24 सालों तक दुनिया की आंखों में धूल झोंकता रहा ये शख्स, और फिर एक दिन लेटर लिखकर कबूला ₹7700 करोड़ का Scam
दुनिया को लगता था कि राजू की कंपनी सत्यम कंप्यूटर्स (satyam computers) कायमाबी की सीढ़ियां चढ़ रही है, लेकिन खुद राजू रामलिंगा ही दीमक बनकर उस सीढ़ी को खोखला करता रहा. नतीजा वही हुआ जो ऐसी हालत में होता है. आखिरकार वो दिन आ गया जब राजू अर्श से फर्श पर आ गिरा.
डिजाइनर शर्ट, हजारों के जूते और करीब 12 लग्जरी कारें. ये ग्लैमरस लाइफ जीने वाला शख्स था राजू रामलिंगा (Raju Ramlinga). ये वही शख्स था, जिसने 24 सालों तक दुनिया की आंखों में धूल झोंकी. उस दौर में युवा राजू जैसा बनना चाहते थे और राजू को भी आए दिन देश-दुनिया से तमाम अवॉर्ड मिलते रहते थे. दुनिया को लगता था कि राजू की कंपनी सत्यम कंप्यूटर्स (satyam computers) कायमाबी की सीढ़ियां चढ़ रही है, लेकिन खुद राजू रामलिंगा ही दीमक बनकर उस सीढ़ी को खोखला करता रहा. नतीजा वही हुआ जो ऐसी हालत में होता है. आखिरकार वो दिन आ गया जब राजू अर्श से फर्श पर आ गिरा. जनवरी 2009 में राजू ने खुद कबूल किया कि 24 सालों से वह अकाउंटिंग फ्रॉड कर रहा था. ये खबर बाहर आते ही उसकी कंपनी सत्यम कंप्यूटर्स के शेयर 180 रुपये से 6.5 रुपये तक गिर गए. Startup Scam की सीरीज में आज हम बात करेंगे लगभग 7000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा के सत्यम घोटाले की, जिसमें निवेशकों के करीब 1400 करोड़ रुपये स्वाहा हो गए.
राजू रामलिंगा पैदा तो किसान परिवार में हुआ था, लेकिन उसका दिमाग बहुत तेज था. राजू ने विजयवाड़ा के लॉयल कॉलेज से बीकॉम किया था और अमेरिका की ओहियो यूनिवर्सिटी से एमबीए किया था. शुरुआती दिनों में राजू ने पिता की मदद से रेस्टोरेंट का बिजनेस किया, लेकिन वो नहीं चला. टेक्सटाइल के बिजनेस में भी मुंह की खानी पड़ी और फिर रियल एस्टेट में भी किस्मत आजमाई, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी. देखा जाए तो राजू ने रोटी-कपड़ा-मकान, तीनों के बिजनेस में हाथ आजमा के देख लिया था, लेकिन बात नहीं बनी. 1985-86 के दौर में राजू ने देखा कि आईटी इंडस्ट्री में आने वाले सालों में काफी स्कोप है तो उसने 1987 में 10 इंजीनियर्स को साथ लेकर और अपने भाई बी रामा राजू के साथ मिलकर सत्यम कंप्यूटर्स की शुरुआत की.
दिन-दूनी और रात-चौगुनी हुई तरक्की
सत्यम की शुरुआत बहुत ही शानदार रही थी और मई 1992 में ही ये कंपनी भारत में शेयर बाजार में लिस्ट हो गई. ये कंपनी न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज तक पर 2001 में लिस्ट हो गई थी. फॉर्च्यून 500 की 150 से भी ज्यादा कंपनियां सत्यम कंप्यूटर्स की क्लाइंट थीं. इस कंपनी को सबसे बड़ा मौका मिला था Y2K Bug के दौरान, जिसकी वजह से दुनिया भर के कंप्यूटर क्रैश हो सकते थे. बता दें कि उस वक्त तक कंप्यूटर्स ऐसे डिजाइन थे कि वह साल के आखिरी दो अंक उठाते थे, ताकि कंप्यूटर में स्पेस बचाया जा सके.
TRENDING NOW
FD पर Tax नहीं लगने देते हैं ये 2 फॉर्म! निवेश किया है तो समझ लें इनको कब और कैसे करते हैं इस्तेमाल
8th Pay Commission: केंद्रीय कर्मचारियों के लिए ताजा अपडेट, खुद सरकार की तरफ से आया ये पैगाम! जानिए क्या मिला इशारा
ऐसे में अगर 1999 लिखना है तो कंप्यूटर में 99 लिखा जाता था, लेकिन जब 2000 आ रहा था तो डर ये पैदा हो गया कि इसे कंप्यूटर क्या पढ़ेगा. 1900 हो या 2000 या ऐसी ही कोई दूसरी संख्या, सबके आखिर में दो जीरो यानी 00 हैं. ऐसे में दुनिया भर के कंप्यूटर क्रैश होने का खतरा मंडराने लगा. उस वक्त भारत की आईटी कंपनियों ने नए कोड्स लिखने में अहम भूमिका निभाई थी और इसी दौरान सत्यम को भी खूब काम मिला था. हालांकि, बाद में काम कम मिलने लगा, इसलिए राजू अपनी रियल एस्टेट की कंपनियों के जरिए हेरा-फेरी करने लगा.
मन में पहले दिन से थी चोरी, इसीलिए बनाई थी मेटियस
अगर किसी के मन में चोरी होती है तो वह पहले दिन से ही उसकी तैयारी करता था. हर मुमकिन कोशिश करता है कि पकड़ा ना जाए. राजू ने भी 1988 में ही एक कंपनी बनाई मेटियस (Maytas), जो असल में सत्यम का उल्टा है. बेशक राजू का प्लान यही था कि सीधे काम सत्यम में होंगे और उल्टे कामों के लिए मदद ली जाएगी मेटियस की. इसमें भी उसने दो कंपनियां बनाईं, पहली मेटियस इंफ्रा और दूसरी मेटियस रियल एस्टेट. उस वक्त हैदराबाद में मेट्रो प्रोजेक्ट आने की बात चल रही थी और सत्यम को अंदर की खबर मिल गई थी कि मेट्रो का रूट क्या रहेगा. इसके चलते राजू ने अपनी इन दो कंपनियों की मदद से मेट्रो के रूट की बहुत सारी प्रॉपर्टी और जमीनें खरीदनी शुरू कर दीं. राजू का प्लान था कि मेट्रो आते ही जमीन के भाव कई गुना बढ़ जाएंगे और उसे मोटा मुनाफा होगा. लेकिन यहां सवाल ये उठता है कि आखिर राजू के पास इन जमीनों को खरीदने के लिए पैसे आ कहां से रहे थे?
शेयर बेचे, गिरवी रखे, इनसाइडर ट्रेडिंग की...
प्रॉपर्टी खरीदने के लिए जरूरत होती है पैसों की. ऐसे में राजू ने दिमाग लगाया कि कंपनी के शेयर गिरवी रखकर बैंक से पैसे लिए जा सकते हैं. साथ ही अपनी प्रमोटर्स होल्डिंग बेचकर भी पैसे जुटाए जा सकते हैं. हालांकि, इसके लिए सबसे पहले ये जरूरी था कि सत्यम कंप्यूटर्स के शेयर्स की कीमत अच्छी होनी चाहिए. ऐसे में राजू ने सत्यम की बैलेंस शीट के साथ छेड़-छाड़ शुरू कर दी. कॉमर्स की पढ़ाई का गलत इस्तेमाल करते हुए राजू ने अकाउंटिंग फ्रॉड करना शुरू कर दिया. वह कंपनी की कमाई से लेकर मुनाफे तक को कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने लगा.
अपने काले कारनामों को अंजाम देने के लिए राजू ने करीब 342 फर्जी कंपनियां तक बनाई थीं, जिनके जरिए वह पैसों का सर्कुलेशन और ट्रांजेक्शन किया करता था. इन फर्जी कंपनियों में उसने अपने चौकीदार, माली, सिक्योरिटी गार्ड जैसे लोगों को डारेक्टर बनाया हुआ था. दुनिया को लगने लगा कि कंपनी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही है और इसकी वजह से उसके शेयरों के भाव तेजी से चढ़ने लगे. राजू को इसी मौके का इंजतार था, उसने अपने शेयर बेचे और बहुत सारे शेयर गिरवी रखे और खूब सारे पैसे जुटाए. आरोप तो यहां तक है कि राजू अपने ही शेयरों में इनसाइडर ट्रेडिंग तक करता था और सिर्फ इसी तरीके से उसने करीब 1200 करोड़ रुपये की कमाई की थी. राजू इन सारे पैसों का इस्तेमाल मेटियस के जरिए रियल एस्टेट में जमीन और प्रॉपर्टी खरीदने में करने लगा.
2008 की मंदी ने खोल के रख दी पोल
राजू ने सोचा था कि जब जमीनों के दाम कई गुना हो जाएंगे तो उसे बेचकर मुनाफा कमा लेंगे और उस मुनाफे से सत्यम में हेरा-फेरी की वजह से आए गैप को खत्म कर दिया जाएगा. लेकिन 2008 की मंदी ने सारा खेल चौपट कर दिया, प्रॉपर्टी के रेट धड़ाम हो गए और इसी के साथ राजू के सपने चकनाचूर हो गए. जो प्रॉपर्टी राजू रामलिंगा ने खरीदी थीं, उनकी कीमत आधी से भी कम रह गई. ऐसे में सत्यम की हेरा-फेरी को मैनेज करने के लिए राजू ने एक नई तरकीब लगाई. इसके तहत सत्यम कंपनी मेटियस इंफ्रा और मेटियस रियल एस्टेट का अधिग्रहण करने वाली थी. इसके लिए बोर्ड ऑफ डारेक्टर्स ने मंजूरी भी दे दी. हालांकि, निवेशकों ने इस बात पर विरोध जता दिया और यह अधिग्रहण रद्द करना पड़ा.
लेटर लिखकर कबूला जुर्म
जब राजू रामलिंगा को लगा कि वह चारों तरफ से घिर चुका है तो उसने खुद ही अपना जुर्म कबूल कर लिया. 7 जनवरी 2009 को राजू ने एक लेटर लिखा, जिसमें उसने बताया कि वह पिछले 24 सालों से सत्यम कंप्यूटर्स में अकाउंटिंग फ्रॉड कर रहा था. राजू ने खुद ही बताया कि कैसे शुरुआत में खराब नतीजों को मैनेज करते-करते हालात हाथ से निकल गए. राजू ने कहा था- 'यह किसी टाइगर की सवारी करने जैसा था, जिसे ये नहीं पता कि बिना उसका निवाला बने उसके ऊपर से कैसे उतरे.' नतीजा ये हुआ कि करीब 180 रुपये के लेवल पर जा पहुंचा शेयर महज दो दिनों में 6.5 रुपये तक गिर गया. इस मामले में राजू रामलिंगा और उसके भाई को 7 साल की जेल की सजा सुनाई गई और साथ ही उन पर करीब 5.5 करोड़ का जुर्माना भी लगाया गया.
ये कंपनी उस वक्त देश की टॉप कंपनियों में से एक थी तो सरकार ने इसे डूबने से बचाने का फैसला किया और इसकी नीलामी हुई. नीलामी में टेक महिंद्रा जीत गई और उसने अप्रैल 2009 में सत्यम कंप्यूटर्स का अधिग्रहण कर लिया. इस मामले में कई बड़े सवाल उठे कि आखिर ऑडिट फर्म ने ये मामला इतने सालों तक पकड़ा क्यों नहीं. 10 जनवरी 2018 को ऑडिटिंग फर्म Price Waterhouse (PW) पर सेबी ने भारत की किसी भी लिस्टेड कंपनी की ऑडिटिंग करने पर दो साल का बैन लगा दिया. इसी ऑडिटिंग फर्म ने सत्यम कंप्यूटर्स का ऑडिट किया था और उस पर भी आरोप लगा कि उसने कंपनी के साथ मिलीभगत की है.
09:42 AM IST