Rakesh Jhunjhunwala: इन दो 'टिप्स' ने राकेश झुनझुनवाला को बना दिया अरबपति
Rakesh Jhunjhunwala Death: बाजार का ये लंबा सप्ताहांत यानी लॉन्ग वीकेंड शेयर बाजार और निवेश की दुनिया में दिलचस्पी रखने वालों को लंबा दुख दे गया. बाजार के जिस बुल की बुलंदियों से सीख लेकर लोग भविष्य के पोर्टफोलियो तैयार कर रहे थे वो बुल इस दुनिया को अलविदा कहकर चला गया.
Rakesh Jhunjhunwala: इन दो 'टिप्स' ने राकेश झुनझुनवाला को बना दिया अरबपति (Zee Business)
Rakesh Jhunjhunwala: इन दो 'टिप्स' ने राकेश झुनझुनवाला को बना दिया अरबपति (Zee Business)
Rakesh Jhunjhunwala Death: बाजार का ये लंबा सप्ताहांत यानी लॉन्ग वीकेंड शेयर बाजार और निवेश की दुनिया में दिलचस्पी रखने वालों को लंबा दुख दे गया. बाजार के जिस बुल की बुलंदियों से सीख लेकर लोग भविष्य के पोर्टफोलियो तैयार कर रहे थे वो बुल इस दुनिया को अलविदा कहकर चला गया. राकेश झुनझुनवाला (Rakesh Jhunjhunwala), दिग्गज निवेशक, स्टॉक मार्केट (Stock Market) के बुल और मार्केट में धैर्य से लंबे वक्त के निवेश की सफलता के परिचायक और पर्याय अब हमारे बीच नहीं है. मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में रविवार सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली. महज 62 साल की उम्र में दुनिया को छोड़ने वाले झुनझुनवाला अपने पीछे अपनी कहानी छोड़ गए हैं.
ये कहानी आने वाले कई सालों तक भारत स्टॉक मार्केट में नए से लेकर पुराने निवेशकों का भविष्य गढ़ने की क्षमता रखती है. किसी परीलोक से सपने जैसी लगने वाली ये कहानी शुरु होती है 5 जुलाई 1960 से. ये वो तारीख थी जब मुंबई में मॉनसून दस्तक दे चुका था. उस जमाने में अपने काम में बेहद निपुण भारत सरकार के एक आयकर अधिकारी राधेश्याम जी झुनझुनवाला के घर एक बच्चे का जन्म होता है. कोई नहीं जानता था कि ये बच्चा एक दिन मुंबई की दलाल स्ट्रीट का बादशाह बनकर प्रसिद्धि पाएगा. मां-बाप ने बड़े प्यार से नाम रखा राकेश.
आयकर अधिकारी पिता की पहली 'टिप'
आयकर अधिकारी पिता अक्सर अपने दोस्तों से उन दिनों स्टॉक मार्केट की चर्चा किया करते थे. शेयरों में उतार चढ़ाव, बेचने खरीदने की बातें पर्दे के पीछे से जब छुटका राकेश सुनता तो कौतुहल से उसके कान खड़े हो जाते. दोस्तों की विदाई के बाद उत्सुक राकेश दौड़ के पिता के पास आता और सवालों की झड़ी लगा देता. शेयर क्या होता, कंपनी कैसे काम करती है और भाव उपर नीचे कैसे होते हैं.
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ऐसे तमाम सवाल पिता के सामने पटक दिए जाते. पिता ने पहले पहल हल्के फुल्के अंदाज में कुछ कुछ सवालों के जवाब दिए लेकिन राकेश के सवाल और गहरा जाते. थक कर या शायद मानव स्वभाव में झुंझलाकर पिता ने राकेश को आदेश दिया कि जाओ अखबार पढ़ो और खुद जानकारी जुटाओ. अखबार...जी हां राकेश के लिए ये शेयर बाजार की पहली टिप थी. राकेश अखबारों में डूब गए. अखबारों में लिखे शब्दों से कंपनियों के कामकाज और मैनेजमेंट को समझने लगे और धीरे-धीरे राकेश, मार्केट के बिग बुल राकेश झुनझुवाला का आकार लेने लगा. कंपनी के मैनेजमेंट का लगातार और गहरा अध्ययन राकेश झुनझुनवाला ने अपने पिता से ही सीखा और इसी टिप के चलते भारत के सबसे अमीर लोगों की श्रेणी में शुमार हो गए.
वो दूसरी 'टिप' जिसने रातों-रात गेम 'पलट' दिया
बताया जाता है कि राकेश झुनझुनवाला ने पहला निवेश मात्र 14 साल की उम्र में किया. शायद उनका ये खुद को आंकने का पहला टेस्ट था. उनकी नजर में वो सफल रहे और जिंदगी की राह मुंबई की दलाल स्ट्रीट से गुजारने की ठान डाली. राकेश ने ग्रैजुएशन किया और फिर क्वालिफाइड चार्टेड अकाउंटेंट भी बन गए. फिर आया 1985 का वो दौर जब मार्केट का ये भावी बुल बाजार में अखाड़े में कूदने को तैयार था. लेकिन यहां कहानी में एक ट्विस्ट आता है. बाजार खाली हाथ नहीं उतरा जाता.
पैसा न हो तो फिर पैसा कैसे बने? हर नौजवान की तरह राकेश ने पिता से पैसा मांगा तो पिता ने पैसे देने की जगह उन्हें टिप देना मुनासिब समझा. ये टिप थी, खुद से पैसा कमाओ और फिर निवेश करो. राकेश समझ गए थे, मुठ्ठीभर पैसों से राकेश ने 1985 में ने टाटा टी के 5000 शेयर खरीद लिए. तब इस शेयर का भाव 43 रुपये प्रति शेयर था. तीन महीनों में टाटा टी के शेयर की कीमत 43 रुपये से बढ़कर 143 रुपये के लेवल पर पहुंच गई और इस तरह बाजार में छोटे निवेश से बड़ी कमाई का पहला पड़ाव पार हुआ. लेकिन मार्केट अभी राकेश की कड़ी और कड़वी परीक्षाएं लेने को तैयार था.
90 के दौर का झुनझुनवाला फॉर्मूला
शेयर मार्केट में ये दौर था ले फटाफट और दे फटाफट का, मारो और भागो का. राकेश झुनझुनवाला साफगोई से अपने ट्रेड की कहानियां सबको सुनाते हैं. जाहिर है इसका कुछ फायदा राकेश को हुआ भी. लेकिन राकेश के निवेश का ये दर्शन कुछ और ही था. राकेश झुनझुनवाला ने निवेश का मिलाजुला फॉर्मूला अपनाया. इस फॉर्मूला ट्रेडिंग और शॉर्ट टर्म का रिस्क तो शामिल था लेकिन यहां से पैसा कमाकर आखिरकार उसे निवेश किया जाता है लॉन्ग टर्म में. राकेश झुनझुनवाला जानते थे कि बुल बनने के लिए लंबी रेस का घोड़ा बनना भी जरूरी है.
निवेश करना सिखाया नहीं जा सकता!
राकेश झुनझुनवाला मानते थे इंसान से गलती होना बेहद सामान्य बात है. लेकिन गलतियों को दोहराना निवेशक की प्रवृति नहीं होनी चाहिए. वो कहते थे कि दुनिया में कोई भी किसी को निवेश करना नहीं सिखा सकता. निवेशक गलतियों से ही निवेश करना सीखता है. इसी सिद्धांत पर आगे बढ़ते बढ़ते, गलतियों से सीखते सीखते, शेयर बाजार का सम्मान करते करते और भारत की विकास यात्रा में अटूट विश्वास से राकेश झुनझुनवाला, शेयर बाजार में निवेश का प्रतीक और भारत के वॉरेन बफे बन गए. हालांकि वो दूसरों को अपनी नकल करने से रोकते थे. वे कहते कि मेरे कहने पर मत चलो, क्योंकि ये उधार में लिया हुआ ज्ञान होगा. अपने ज्ञान से सफल होने में ज्यादा मजा है.
भारत और भारतीयों को सबसे अच्छी तरह समझने वाले शख्स
उदारीकरण से पहले के दौर का ये दिग्गज निवेशक भारत की विकास यात्रा की भविष्यवाणी उस वक्त कर चुका था जब भारत सरकार के बड़े बड़े मंत्री, अर्थशास्त्री और एजेंसियों की रिपोर्ट कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थे. राकेश झुनझुनवाला भविष्य देखने की काबिलियत रखते थे. 5000 रुपए से 40 हजार करोड़ रुपए की वेल्थ की इस यात्रा को भारत की जनता से अपनी आखों से बीते 3 दशकों के दर्म्यान देखा. भविष्य कहां है ये वो अपने बारीक विश्लेषण से समझ जाते. चाय से लेकर घड़ी और गहनों तक और गेमिंग से लेकर बैंकिंग तक. राकेश झुनझुनवाला भारत और भारतीयों को इतना अच्छे से समझते थे कि उनके भविष्य की दिलचस्पियों से पहले ही भांप लेते थे. भारत की विकासगाथा में झुनझुनवाला का अटूट विश्वास इतना था कि वो पूरी शक्ति से हर मंच पर भारत के भविष्य की गारंटी लेते सुनाई पड़ते. यही वजह है कि राकेश झुनझुनवाला जब भी किसी कंपनी में निवेश करते वो खबर बन जाती और लोग उसकी चर्चा करने लगते कि आखिर राकेश झुनझुनवाला ने भविष्य में क्या देख लिया.
लंबे दौर के निवेश के नायक
राकेश झुनझुनवाला की कहानी भारतीय मिडिल क्लास की अमीर बनने की भावनाओं से जुड़ी है. राकेश रातों रात अमीर नहीं हुए, वो पिता या खानदान के पैसे से अमीर नहीं हुए, वो बहुत ज्यादा रिस्क लेकर अमीर नहीं हुए और ना ही बैंक से करोड़ों का कर्ज लेकर किसी वेंचर को शुरु कर अमीर हुए. राकेश झुनझुनवाला लगभग कुछ नहीं बेचकर अरबपति बनने की कहानी है. और इस कहानी का मूल मंत्र है धैर्य और लंबी अवधि का निवेश.
राकेश झुनझुनवाला के निवेश जीवनकाल में बाजार में कमजोरियां भी आई, कुछ एक मंदी के मौके भी आए, 2008 में उनके पोर्टफोलियो ने 30 फीसदी का गोता भी लगाया. लेकिन राकेश का निवेश और भरोसा अंगद के पांव की तहत डिगा नहीं. उनके निवेश मंत्रों ने कई निवेशकों के जीवन में सकारात्मकता दी. वो जानते थे बाजार में डूबने से बचने का एक ही उपाय है, निवेश में लंबी अवधी के लिए डूब जाओ. शेयर बाजार और आम आदमी को शेयर बाजार में भविष्य, भरोसे और सफलता की आकांक्षाओं से जोड़ने वाला बिग बुल अब हमारे बीच नहीं है. उनकी कहानी आने वाले कई सालों तक हिन्दुस्तान के आम आदमी के लिए निवेश में प्रवेश की प्रेरणा बनी रहेगी.
12:00 PM IST