जानिए क्या होती है वर्टिकल फार्मिंग, 1 एकड़ खेत से मिल सकती है 100 एकड़ जितनी पैदावार
इजराइल में लोग इसी तरह की परेशानी झेल रहे हैं, क्योंकि वहां पर जमीन की काफी कमी हो चुकी है. ऐसे में वहां पर वर्टिकल फार्मिंग (Vertical Farming) पर जोर दिया जा रहा है. भारत में भी अब कई जगह वर्टिकल फार्मिंग का इस्तेमाल होने लगा है.
देश की आबादी हर दिन बढ़ती जा रही है. इसकी वजह से आए दिन जगह-जगह जमीनों पर घर या फैक्ट्रियां बन रही हैं. इससे जमीन की लगातार कमी होती जा रही है. अब सवाल ये है कि अगर जमीन ही नहीं रहेगी, तो फसलें कहां उगेंगी और लोग खाएंगे क्या? इजराइल में लोग इसी तरह की परेशानी झेल रहे हैं, क्योंकि वहां पर जमीन की काफी कमी हो चुकी है. ऐसे में वहां पर वर्टिकल फार्मिंग (Vertical Farming) पर जोर दिया जा रहा है. अगर सिर्फ पैदावार की बात करें तो एक एकड़ जगह में 100 एकड़ जितनी पैदावार पाई जा सकती है. आइए जानते हैं कैसे की जाती है वर्टिकल फार्मिंग और इसके क्या फायदे हैं.
क्या होती है वर्टिकल फार्मिंग, कौन सी फसलें उगा सकते हैं?
जैसा कि नाम से ही साफ हो रहा है, इस टेक्नोलॉजी में वर्टिकल तरीके से फसल उगाई जाती है. इसमें कई लेयर बनाई जाती हैं और उन सब में फसल लगाई जाती है. अलग-अलग तरह की फसल के लिए अलग-अलग तरह का स्ट्रक्चर बनता है. जैसे हल्दी-अदरक जैसी फसलों के लिए एक के ऊपर एक जीआई से बने बड़े-बड़े लंबे गमले जैसा स्ट्रक्चर बनाया जाता है. इस स्ट्रक्चर को बस एक बार बनाने में भारी खर्च आता है, उसके बाद 24 सालों तक इस स्ट्रक्चर को कुछ नहीं होता है. वहीं लेट्यूस, केल, बेसिल, पालक जैसी फसलों के लिए वर्टिकल फार्मिंग हाइड्रोपोनिक्स के जरिए की जा सकती है.
एक एकड़ खेत में 100 एकड़ जितनी हल्दी
अगर बात हल्दी की करें तो वर्टिकल फार्मिंग के जरिए एक एकड़ खेत में ही आपको करीब 100 एकड़ जितनी हल्दी की पैदावार मिल सकती है. हल्दी की खेती के लिए वर्टिकल फार्म बनाते वक्त जीआई पाइप और उसी से बने लंबे कंटेनर्स का इस्तेमाल किया जाता है. पाइपों की मदद से सारे कंटेनर्स को एक दूसरे के ऊपर सेट किया जाता है. इसके बाद कंटेनर्स में कोकोपीट, मिट्टी और वर्मी कंपोस्ट मिलाकर भरा जाता है. सारे कंटेनर्स में हल्दी के बीज लगा दिए जाते हैं और साथ ही ड्रिप इरिगेशन की मदद से सिंचाई की जाती है. ड्रिप इरिगेशन की मदद से ही समय-समय पर न्यूट्रिएंट्स भी दिए जा सकते हैं. इसमें हल्दी-अदरक जैसी फसलें बहुत अच्छी होती हैं, क्योंकि इन फसलों को अधिक रोशनी की जरूरत नहीं होती है और छायादार जगह पर इनका अच्छा उत्पादन मिलता है.
पॉलीहाउस में की जाती है ये खेती
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हल्दी की फसल को तैयार होने में करीब 9 महीनों का वक्त लगता है. इस तरह देखा जाए तो कंट्रोल तापमान में आप 3 साल में चार बार फसल ले सकती हैं, जबकि सामान्य तौर पर आप 3 साल में 3 ही फसल ले पाते हैं. वर्टिकल फार्मिंग की एक खास बात ये भी है कि इसे पॉलीहाउस में किया जाता है. ऐसे में तापमान को कंट्रोल किया जा सकता है और साथ ही रोगों पर भी कंट्रोल रहता है. इसकी वजह से ही आप किसी भी सीजन में हल्दी की खेती आसानी से कर सकते हैं.
एक एकड़ में वर्टिकल फार्मिंग में कंटेनर्स की 11 लेयर आसानी से लगाई जा सकती हैं. महाराष्ट्र में एक ऐसा प्रोजेक्ट चल भी रहा है, जिसें वर्टिकल फार्मिंग के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए एक फार्म बनाया गया है. इस तरह से एक एकड़ में करीब 6.33 लाख बीच लगेंगे. हर पौधे से औसतन 1.67 किलो का उत्पादन मिल सकता है. अगर 6 लाख बीज को ही लें तो भी एक एकड़ से करीब 10 लाख किलो यानी 1100 टन का उत्पादन मिलेगा. हल्दी को निकालने के बाद उसे धोया जाता है और फिर उबाला जाता है. इसके बाद हल्दी को सुखाकर पीसा जाता है. इस पूरी प्रक्रिया के बाद हल्दी का वजन करीब एक चौथाई रह जाता है यानी आपकी पैदावार 250 टन रह जाएगी. हल्दी अगर 100 रुपये किलो भी बिकती है तो आपको करीब 2.5 करोड़ रुपये की कमाई होगी. हल्दी उगाने में आपके करीब 50 लाख रुपये तक खर्च होंगे, यानी 2 करोड़ रुपये का मुनाफा. हालांकि, वर्टिकल फार्मिंग का ये स्ट्रक्चर बनाने में भी आपको काफी पैसा खर्च करना पड़ेगा तो आपको मुनाफे में आने में 2-3 साल लग सकते हैं, लेकिन उसके बाद खूब मुनाफा होगा.
वर्टिकल फार्मिंग के फायदे भी जानिए
- इस खेती का सबसे बड़ा फायदा तो ये है कि इसे आप बंजर जमीन पर भी कर सकते हैं. पथरीली जमीन पर भी ये खेती की जा सकती है, क्योंकि इस खेती में जमीन पर खेती होती ही नहीं है.
- इसका एक बड़ा फायदा ये होता है कि इस तरह खेती करने पर हल्दी में पाया जाने वाला अहम एलिमेंट crucumin करीब 5 फीसदी होता है, जबकि सामान्य खेती में यह 2-3 फीसदी होता है. यानी आपकी हल्दी की क्वालिटी अच्छी होगी, जिसके चलते दाम भी अच्छा मिलेगा.
- इसे पॉलीहाउस में किया जाता है, ऐसे में धूप, बारिश, ठंड, आंधी-तूफान समेत कीटों से भी पौधों का बचाव होता है. पौधों में रोग कम लगते हैं तो किसान की लागत कम लगती है और फायदा बढ़ता है.
- इस तरह की खेती में सिंचाई में पानी की भी खूब बचत होती है, क्योंकि सिंचाई ड्रिप इरिगेशन के जरिए होती है. हालांकि, तापमान कंट्रोल करने के लिए फॉगर्स में थोड़ा पानी खर्च होता है.
05:35 PM IST