Vinyl Records से लेकर Music Apps तक, 150 साल में कैसे बदला गाना सुनने-सुनाने का कारोबार
Spotify, Amazon Prime Music, YouTube Music, Apple Music, Hungama Music, Wynk Music, JioSaavn, Gaana, SoundCloud और Coke Studio जैसे दर्जनों स्ट्रीमिंग ऐप्स हैं जिनपर आप फ्री या सब्सक्रिप्शन लेकर अपना पसंदीदा म्यूजिक सुन सकते हैं.
कृष्ण के हाथ में बंसी है तो शिव के हाथ में डमरू, सरस्वती के हाथ में वीणा है तो नारद के हाथ में करताल.
कृष्ण के हाथ में बंसी है तो शिव के हाथ में डमरू, सरस्वती के हाथ में वीणा है तो नारद के हाथ में करताल.
वीकेंड्स में हमारे यहां Alexa की मुसीबत बढ़ जाती है. एक फरमाइश आती है Alexa, Please play Baat Niklegi by Jagjit Singh तो दूसरी तरफ से आवाज़ आती है Fake Love by BTS. और एलेक्सा हर कमांड पर हमारे मनपसंद गाने परोसती रहती है. कितना आसान हो गया है गाना सुनना. आप हुक्म करो और गाना शुरू. क्या पता आने वाले वक्त में सोचने से ही गाना बजने लगे. Spotify, Amazon Prime Music, YouTube Music, Apple Music, Hungama Music, Wynk Music, JioSaavn, Gaana, SoundCloud और Coke Studio जैसे दर्जनों स्ट्रीमिंग ऐप्स हैं जिनपर आप फ्री या सब्सक्रिप्शन लेकर अपना पसंदीदा म्यूजिक सुन सकते हैं. हर ऐप में हज़ारों गाने हैं. हर तरह के गाने, हर भाषा के गाने, हर सिंगर के गाने, हर म्यूजिक डायरेक्टर के गाने. लेकिन गाना सुनने-सुनाने की इस यात्रा ने पिछले करीब 150 साल में बहुत दिलचस्प पड़ाव तय किए हैं.
जब दुनिया में पहली बार रिकॉर्ड हुआ म्यूजिक
कृष्ण के हाथ में बंसी है तो शिव के हाथ में डमरू, सरस्वती के हाथ में वीणा है तो नारद के हाथ में करताल. संगीत का वजूद तो वैदिक काल से है लेकिन इंसानी सभ्यता ने तकनीक के जरिए संगीत को कैद करने की कोशिश की. ताकि इसे जब जहां जैसे चाहें सुन सकें. इतिहास खंगालने पर पता चलता है 1878 में पहली बार किसी संगीत को रिकॉर्ड किया गया था. गाना था Yankee Doodle, कलाकार थे लंदन के जाने-माने कॉर्नेट प्लेयर Jules Levy और रिकॉर्ड करने वाले थे अमेरिका के इंजीनियर Oberlin Smith. ये गाना जिस मशीन पर रिकॉर्ड किया गया था उसे कहते थे फोनोग्राफ (phonograph). इस फोनोग्राफ से पहले होता था फोनॉटोग्राफ (Phonautograph) जिसका आविष्कार करने वाले थे फ्रांस के प्रिंटर और इनवेंटर लियन स्कॉट. लियन स्कॉट ने 1857 में ही कागज की पतली झिल्ली पर रिकॉर्डिंग करने में कामयाबी हासिल कर ली थी लेकिन इस साउंड को रीप्ले करना बहुत मुश्किल था. ये मुमकिन तब हुआ जब 1877 में थॉमस एडिसन ने phonograph का आविष्कार किया जिसमें वैक्स सिलिंडर पर ध्वनि तरंगों को मैकेनिकल तरीके से रिकॉर्ड किया जाता था.
अनजाने में हुई स्टीरियो इफेक्ट की खोज
फोनोग्राफ की कहानी पर आगे बढ़ने से पहले एक और दिलचस्प किस्सा. ये किस्सा है स्टीरियो साउंड की खोज का. 1875 में ग्राहम बेल टेलीफोन का आविष्कार कर चुके थे. इसके जरिए ध्वनि तरंगों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने और रिसीव करने का तरीका मिल गया था. इसी टेलीफोन का इस्तेमाल करते हुए 1881 में फ्रांस के इंजीनियर Clement Ader ने थिएटरफोन बनाया. ये एक ऐसा सिस्टम था जिसमें लोग घर बैठे किसी ओपेरा या थिएटर की परफॉरमेंस को सुन सकते थे. इसके लिए क्लेमेंट एडर स्टेज के दाएं और बाएं दोनों हिस्सों में कई सारे ट्रांसमिटर यानी टेलीफोन माउथपीजेस लगा देते थे. घर बैठे सब्सक्राइबर्स के पास दो रिसीवर होते थे, एक बाएं साइड के ट्रांसमिटर्स से कनेक्टेड हता था और दूसरा दाएं साइड के. इस तरह दोनों अलग रिसीवर में स्टेज का साउंड आता था. जाहिर है दोनों साउंड में कुछ फर्क भी था क्योंकि एक रिसीवर स्टेज के दाएं हिस्से का साउंड पकड़ रहा था और दूसरा बाएं हिस्से का. तो इस तरह से स्टीरियोफोनिक साउंड की खोज हुई और क्लेमेंट एडर को इसका श्रेय दिया गया.
कोलंबिया रिकॉर्ड कंपनी और LP की दस्तक
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लौटते हैं रिकॉर्डिंग की कहानी पर. थॉमस एडिसन के बनाए सिलिंडरनुमा फोनोग्राफ में बहुत सारी खामियां थीं. इन खामियों को दूर करते हुए एमाइल बर्लिनर (Emile Berliner) ने 1887 में ग्रामोफोन का आविष्कार किया. एमाइल बर्लिनर ने ही 1901 में The Victor Talking Machine Company शुरू की जिसके जरिए फिल्मों के लिए कुछ एक्सपेरिमेंटल रिकॉर्डिंग की जाने लगी. 1919 में RCA यानी The Radio Corporation of America की स्थापना हुई जिसका रिकॉर्डिंग और ट्रांसमिशन में बड़ा योगदान रहा. उधर लगातार अनुसंधानों के चलते सिलिंडरनुमा फोनोग्राफ धीरे-धीरे फ्लैट डिस्क में बदला. फोनोग्राफ के दौर से ही अमेरिका में कोलंबिया रिकॉर्ड्स कंपनी की स्थापना हो चुकी थी. इसी कंपनी ने सबसे पहले वाइनल रिकॉर्ड लॉन्च किया जिसमें स्टाइलस की मदद से गाना सुना जा सकता था. कोलंबिया रिकॉर्ड्स ने 1948 में दुनिया को लॉन्ग प्ले यानी LP से परिचित कराया जिसमें एक ही रिकॉर्ड पर कई गाने होते थे. वाइनल रिकॉर्ड्स का दबदबा कई दशकों तक बरकरार रहा. His master’s Voice यानी HMV के रिकॉर्ड्स पूरे भारत में तेजी से लोकप्रिय हुए. संगीत के शौकीनों के पास आज भी इसका कलेक्शन मिल जाएगा.
ऑडियो कैसेट की खोज और Sony Walkman की एंट्री
अमेरिकी संगीतकारों की लोकप्रियता, ब्लूज़, रॉक एंड रोल और कंट्री म्यूजिक की पॉपुलैरिटी ने वाइनल रिकॉर्ड्स को घर-घर में पहुंचा दिया. लेकिन 1950 के दशक में नई तकनीक दस्तक देने लगी थी. ये तकनीक थी मैग्नेटिक टेप पर रिकॉर्डिंग की. इसकी मदद से पूरे-पूरे कॉन्सर्ट को एक छोटे से कैसेट में रिकॉर्ड किया जा सकता था. 1963 में डच कंपनी फिलिप्स में Lou Ottens और उनकी टीम ने कॉम्पैक्ट कैसेट की खोज की. ये कैसेट दो तरह के होते थे. एक जिसमें म्यूजिक पहले से रिकॉर्ड होता था और दूसरा ब्लैंक कैसेट जिसमें आप अपनी पसंद का म्यूजिक रिकॉर्ड कर सकते थे. कैसेट का छोटा साइज और इसके प्लेयर की पोर्टबिलिटी भी इसे पॉपुलर करने में कारगर साबित हो रही थी. शुरुआत में तो वाइनल रिकॉर्ड्स के आगे कैसेट्स का जादू नहीं चला लेकिन इसकी अहमियत तब बढ़ी जब अमेरिका में ऑटो कंपनियों ने गाड़ियों में पोर्टबल कैसेट प्लेयर फिट करना शुरू दिया. अब हर कोई गाड़ी चलाते वक्त अपना फेवरिट म्यूजिक सुनना चाहता था. और इस शौक को अगला मुकाम दिया सोनी ने. 1981 में Sony Walkman बाजार में उतारा गया और देखते ही देखते ये पूरी दुनिया में हिट हो गया. संगीत अब हथेलियों में आ चुका था, जेबों में आ चुका था.
जब सीडी की चमक ने किया कैसेट को कमजोर
डिजिटल युग के उत्थान के साथ ही कैसेट्स का पतन शुरू हो गया. अब कैसेट की जगह ले रहे थे कॉम्पैक्ट डिस्क यानी CDs. CD एक डिजिटल ऑप्टिकल डिस्क डेटा स्टोरेज फॉरमैट था. 1979 में यूरोप और जापान में सीडी का पहला प्रोटोटाइप पेश किया गया. इसके बाद दुनिया के दो बड़े इलेक्ट्रॉनिक ब्रांड Philips और Sony ने सीडी पर काम करने के लिए हाथ मिलाया. 1982 में सीडी ने बाजार में दस्तक दी और तेजी से पॉपुलर होने लगी. वजह ये थी कि सीडी वाइनल रिकॉर्ड्स के मुकाबले साइज़ में छोटी थी, मजबूत थी, पोर्टेबल थी और इस्तेमाल करने में आसान थी. सीडी पर जो पहला अलबम आया वो था स्वीडन के पॉप ग्रुप Abba का जिसका नाम था The Visitors. और सबसे ज्यादा बिकने वाली सीडी का रिकॉर्ड दर्ज है Eagles के एक अलबम के नाम. 1976 में आए इस अलबम का टाइटल था Their Greatest Hits.
Napster की खुराफात और पायरेसी की फांस
म्यूजिक टेक्नोलॉजी के इतिहास में 1999 का साल बहुत अहमियत रखता है. ये वो साल था जब सारी दुनिया को Y2K बग का खौफ सता रहा था. इसी साल Napster सॉफ्टवेयर के साथ म्यूजिक पायरेसी की शुरुआत हुई. Napster की खासियत ये थी कि इसकी मदद से लोग न सिर्फ अपने फेवरिट अलबम फ्री डाउनलोड कर सकते थे बल्कि MP3 फाइल बनाकर शेयर भी कर सकते थे. और जैसा कि होना तय था, नैप्सटर पर कॉपीराइट नियमों की अनदेखी के आरोप लगने लगे और अमेरिका की रिकॉर्डिंग इंडस्ट्री असोसिएशन ने इसे अदालत में घसीट लिया. करीब दो साल की कानूनी लड़ाई के बाद 2001 में Napster को अपना धंधा बंद करना पड़ा. लेकिन तब तक म्यूजिक इंडस्ट्री को एक बात समझ में आ चुकी थी कि ऑनलाइन म्यूजिक शेयरिंग का ट्रेंड अब जाने वाला नहीं है. बेहतर है कि इसी दिशा में कारोबार की गुंजाइश तलाशी जाए. इसी सोच के साथ 2003 में Apple ने पहली बार iTunes Store लॉन्च किया. ये एक ऑनलाइन म्यूजिक लाइब्रेरी थी जिसे एप्पल के MP3 प्लेयर iPod पर सुना जा सकता था. यूजर सस्ती कीमत चुकाकर लंबा चौड़ा कैटलॉग डाउनलोड कर सकते थे. देखते ही देखते सोनी समेत तमाम कंपनियों ने MP3 प्लेयर बनाने शुरू कर दिए. म्यूजिक के डिजिटल डाउनलोड्स की बाढ़ आ गई. गानों के सब्सक्रिप्शन मॉडल से म्यूजिक इंडस्ट्री को थोड़ी बहुत कमाई जरूर हुई लेकिन कैसेट और सीडी की घटती सेल उन्हें चोट पहुंचा रही थी . दूसरी तरफ Frostwire और Limewire जैसे प्लेटफॉर्म्स भी सक्रिय थे जिनकी वजह से पायरेसी रुक नहीं रही थी. बीच Pandora जैसी कंपनियां भी आईं जिन्होंने इंटरनेट रेडियो स्टेशन चलाकर विज्ञापन को कमाई का जरिया बनाया.
पायरेसी पर Spotify का प्रहार और Freemium मॉडल
लेकिन संगीत की दुनिया में अब तक सबसे बड़ी तकनीकी क्रांति होनी बाकी थी. ये क्रांति हुई साल 2006 में जब स्टॉकहोम में स्पॉटिफाई वजूद में आया. स्पॉटिफाई का मकसद साफ था- म्यूजिक रिकॉर्ड्स के गैरकानूनी डिस्ट्रीब्यूशन को रोकना और परफॉर्मर्स को ऐसा प्लेटफॉर्म देना जहां वो अपना काम शोकेस कर सकें और इसकी रॉयल्टी कमा सकें. ये बिल्कुल नए तरह का बिजनेस मॉडल था. स्पॉटिफाई के फाउंडर्स Daniel Ek और Martin Lorentzon ने जल्द ही स्पॉटिफाई को एक पॉपुलर म्यूजिक स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म बना दिया. स्पॉटिफाई के पास विशालतम कैटलॉग है जिसमें आप अपनी लैंग्वेज और कैटेगरी के हिसाब से प्लेलिस्ट बना सकते हैं. रेवेन्यू के लिए स्पॉटिफाई freemium मॉडल इस्तेमाल करता है जिसके तहत पहले यूजर को बेसिक, लिमिटेड और विज्ञापन के साथ वाला फ्री सब्सक्रिप्शन दिया जाता है. बाद में आप चाहें तो सब्सक्रिप्शन लेकर अनलिमिटेड प्रीमियम सर्विस का हकदार बन जाते है.
‘ग्राहक ही भगवान है‘ में छुपा है कामयाबी का फॉर्मूला
कारोबारी साल 2023 के आंकड़े बताते हैं कि तमाम दिग्गज प्लेयर्स की मौजूदगी के बावजूद भारत में स्पॉटिफाई का दबदबा बरकार है. Redseer की ताज़ा स्टडी बताती है कि FY23 में भारत के म्यूजिक और ऑडियो स्ट्रीमिंग मार्केट में स्पॉटिफाई का शेयर 26 परसेंट रहा. इस मुकाबले में स्पॉटिफाई ने रिलायंस के JioSaavn, एयरटेल के Wynk, टाइम्स ग्रुप के Gaana, Apple Music, YouTube Music और Amazon Prime Music सबको पछाड़ दिया है. स्पॉटिफाई की खूबी ये है कि वो आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस की मदद से कुछ ही सेकेंड्स में यूजर को उसके फेवरिट म्यूजिक का खजाना परोस देता है. किसी आर्टिस्ट के लिए भी इसे यूज करना और इसकी मदद से ट्रेंड पकड़ना बहुत आसान है. यही वजह है कि स्पॉटिफाई बड़ी तादाद में 15-30 साल के फर्स्ट टाइम लिसनर्स को OTT ऑडियो मार्केट से जोड़ने में कामयाब हुआ है.
04:53 PM IST