Budget 2023: बजट के बाद क्या बिना चर्चा के फंड पास करा सकती है सरकार? हां, जानें कैसे काम आता है 'गिलोटिन'
Budget 2023: बजट में अलग-अलग सेक्टरों के लिए फंड एलोकेट किए जाएंगे, लेकिन सरकार को फिर इसके लिए संसद की मंजूरी लेनी होती है. इसी का एक हिस्सा होता है गिलोटिन (Guillotine), हम इसी के बारे में यहां विस्तार से समझा रहे हैं.
Budget 2023, Budget Facts and Trivia: संसद का बजट सत्र (Budget Session) बिल्कुल करीब आ गया है. 1 फरवरी को संसद में देश का बजट पेश किया जाएगा. लेकिन उसके पहले बजट से जुड़े फैक्ट्स, प्रोसेस वगैरह पर हम नजर डाल रहे हैं, ताकि इसबार के बजट सत्र में जब खबरें आएं तो आपको पता रहे कि आखिर बात किस बारे में हो रही है. 1 फरवरी को बजट तो पेश होगा, जिसमें अलग-अलग सेक्टरों के लिए फंड एलोकेट किए जाएंगे, लेकिन सरकार को फिर इसके लिए संसद की मंजूरी लेनी होती है. इसी का एक हिस्सा होता है गिलोटिन (Guillotine), हम इसी के बारे में यहां विस्तार से समझा रहे हैं. गिलोटिन ऐसा प्रोसेस होता है, जहां सरकार बिना किसी वोटिंग के भी अनुदान या फंड की मंजूरी पास करवा सकती है.
गिलोटिन को समझिए (What is Guilllotine?)
अगर कम शब्दों में कहें तो सरकार बजट में जितने खर्चे का अनुमान रखती है, उसे संसद के सामने रखना होता है ताकि सरकार को फंड जारी हो सके. इसपर बहस के बाद वोटिंग होती है. अगर वोटिंग न हो पाए तो सरकार बिना चर्चा के ये ग्रांट पास कराने के लिए गिलोटिन लाती है, जिसके तहत सभी अनुदान पास हो जाते हैं, यानी कि बिना चर्चा के फंड को मंजूरी मिल जाती है. इसी प्रक्रिया को गिलोटिन कहते हैं.
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वोटिंग न हो पाने की स्थिति में गिलोटिन लाती है सरकार
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विस्तार में समझिए, सरकार जब बजट वाले दिन अपना बजट पेश कर लेती है, तो उसके बाद इसे संसद के सदनों से गुजरना होता है. बजट भाषण के बाद संसद में फाइनेंस बिल पेश किया जाता है. यहां इकॉनमी और बजट में सुझाए गए कदमों पर बिना किसी वोटिंग के चर्चा की जाती है. इसके बाद लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदन तीन हफ्ते का ब्रेक लेते हैं. फिर संसदीय समिति अलॉट किए गए बजट में से अलग-अलग मंत्रालयों के अनुमान और मांगों को लेकर रिपोर्ट सबमिट करती है.
संसद की मंजूरी होती है जरूरी
संविधान के अनुच्छेद 113 में यह अनिवार्य है कि देश के कंसॉलिडेटेड फंड से जितने खर्च का अनुमान है, उसे डिमांड्स फॉर ग्रांट्स यानी कि अनुदान की मांग के तौर पर पेश किया जाए. यह एस्टीमेट सलाना फाइनेंशियल स्टेटमेंट में शामिल किया जाता है और इसपर लोकसभा में वोटिंग भी होनी होती है. ग्रांट डिमांड को सलाना फाइनेंशियल स्टेटमेंट के साथ लोकसभा में पेश किया जाता है. आमतौर पर हर एक मंत्रालय या विभाग के लिए एक ग्रांट डिमांड पेश किया जाता है, लेकिन खर्च के हिसाब से एक से ज्यादा डिमांड भी पेश किया जा सकता है. ये ग्रांट डिमांड इन मंत्रालयों और विभागों की अगले एक साल के खर्चों का हिसाब होता है. संसद में इन ग्रांट्स पर बहस की जाती है, हालांकि संसद के पास इतना वक्त नहीं होता कि वो हर मंत्रालय के हर ग्रांट पर बहस करे, उसे स्क्रूटनाइज़ करे, ऐसे में बहस का तय टाइम खत्म होने के बाद लोकसभा का स्पीकर जितने भी बचे हुए ग्रांट्स हैं, उनपर सदन में वोटिंग कराता है. इसी प्रक्रिया को गिलोटिन कहते हैं. अगर संसद में किसी और कारण से ग्रांट्स पर वोटिंग नहीं हो पाती है, तो भी इन्हें पास कराने के लिए सरकार गिलोटिन ला सकती है.
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कंसॉलिडेटेड फंड से पैसे निकालने के लिए Appropriation Bill लाती है सरकार
एक और Budget Term है Appropriation Bill, जो एक तरह का मनी बिल है. इसे सालाना या साल में कई बार पेश किया जाता है. सरकार को जब भी देश के कंसॉलिडेटेड फंड से पैसे निकालने होते हैं, उसे अप्रोप्रिएशन बिल की जरूरत पड़ती है. यह बिल सरकार को अलग-अलग चीजों पर खर्च के लिए कंसॉलिडेटेड फंड से पैसे निकालने की अनुमति देता है. कोई भी बिल या ड्राफ्ट लॉ तब मनी बिल होता है, जब इसमें टैक्स में बदलाव को लेकर प्रावधान होते हैं, या फिर सरकार के उधार लेने या फिर कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया से फंड निकालने का प्रस्ताव होता है. सरकार को कंसॉलिडेटेड फंड से पैसे निकालने के लिए संसद की मंजूरी लेनी पड़ती है. संविधान का अनुच्छेद 114 कहता है कि सरकार कभी भी संसद या राज्य विधानसभाओं की मंजूरी के बिना कंसॉलिडेटेड फंड से पैसे नहीं निकाल सकती. बजट पेश करने के बाद संसद में अप्रोप्रिएशन बिल पेश किया जाता है, ताकि बजट में अलॉट किए गए फंड निकाले जा सकें.
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