कोरोना पर काबू के लिए न्यूक्लियर मेडिसिन को क्यों बढ़ावा दे रही मोदी सरकार? जानिए पूरी कहानी
अमेरिका से लेकर रूस तक और चीन से लेकर यूरोपियन देशों तक में कोरोना से जंग छिड़ी हुई है. लेकिन, कोई भी अटैक कोरोना का खात्मा अभी तक नहीं कर पाया है.
आइसोटोप का मेडिसिन के तौर पर सबसे पहले इस्तेमाल रेडियो फार्मास्यूटिकल्स में किया गया.
आइसोटोप का मेडिसिन के तौर पर सबसे पहले इस्तेमाल रेडियो फार्मास्यूटिकल्स में किया गया.
महामारी कोरोना (Coronavirus Pandemic) का डंक लगभग पूरी दुनिया को लग चुका है. वायरस अपने पैर पसार रहा है. दुनिया की बड़ी ताकतें भी कोरोना के आगे घुटने टेकने को मजबूर हुई हैं. अमेरिका से लेकर रूस तक और चीन से लेकर यूरोपियन देशों तक में कोरोना से जंग छिड़ी हुई है. लेकिन, कोई भी अटैक कोरोना का खात्मा अभी तक नहीं कर पाया है. इस बीच कई देशों ने दावा किया कि उसने कोरोना को खत्म करने के लिए दवा यानी वैक्सीनेशन (Vaccination) बना लिया है. लेकिन, अभी तक किसी भी दवा या वैक्सीन को मान्यता नहीं मिली है. न ही क्लिनिकल ट्रायल पूरा हुआ है. इस बीच भारत में कोरोना को काबू करने के लिए एक अलग तरह के इलाज की चर्चा है. खुद मोदी सरकार इसे बढ़ावा दे रही है. ये न्यूक्लियर मेडिसिन...
दरअसल, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (FM Nirmala Sitharaman) ने आर्थिक पैकेज के चौथे चरण के ऐलान में कहा कि सरकार की पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत रिसर्च रिएक्टर बनाने की योजना है, जिसमें मेडिकल आइसोटोप्स (Medical Isotopes) का उत्पादन किया जाएगा. इसका मकसद सस्ती दरों पर कैंसर के अलावा दूसरी बीमारियों का इलाज करना है. रेडियो आइसोटोप्स का इस्तेमाल कैंसर, दिल की बीमारी, थॉयरायड और न्यूरोलॉजी (Neurology) में किया जाता है. इसी तरह मेडिकल आइसोटोप वह होता है, जिसका इस्तेमाल मेडिसिन के तौर पर किया जाता है.
भारत में न्यूक्लियर मेडिसिन की शुरुआत
देश में न्यूक्लियर मेडिसिन (Nuclear Medicine) की बात की जाए और डॉ. होमी जहांगीर भाभा की चर्चा न हो तो ये बेमानी होगा. डॉ. जहांगीर को इंडियन न्यूक्लियर प्रोग्राम का जनक माना जाता है. मुंबई में सितंबर 1963 में डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने रेडिएशन मेडिसिन सेंटर का उद्घाटन किया था. इसके करीब 5 महीने बाद ही फरवरी 1964 में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलायंस साइंस, दिल्ली देश को समर्पित किया गया. भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर स्वदेशी स्तर पर अप्सरा और सायरस रिएक्टर्स में उत्पादित हुए मेडिकल रेडियो आइसोटोप की रीढ़ था.
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आइसोटोप का इस्तेमाल
आइसोटोप का मेडिसिन के तौर पर सबसे पहले इस्तेमाल रेडियो फार्मास्यूटिकल्स में किया गया. हाल ही में अलग किए हुए स्थायी आइसोटोप का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है. आइसोटोप: जब किसी एक तत्व का परमाणु क्रमांक एक लेकिन परमाणु भार अलग-अलग हो तो उसे आइसोटोप कहते हैं. AERB (Atomic Energy Regulatory Board) की तरफ से जुलाई 2018 में जारी की गई सूची के मुताबिक देशभर में कुल 293 न्यूक्लियर मेडिसिन डिपार्टमेंट काम कर रहे हैं.
कहां है न्यूक्लियर मेडिसिन फैसीलिटी?
देश के 29 राज्यों में से 22 राज्यों में करीब (76%) जबकि 7 केंद्रशासित प्रदेशों में 3 में (43%) न्यूक्लियर मेडिसिन फैसिलिटी मौजूद हैं. भारत में करीब 50 लाख की आबादी पर एक PET-CT (Position Emission Tomography- Computed tomography), एक गामा कैमरा और एक न्यूक्लियर मेडिसिन डिपार्टमेंट मौजूद हैं.
चौंकाने वाली बात यह है कि न्यूक्लियर मेडिसिन डिपार्टमेंट सबसे पहले सरकारी क्षेत्र में ही गठित किए गए थे, इसके बावजूद ये अभी भी 14% है, ऐसा इसलिए भी संभव है कि सरकार का फोकस प्राथमिक स्वास्थ्य पर रहा हो. न्यूक्लियर मेडिसिन के स्तर पर अग्रणी रहने के बावजूद भी सरकार की इस सेक्टर में केवल 14% ही हिस्सेदारी है, जबकि बाकी के 86% पर निजी सेक्टर का कब्जा है.
भारत में न्यूक्लियर मेडिसिन
मुंबई में सितंबर 1963 में डा. होमी जहांगीर भाभा ने रेडिएशन मेडिसिन सेंटर का उद्घाटन किया था. इसके करीब 5 महीने बाद ही फरवरी 1964 में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलायंस साइंस, दिल्ली देश को समर्पित किया गया. भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर स्वदेशी स्तर पर अप्सरा और सायरस रिएक्ट्स में उत्पादित हुए मेडिकल रेडियोआइसोटोप की रीढ़ था.
भारत के निजी हॉस्पिटल में न्यूक्लियर मेडिसिन की शुरुआत करने का श्रेय डा. आर डी लेले को जाता है. उन्होंने सबसे पहले इसे 1974 में मुंबई के जसलोक हॉस्पिटल में शुरू किया था.
मेडिकल आइसोटोप का बाजार
2017 से 2025 के दौरान इसका बाजार 11.1% के सालाना ग्रोथ रेट की दर से बढ़ने का अनुमान है. मेडिकल आइसोटोप का सबसे बड़ा बाजार उत्तरी अमेरिका है, जबकि एशिया पैसेफिक में इसका बाजार तेजी से बढ़ रहा है. रेडियो फार्मास्यूटिकल्स को US FDA से दवा या बायोलॉजिक्स के तौर पर मंजूरी मिली हुई है.
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रेडियो आइसोटोप्स के प्रकार
रेडियो आइसोटोप्स के कई प्रकार होते हैं. इनमें Technetium-99m (Tc-99m, Thallium-201 (Tl-201), Iodine (I-123) ,Fluorine-18, Rubidium-82 (Rb-82), Iodine-131 (I-131), Lutetium-177 (Lu-177), Radium-223 (Ra-223) & Alpharadin, Actinium-225 (Ac-225) शामिल है.
दुनिया में टेक्नेटियम-99 m का सबसे बड़ा उत्पादक देश रूस है. रेडियोफार्मास्यूटिकल्स में टेक्नीटियम-99m के इस्तेमाल से इसके बाजार में भारी बढ़ोतरी देखने को मिलने की उम्मीद है. न्यूक्लियर मेडिसिन मार्केट में टेक्नीटियम-99m का इस्तेमाल कई डायग्नोस्टिक टेस्ट और इलाज में किया जाता है। इसे देखते हुए अमेरिका, कनाडा और उत्तरी अमेरिकी बाजार में तेजी से
ग्रोथ की उम्मीद है.
वैश्विक स्तर पर न्यूक्लियर मेडिसिन के क्षेत्र में GE Healthcare,NTP Radioisotopes SOC Ltd, Nordion (Canada) Inc., Siemens Healthcare, and Positron Corp. जैसी कंपनियों का दबदबा है. न्यूक्लियर मेडिसिन की दिशा में काम कर रही SNMI यानी सोसायटी ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन, इंडिया देश का सबसे पुराना और सबसे बड़ी प्रोफेशनल बॉडी है जिसका गठन 1967 में किया गया था.
05:11 PM IST