National Sports Day 2022: जब ओलंपिक जीतने के बाद फूट-फूटकर रोए थे मेजर ध्यानचंद, पढ़ें 'हॉकी के जादूगर' का ये रोचक किस्सा
हर साल मेजर ध्यानचंद के जन्म दिवस के दिन को National Sports Day के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है. यहां जानिए 1936 के ओलंपिक खेल से जुड़ा ये रोचक किस्सा.
National Sports Day 2022: जब ओलंपिक जीतने के बाद फूट-फूटकर रोए थे मेजर ध्यानचंद, पढ़ें 'हॉकी के जादूगर' का ये रोचक किस्सा
National Sports Day 2022: जब ओलंपिक जीतने के बाद फूट-फूटकर रोए थे मेजर ध्यानचंद, पढ़ें 'हॉकी के जादूगर' का ये रोचक किस्सा
'हॉकी के जादूगर' कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का नाम महान खिलाड़ियों में शुमार किया जाता है. कहा जाता है कि उन्होंने हॉकी में तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक हासिल किए थे, पहला 1928, दूसरा 1932 और तीसरा स्वर्ण पदक 1936 में अर्जित किया था. कहा जाता है कि मेजर ध्यानचंद के पास गोल करने की अद्भुत कला थी. खेल के मैदान में जब इनकी हॉकी उठती थी, तो विपक्षी टीम के पसीने छूट जाते थे.
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 में हुआ था. मेजर की याद में हर साल उनके जन्म दिवस के दिन को National Sports Day के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है. मेजर ध्यानचंद की बायोग्राफी ' बायोग्राफी ऑफ हॉकी विजार्ड ध्यान चंद' में उनके तमाम किस्सों का जिक्र किया गया है. आज नेशनल स्पोर्ट्स डे के मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं, उनके आखिरी ओलंपिक का वो किस्सा, जिससे हो सकता है कि आप अनजान हों.
बर्लिन ओलंपिक की जीत के नायक थे मेजर ध्यानचंद
ये बात है 1936 में बर्लिन में आयोजित ओलंपिक खेलों की. इस ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद ने करिश्माई खेल दिखाते हुए अकेले 3 गोल किए थे और जर्मनी की टीम को उसी की धरती पर 8-1 से हरा दिया था. कहा जाता है कि इस खेल को देखने के लिए हिटलर भी वहां पर पहुंचा था. भारतीय टीम की जीत से हिटलर काफी चिढ़ गया था और मैदान छोड़कर वहां से चला गया था.
जीतने के बाद फूट-फूटकर रोए
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सारी भारतीय टीम जीत का जश्न मना रही थी, लेकिन मेजर ध्यानचंद इससे दूरी बनाए हुए थे. स्टेडियम से बाहर उस स्थान पर अकेले बैठे थे, जहां सभी देशों के झंडे लहरा रहे थे. जब टीम के सदस्य मेजर के पास पहुंचे तो देखा कि मेजर के चेहरे पर जीत की कोई खूशी नहीं है, बल्कि वे आंखों में आंसू भरे हुए हैं.
रोने की वजह ये बताई
टीम के सदस्यों ने उनसे दुखी होने का कारण पूछा तो वे फूट-फूटकर रोने लगे और बोले यहां सभी देशों के झंडे नजर आ रहे हैं, लेकिन हमारे देश का तिरंगा कहीं नहीं है. इसकी जगह ब्रिटिश सरकार का यूनियन जैक लहरा रहा है. जीत का सही मायने में जश्न तो तब मनाया जाना चाहिए, जब हम देश के तिरंगे के नीचे ये खेल खेलें और जीत हासिल करें.
हिटलर के प्रस्ताव को ठुकराया
कहा जाता है कि ओलंपिक में जीत हासिल करने के बाद अगले दिन हिटलर ने ध्यानचंद को बुलाया. किताब में लिखा है कि हिटलर के बुलावे से मेजर काफी डर गए थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि हिटलर लोगों को गोलियों से भून देता है. किसी तरह हिम्मत जुटाकर वे हिटल से मिलने पहुंचे तो हिटलर ने उनसे पूछा कि तुम खेलने के अलावा और क्या काम करते हो. इस पर मेजर ध्यानचंद ने कहा कि मैं भारतीय सेना का सैनिक हूं. इसके बाद हिटलर ने उन्हें जर्मनी की सेना में उच्च पद पर भर्ती होने का प्रस्ताव दिया, लेकिन मेजर ध्यानचंद ने उसके प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया. उन्होंने कहा कि मैं एक भारतीय सैनिक हूं और भारत को आगे बढ़ाना मेरा कर्तव्य है. मेजर ध्यानचंद एक सच्चे देशभक्त थे. उन्होंने अपनी हर जीत को हमेशा भारतीयों को ही समर्पित किया.
10:00 AM IST