़मीन की अनउपलब्धता से भी परेशान है. इंडस्ट्री ने राज्य सरकार के समक्ष कुछ सुझाव रखें हैं. वहीं, अंबर आनंद का मानना है कि इस समस्या से निपटने के लिए मेरठ में स्पोर्ट्स गुड्स इंडस्ट्री से जुड़े ज़्यादातर बड़े उद्यमी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से शिफ्ट होकर स्वयं के स्तर पर लैंड बैंक बना रहे हैं.
आरएंडडी पर कैसे सपोर्ट की आस?
स्पोर्ट्स गुड्स इंडस्ट्री का प्रमुख हब मेरठ अब नए दौर की मैन्युफैक्चरिंग पर जोर दे रहा है. इस बीच आरएंडडी की अहमियत लगातार बढ़ती जा रही है. लेकिन, उद्यमियों के सामने ये एक
चुनौती बनी हुई है. इससे जुड़े पहलू पर राय रखते हुए राकेश महाजन, डायरेक्टर, बीडीएम ने कहा कि स्पोर्ट्स गुड्स के क्षेत्र में रिसर्च एंड डेवलपमेंट का महत्वपूर्ण रोल है. वहीं, इस सेक्टर में आरएंडडी बहुत कम होने से इंडस्ट्री पिछड़ रही है. ऐसे में सरकार को आरएंडडी के मोर्चे पर उद्यमियों को सपोर्ट करना चाहिए.
एमएसएमई इंडस्ट्री के बदलते स्वरूप पर चर्चा करते हुए महाजन ने कहा कि युवा पीढ़ी का स्टॉर्टअप में काफ़ी रूझान है. लेकिन स्टॉर्टअप की कुछ शर्तें ऐसी हैं जिनको पूरा करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि कमोबेश ऐसी ही कुछ स्थिति गवर्नमेंट ई मार्केटप्लेस (जेईएम पोर्ट्ल) में देखने को मिलती है. जेईएम पोर्ट्ल में तीन वर्ष की बैलेंस शीट मुहैया करानी पड़ती है. महाजन ने कहा कि ऐसे में स्टॉर्टअप शुरू करने वाला व्यक्ति इन शर्तों को कैसे पूरा कर पाएगा.
महाजन के मुताबिक रॉ मैटेरियल के मोर्चे पर इंडस्ट्री दबाव महसूस कर रही है. ऐसे में सरकार को स्पोर्ट्स गुड्स इंडस्ट्री को सपोर्ट करना चाहिए.
ई-कॉमर्स का हाथ, बदलता कारोबार
नए दौर में टेक्नोलॉजी के उपयोग से बिज़नेस के डायमेंशन तेज़ी से बदल रहे हैं. साथ ही उद्यमी टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन पर काफ़ी तवज्जोह दे रहे हैं. अंबर आनंद की माने तो पैंडेमिक के बाद डिजिटल अडॉप्शन ने रफ़्तार पकड़ी है. उन्होंने कहा कि हमने महसूस किया है कि स्पोर्ट्स गुड्स मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में पिछले तीन वर्षों में मेरठ के बाहर से कई नए इंपोर्टर्स आए हैं. नए प्लेयर्स ने डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन की बदौलत बेहद कम समय में तेज़ी से ग्रोथ दर्ज की है. वहीं, आनंद के मुताबिक़ हम लोग ट्रेडिशनल मार्केटिंग के सहारे प्रोडक्ट्स को बेचते हैं. लेकिन, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के ज़रिए नए प्लेयर्स ने बिज़नेस को काफ़ी बढ़ाया है. उन्होंने कहा कि हमें पारंपरिक तौर तरीक़ों से हटकर नए कंसेप्ट को अडॉप्ट करना चाहिए.
इंडौर गेम्स से स्पोर्ट्स इंडस्ट्री को मिला बूस्ट
स्पोर्ट्स इंडस्ट्री दो तरह के गेम्स में बंटी हुई है. इंनडोर स्पोर्ट्स और आउटडोर स्पोर्ट्स. पैंडेमिक के दौरान आउटडोर स्पोर्ट्स में कोई हलचल नहीं हो रही थी. जबकि इंडोर स्पोर्ट्स से
जुड़े प्रोडक्ट्स की मांग में ज़ोरदार इज़ाफ़ा दर्ज हुआ. सुमनेश अग्रवाल, चेयरमैन, आईआईए मेरठ ने कहा कि पैंडेमिक के दौरान कैरमबोर्ड की भारी शॉर्टेज महसूस हुई. उन्होंने कहा कि अगर पूरी इंडस्ट्री की बात करें तो इंडस्ट्री ने कहीं न कहीं चुनितियों के बावजूद अपने स्तर को बरकरार रखा ..अग्रवाल ने कहा कि घरेलू मार्केट में क्रिकेट का कारोबार अब भी प्री कोविड के अपने पुराने स्तर पर नहीं पहुंच पाया है.
08:01 PM IST