Ponzi Scheme: ये है पोंजी स्कीम का 'बाप', हिला दिया था अमेरिका का बैंकिंग सिस्टम, नौकरी के दौरान मिला था भयानक आइडिया
इस तरह के फ्रॉड का नाम पोंजी स्कीम उस शख्स के नाम पर पड़ा, जिसने पहली बार इसे अंजाम दिया था. इस शख्स का नाम था चार्ल्स पोंजी (Charles Ponzi), जिसने करीब 100 साल पहले अपने आप में एक अनोखा स्कैम किया था.
आप आए दिन पोंजी स्कीम (Ponzi Scheme) के बारे में सुनते रहते होंगे. सहारा (Sahara) के सुब्रत रॉय (Subrata Roy) ने भी पोंजी स्कीम का ही इस्तेमाल किया था और लाखों लोगों के साथ फ्रॉड (Fraud) किया था. शारधा स्कैम का आधार भी पोंजी स्कीम ही थी. पोंजी स्कीम की वजह से कई लोगों को तो इतना तगड़ा नुकसान हो गया कि उन्होंने आत्महत्या तक कर ली. ऐसे में एक बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर इसे पोंजी स्कीम कहते क्यों हैं? ये काम कैसे करती है और किसके नाम पर इसे पोंजी स्कीम कहा जाता है.
चार्ल्स पोंजी के नाम पर रखा ये नाम
इस तरह के फ्रॉड का नाम पोंजी स्कीम उस शख्स के नाम पर पड़ा, जिसने पहली बार इसे अंजाम दिया था. इस शख्स का नाम था चार्ल्स पोंजी (Charles Ponzi), जिसने करीब 100 साल पहले अपने आप में एक अनोखा स्कैम किया था. मार्च 1882 में इटली में जन्मे चार्ल्स को पोंजी स्कीम का 'बाप' (Father of Ponzi Scheme) भी कहा जाता है. स्टार्टअप शब्द तो अब लोकप्रिय हुआ है, लेकिन पोंजी स्कीम भी स्कैम की दुनिया का एक स्टार्टअप ही था. ये स्कैम करने का एक इनोविटव आइडिया था, जो इतना लोकप्रिय हुआ कि आज तक ठग उसे कॉपी कर रहे हैं और किसी ना किसी बदलाव के साथ फ्रॉड को अंजाम दे रहे हैं.
अमेरिका से शुरू हुई चार्ल्स पोंजी की कहानी
इस कहानी की शुरुआत हुई थी 1903 में, जब इटली में रहने वाला चार्ल्स पोंजी अमेरिका गया. उसने जुएं और पार्टी अपने अपने सारे पैसे गंवा दिए. तेज दिमाग होने के चलते अमेरिका पहुंचने के कुछ ही समय बाद उसने अंग्रेजी बोलना सीख लिया और एक के बाद एक कई नौकरियां भी कीं. हालांकि, चोरी और फ्रॉड के चलते उसे हर जगह से निकाल दिया गया. जब वहां दाल नहीं गली तो 1907 में वह कनाडा चला गया.
कनाडा में उसे मिला पोंजी स्कीम का आइडिया
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कनाडा में पोंजी ने एक बैंक (Banco Zarossi) में नौकरी की. उसे अंग्रेजी, इटैलियन और फ्रेंच आती थी, इसलिए नौकरी आसानी से मिली. चार्ल्स पोंजी को इसी बैंक से पोंजी स्कीम का आइडिया मिला. Banco Zarossi उन दिनों निवेशकों को 6 फीसदी ब्याज देता था, जबकि अन्य बैंकों में सिर्फ 2-3 फीसदी ब्याज मिल रहा था. अब सवाल ये है कि आखिर ये बैंक ज्यादा ब्याज कैसे दे पा रहा था? दरअसल, यह बैंक सिर्फ निवेशकों से पैसे लिए जा रहा था, जिसे पुराने निवेशकों को रिटर्न की तरह दे रहा था. चार्ल्स पोंजी ने ये सब देखा तो उसे भी ऐसा ही फ्रॉड का आइडिया आ गया. एक दिन बैंक की पोल खुल गई और बैंक का मालिक Louis Zarossi लोगों के पैसे लेकर मैक्सिको भाग गया.
कई बार खाई जेल की हवा और एक दिन...
उसके बाद चार्ल्स ने कई फर्जीवाड़े करने की कोशिश की, लेकिन हर बार उसे जेल की हवा खानी पड़ी. एक माइनिंग कंपनी में नर्सिंग की जॉब भी की, लेकिन वहां से भी मुंह की खानी पड़ी. इसके बाद उसने इंटरनेशनल ट्रेड मैगजीन का बिजनेस करने की सोची. इसमें उसे फायदा तो नहीं हुआ, लेकिन स्पेन की एक कंपनी का ऐसा लेटर मिला, जिसने सब कुछ बदल दिया. उस पर लिखा था इंटरनेशनल रिप्लाई कूपन यानी आईआरसी. यहीं से चार्ल्स के अच्छे दिन शुरू हो गए.
आईआरसी की मदद से शुरू किया स्टार्टअप
उस जमाने में दो देशों के बीच लेटर से बात करने के लिए आईआरसी का इस्तेमाल होता था. कंपनियां अपने लेटर के साथ आईआरसी भेजती थीं, ताकि उस कूपन का इस्तेमाल कर के बिना पैसे खर्च किए सामने वाली पार्टी रिप्लाई कर सके. इटली में इसकी कीमत कम थी और अमेरिका में अधिक. वह इसे इटली से खरीद कर अमेरिका में बेचना चाहता था और तगड़ी कमाई करना चाहता था. इसके लिए उसे बहुत सारे पैसे चाहिए थे. तमाम बैंकों ने उसे पैसे देने से मना कर दिया. उसने सोचा कि इसके लिए लोगों से पैसे जुटाए जाएं.
चार्ल्स ने अपनाया कनाडा के बैंक वाला फॉर्मूला
चार्ल्स को कनाडा वाला बैंक याद आया और उसने उसी तरीके से पैसे जुटाने शुरू कर दिए. चार्ल्स ने 45 दिन में 50 फीसदी और 90 दिन में 100 फीसदी रिटर्न का वादा किया. इसके लिए चार्ल्स ने सिक्योरिटीज एक्सचेंज कंपनी नाम की एक कंपनी भी शुरू की. महज 3 महीने में पैसे दोगुने होने की खबर सुनकर बहुत सारे लोगों ने निवेश किया. महज 6 महीने में 2.5 मिलियन डॉलर जमा हो गए. इसके बाद तो चार्ल्स ने इंग्लैंड और न्यू जर्सी में इसकी एक-एक ब्रांच तक खोल डाली.
असल में कोई बिजनेस मॉडल था ही नहीं
चार्ल्स ने तो सबको यही बताया था कि वह आईआरसी खरीदने-बेचने का काम करता है, लेकिन असल में उसने ऐसा कभी किया ही नहीं. लोगों को लगता रहा कि आईआरसी से चार्ल्स मुनाफा कमाकर लोगों को दे रहा है, लेकिन चार्ल्स पोंजी तो Banco Zarossi बैंक वाले फॉर्मूले पर काम कर रहा था. वह नए निवेशकों के पैसे पुराने निवेशकों को दे रहा था. यानी देखा जाए तो यहां असल में कोई बिजनेस मॉडल था ही नहीं. सब सिर्फ एक स्टार्टअप स्कैम था. लोग भी तगड़े रिटर्न के चक्कर में अपने रिटर्न को रीइन्वेस्ट करने लगे. बोस्टन की पुलिस और सरकारी अधिकारियों में से करीब 70 फीसदी लोगों ने भी चार्ल्स की कंपनी में पैसे लगा दिए थे.
और एक दिन खुल गया फर्जीवाड़ा
उस दौरान कुछ लोगों को शक तो होते थे, लेकिन जो भी आवाज उठाता था, उसे चुप करा दिया जाता था. तब तक चार्ल्स काफी ताकतवर हो चुका था. महंगा घर, महंगी गाड़ी जैसे लग्जरी शौक चार्ल्स की पहचान बन गए थे. देखते ही देखते चार्ल्स की कंपनी की छानबीन होने लगी और एक दिन पता चला कि ये सब फर्जीवाड़ा है. जितना पैसा चार्ल्स ने कमाया था, उस हिसाब से सर्कुलेशन में करीब 160 मिलियन आईआरसी होनी चाहिए थी, जबिक सिर्फ 27 हजार आईआरसी ही सर्कुलेशन में थीं. यूएस पोस्टल से भी कनफर्म हुआ कि किसी ने आईआरसी बल्क में नहीं खरीदी हैं. तब लोगों को पता चला कि असल में चार्ल्स पोंजी आईआरसी का बिजनेस कर ही नहीं रहा था और फिर तमाम निवेशक अपने पैसे मांगने लगे.
अमेरिका का बैंकिंग सिस्टम हुआ ठप
चार्ल्स पोंजी का पैसा अमेरिका के अलग-अलग बैंकों में जमा था. जब तमाम लोग अपने पैसे वापस मांगने लगे तो अचानक से बैंक पर काफी बोझ पड़ गया और नतीजा ये हुआ कि अमेरिका का बैंकिंग सिस्टम बुरी तरह से ठप पड़ गया. कई बैंक तो धराशाई हो गए. पोंजी की संपत्ति बेचकर जब रिकवरी की गई तो सिर्फ 30 फीसदी पैसा ही रिकवर हुआ. लोगों के पैसे दोगुने-तीन गुने होना तो बहुत दूर की बात, उनके पैसे उल्टा घटकर एक-तिहाई रह गए. उसी के नाम पर इस तरह होने वाले सभी फ्रॉड को पोंजी स्कीम कहा जाने लगा.
चार्ल्स को मिली भयानक मौत
चार्ल्स पोंजी को मौत भी बहुत बुरी मिली. जेल से निकला तो पत्नी तलाक देकर छोड़ गई. हार्ट अटैक आया और बहुत कमजोर हो गया. आंखों की रोशनी भी धीरे-धीरे चली गई. कुछ वक्त बाद ब्रेन हैमरेज हुआ और बाएं हाथ-पैर को लकवा मार गया. 18 जनवरी 1949 को एक चैरिटी अस्पताल में चार्ल्स पोंजी की मौत हो गई.
12:00 PM IST