शादी की तैयारी के बीच जब आई शक्तिकांत शर्मा की शहादत की खबर, मां से कहा था- लौट आया तो आपका नहीं तो देश का हो जाऊंगा
अमर शहीद कैप्टन शशिकांत शर्मा की मां ने अपने बेटे की यादों में डूबते हुए डबडबाई आँखों से कहा, ‘शशि को हलवा बहुत पसंद था. जब भी खुश होता, किचन में मेरा हाथ बंटाने आ जाता. हलवा बनवाता, खुद भी खाता और अपने हाथ से मुझे भी खिलाता. अब जब भी हलवा बनाती हूं तो उसकी याद आ जाती है’.
मम्मी मैं तो सीखूंगा गोली चलाना, लीडर नहीं बनूंगा फौजी ऑफिसर बनाना, मां मुझको तलवार दिला दो, मैं भी लड़ने जाऊंगा, छोटे-छोटे हाथों से पैटर्न टैंक उड़ाउगा, तु मुझको शाबाशी देना, चमत्कार करके दिखलाऊंगा, भारत का राजा बेटा हूं, भारत की शान बढ़ाउंगा. ये शहीद कैप्टन शशिकांत शर्मा की बचपन की यादें हैं, मां कहती हैं कि मुझे शुरू से ही मालूम था कि यह देश की सेवा में जाएगा. लेकिन, यह पता नहीं था कि अपने देश के दुश्मनों को निपटाकर इतना जल्दी हमसे दूर चला जाएगा. 5 अक्टूबर, 1998 को देश के लिए शहादत देने वाले शशिकांत शर्मा के घर उनकी शादी की तैयारियां चल रही थीं. लेकिन, घर पहुंची उनके शहीद होने की खबर.
आज भी मां के कानों में गूंजते हैं आखिरी शब्द
शशिकांत की मां कहती हैं कि आज भी घर से निकलते समय बेटे के वो आखिरी शब्द कानों में गूंजते हैं. कभी सोचा नहीं था कि जिस गली में छोटी-छोटी अंगुलियां पकड़ कर अपने बेटे को घुमाया करती थी, किसी दिन उसी गली को शशिकांत एंक्लेव के नाम से जाना जाएगा. मेरे बेटे ने मुझसे बार-बार कहा था कि मां अगर मैं फिर से तुम्हारी गोद में इंसान बनकर बड़ा हुआ तो मुझे फिर से फौजी बना देना. बचपन की बातें याद करते हुए वे कहती हैं कि बचपन में भी शशिकांत खिलौने के तौर पर सिर्फ टैंक, पिस्टल, एयरगन पसंद करते थे.
खुद चुनी थी सियाचिन में वॉलंटियर सेवा
शहीद शशिकांत शर्मा की मां सुदेश शर्मा ने बताया कि उसकी पहली पोस्टिंग अमृतसर में हुई. उसकी ज्वॉइनिंग 15 आर्मर्ड रेजिमेंट (बख्तरबंद) में हुई थी. सर्विस के दो साल भी नहीं बीते थे कि कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ की खबरें आने लगीं. युद्ध छिड़ते ही उन्होंने अपने कमांडिंग ऑफिसर से जाकर युद्ध में वॉलेंटियर सेवा देने की अनुमति मांगी. उनके अफसरों ने भी उन्हें कहा कि उनकी उम्र बहुत कम है. देश के लिए सेवा करने के उन्हें बहुत से मौके मिलेंगे, लेकिन वे नहीं माने.
‘ये देश सेवा का अवसर है, मुझे जाने दीजिए’
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मां सुदेश शर्मा ने बताया कि बेटे ने सियाचिन जाने के अपने फैसले के बारे में मुझे जब बताया तो मैंने रोकने की कोशिश की पर उसने कहा, ‘मां, अगर सड़क हादसे में मेरी जान चली जाती तो क्या तब भी तुम रोक पाती? यह देश सेवा का अवसर है, मुझे जाने दो’. इतनी कम उम्र में मुझे अपने छाती पर दो मेडल लगाने का अवसर मिलेगा, जो हर ऑफिसर को नहीं मिलता. मां ने उन्हें इजाजत दे दी. जाने के पहले शशिकांत के आखिरी शब्द थे, ‘मां क्यों चिंता करती हो, लौट आया तो आपको, नहीं तो देश का हो जाउंगा’. उनके नाम पर नोएडा में सेक्टर-37 के पास शहीद कैप्टन शशिकांत शर्मा चौक और रोड समर्पित है.
अब किसे खिलाऊंगी हलवा
अमर शहीद कैप्टन शशिकांत शर्मा की मां ने अपने बेटे की यादों में डूबते हुए डबडबाई आँखों से कहा, ‘शशि को हलवा बहुत पसंद था. जब भी खुश होता, किचन में मेरा हाथ बंटाने आ जाता. हलवा बनवाता, खुद भी खाता और अपने हाथ से मुझे भी खिलाता. अब जब भी हलवा बनाती हूं तो उसकी याद आ जाती है’. शशिकांत अपनी पोस्टिंग की जगह से रोज अपने परिजनों को खत लिखा करते थें. वह अपने परिवार को कहते थे कि उन्हें घर से हमेशा 3 लेटर आने चाहिए, एक मां का, एक पिता का और एक भाई का.
शहीद होने तक फायरिंग करता रहा मेरा शेर
शहीद कैप्टन शशिकांत शर्मा के पिता फ्लाइट लेफ्टिनेंट जोगिंदर पाल शर्मा अपने बेटे के किस्से सुनाते हुए काफी भावुक हो जाते हैं. वे कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फेंट्री में 22 हजार फीट की ऊंचाई पर माइनस 60 डिग्री तापमान में बने बाना लिसनिंग पोस्ट पर तैनाती के दौरान 4 अक्टूबर 1988 में पाकिस्तान की तरफ से की जा रही फायरिंग में उनका बेटा डटकर खड़ा रहा. वे कहते हैं कि इस बीच कई गोलियां लगने की वजह से मेरे शेर ने न फायरिंग बंद की, न ही अपनी पोस्ट छोड़ी.
भाग्यशाली मां-बाप को मिलता है ऐसा बेटा
शहीद कैप्टन शशिकांत शर्मा को 15 august 1999 में सेना मेडल, वीरता पदक राष्ट्रपति द्वारा दिया गया था. जोगिंदर पाल शर्मा के पिता कहते हैं कि मैं अपने आप को काफी गौरवशाली महसूस करता हूं. देश की सेवा करने का मौका तो उन्हें भी खूब मिला. उन्होंने 1962 में चीन के साथ हुए लड़ाई लड़ी, 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई में हिस्सा लिया और अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई. लेकिन आज उनका शहर उन्हें उनके नाम से नहीं, बल्कि शहीद कैप्टन शशिकांत शर्मा के पिता के नाम से जानता है, जो उनके लिए गौरव की बात है.
केक काट कर कभी नहीं मनाया जन्मदिन
कैप्टन शशिकांत शर्मा के छोटे भाई शशि कहते हैं कि घर में कभी भी जन्मदिन पर दोनों भाइयों ने केक नहीं कटा. स्कूल में लोग अपने जन्मदिन पर टॉफी बांटते हैं, हमने कभी टॉफी नहीं बांटी. जब राखी का दिन आता तो मां से राखी बंधवाते थे और उस दिन मां को सारा दिन दीदी कहते थे. आज भी उनके छोटे भाई नरेश कहते हैं कि आज भी हमारी मां हमारी दोस्त और बहन भी रही हैं. उनकी भाभी डाक्टर संगीता शर्मा कहती हैं कि मैं भईया से कभी मिली तो नहीं लेकिन इस परिवार का जब हिस्सा बनी तो उनके बारे में जानने का मौका मिला. शुरू से जानती थी कि शहीद परिवार के क्या हालात होते हैं. जिस जुनून के साथ वे देश के लिए काम करते थे, वो मुझे यहां आकर पता चला. उनकी बातें सुनकर बहुत गर्व महसूस होता है. जितने मजबूत वे अपने देश के लिए थे, उतने ही इमोशनल वे अपनी फैमिली के लिए थे
11:41 AM IST