एक्सचेंज और डिपॉजिटरी का आदेश बैंकों पर लागू नहीं, आर्केडिया शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर्स में SAT का अहम फैसला
SAT Rules on Arcadeia Case: कोटक महिंद्रा बैंक ने साल 2008 में आर्केडिया शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स को शेयर गिरवी लेकर लोन दिया था. लोन की शर्तों में आर्केडिया ब्रोकर्स ने लिखा था कि शेयर उसके हैं, इस पर क्लाइंट्स का अधिकार नहीं हैं.
(Image: Reuters)
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SAT Rules on Arcadeia Case: स्टॉक एक्सचेंजेज का आदेश केवल ट्रेडिंग मेंबर्स पर ही बंधनकारी होगा न कि उन पर जो ट्रेडिंग मेंबर नहीं हैं. सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (SAT) ने कोटक महिंद्रा बैंक बनाम नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के आदेश में ये बात एक बार फिर साफ किया है. दरअसल, कोटक महिंद्रा बैंक ने साल 2008 में आर्केडिया शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स को शेयर गिरवी लेकर लोन दिया था. लोन की शर्तों में आर्केडिया ब्रोकर्स ने लिखा था कि शेयर उसके हैं, इस पर क्लाइंट्स का अधिकार नहीं हैं. यह भी बताया था गिरवी रखे शेयरों पर किसी और तरह का कोई बंधन नहीं है. 2008 में दिया गया लोन बार-बार बदलता या फिर रीन्यू होता रहा.
दिसंबर 2020 के आसपास आर्केडिया शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स ने डिफाल्ट करना शुरू कर दिया. जिसके बाद बैंक ने फरवरी 2021 में दिए गए लोन को वापस मांगने का फैसला किया. लेकिन उससे पहले ही NSE ने कोटक महिंद्रा बैंक को गिरवी शेयरों के मालिकाना हक का फैसला होने तक अपने कब्जे में न लेने का निर्देश दिया. NSE के निर्देश पर डिपॉजिटरी CDSL ने भी फरवरी में ही डेबिट फ्रीज का ऑर्डर जारी कर दिया. ताकि, ब्रोकर के डीमैट खाते से शेयर नहीं बेचे जा सकें. फॉरेंसिक ऑडिट में पता चला था कि आर्केडिया शेयर्स ने क्लाइंट्स के शेयरों को भी गिरवी रखा था. बाद में कोटक महिंद्रा बैंक ने NSE के निर्देश को सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (SAT) में चुनौती दे दी.
SAT में क्या थी बैंकों की दलील
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सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल में बैंक की ओर से दलील दी गई कि बैंक, एक्सचेंज का ट्रेडिंग मेंबर नहीं है. ऐसे में एक्सचेंज का कोई नियम, रेगुलेशन या बाई लॉ उस पर लागू नहीं होगा. बचाव में NSE ने सेबी के समय-समय पर आए सर्कुलर और SOP के पालन का हवाला दिया गया. लेकिन, ट्रिब्यूनल ने SOP की आड़ लेने को वाजिब नहीं माना.
ट्रिब्यूनल में बैंक की तरफ से कहा गया कि शेयर बैंक के पास गिरवी हैं, इसलिए बैंक का उस पर विशेष अधिकार है. ट्रिब्यूनल ने भी कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग से जुड़े एक्सिस बैंक के केस में दिए अपने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि एक ब्रोकर के डिफाल्टर घोषित होते ही उसकी सारी संपत्ति एक्सचेंज के डिफाल्टर कमेटी की नहीं हो जाती, बल्कि एक्सचेंज का आदेश उसके ट्रेडिंग मेंबर्स पर लागू होगा. इसी तरह, डिपॉजिटरी भी अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर डीमैट फ्रीज करने का आदेश किसी और को नहीं दे सकते हैं.
03:10 PM IST