Startup Story: हिमालय की गोद से ढूंढा 'रिंगाल', बनाईं खास चीजें, बॉलीवुड से लेकर सियाचिन तक पहुंच रहे इनके प्रोडक्ट!
क्या आपको वो वक्त याद है, जब आपके घर में डलिया हुआ करती थीं. जी हां, लकड़ी और बांस से बनी हुई छोटी-छोटी टोकरी. जैसे-जैसे आधुनिकता आती गई, वो परंपरागत चीजें खत्म होती चली गईं, लेकिन उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के स्टार्टअप (Startup) हिम शिल्पी (Him Shilpi) ने उसे फिर से जिंदा कर दिया है.
क्या आपको वो वक्त याद है, जब आपके घर में डलिया हुआ करती थीं. जी हां, लकड़ी और बांस से बनी हुई छोटी-छोटी टोकरी. जैसे-जैसे आधुनिकता आती गई, वो परंपरागत चीजें खत्म होती चली गईं, लेकिन उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के स्टार्टअप (Startup) हिम शिल्पी (Him Shilpi) ने उसे फिर से जिंदा कर दिया है. यह स्टार्टअप सिर्फ छोटी डलिया या टोकरी ही नहीं बनाता, बल्कि बहुत सारी चीजें बनाता है, जो हैंडमेड होती हैं. आइए जानते हैं कैसे ये स्टार्टअप उन पुरानी यादों को एक नए अंदाज में आपके सामने पेश कर रहा है.
हिम शिल्पी की शुरुआत पिथौरागढ़ के राजेंद्र पंत, निर्मल पंत और पंकज ने अगस्त 2021 में की थी. मौजूदा वक्त में कंपनी पूरे उत्तराखंड में अपने प्रोडक्ट डिलीवर करती है. इनके प्रोडक्ट कितने खास हैं, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि सरकारी विभागों में गिफ्टिंग के लिए भी इनके प्रोडक्ट गए हैं. यहां तक कि इनके प्रोडक्ट माइक्रोसॉफ्ट तक पहुंचे हैं. वहीं बॉलीवुड के अर्जुन कपूर और परिणीति चोपड़ा ने भी इस स्टार्टअप के हैंडमेड प्रोडक्ट्स खरीदे हैं.
कहां से आया ऐसा आइडिया?
राजेंद्र पंत को पर्यावरण से काफी लगाव है. वह हमेशा पर्यावरण के लिए कुछ करना चाहते थे. उन्होंने कुछ सालों तक अलग-अलग नौकरियां कीं, लेकिन अंत में बिजनेस शुरू करने का फैसला किया. वह एग्रीकल्चर से जुड़ा कुछ काम करना चाहते थे. इसी बीच उन्हें नाबार्ड और टाटा की तरफ से एक छोटा सा फंड मिला, जिसके तहत उन्हें एग्रीकल्चर से जुड़ा एक छोटा सा काम करना था.
TRENDING NOW
FD पर Tax नहीं लगने देते हैं ये 2 फॉर्म! निवेश किया है तो समझ लें इनको कब और कैसे करते हैं इस्तेमाल
8th Pay Commission: केंद्रीय कर्मचारियों के लिए ताजा अपडेट, खुद सरकार की तरफ से आया ये पैगाम! जानिए क्या मिला इशारा
धीरे-धीरे वह एग्रीकल्चर से जुड़े काम आगे बढ़ाते गए और इसी बीच देखा कि किसानों की फसलों को जंगली जानवरों से काफी नुकसान हो रहा था. ऐसे में उन्होंने ट्री क्रॉप फार्मिंग की सोची, जिससे जंगली जानवरों से फसल को कोई खतरा ना हो. ऐसे में तय किया गया कि नीचे की घाटी में बांस, अखरोट, चूक, शहतूत जैसे पेड़ लगाए जाएंगे और ऊपर की घाटी में रिंगाल (बांस जैसा दिखने वाला प्रोडक्ट) जैसी प्रजातियों की खेती की जाएगी.
रिंगाल से बने ट्री गार्ड ने सबको किया इंप्रेस
जब वह ट्री गार्ड यानी चारदीवारी बना रहे थे तो उन्होंने सोचा कि पुराने भंडारण के तरीके लुप्त हो गए हैं और उस दिशा में कोई काम करना चाहिए. उन्होंने रिंगाल की मदद से जो ट्री गार्ड बनाया, उसे देखने के लिए विशेषज्ञों की टीम भी पहुंची और राजेंद्र पंत को समझ आया कि इसमें काफी स्कोप है. इसके बाद उन्होंने रिंगाल से पुराने तरीकों से बनने वाली डलिया, टोकरी, बैग आदि चीजें बनानी शुरू कर दीं.
ये सारी चीजें बनाना आसान नहीं होता, इसके लिए ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है. उन्होंने बहुत सारी महिलाओं को ट्रेनिंग दी और परंपरागत चीजें बनाना सिखाया. अब तक वह करीब 500 महिला और पुरुषों को ट्रेनिंग दे चुके हैं. जब उन्होंने पहली एग्जिबिशन में हिस्सा लिया, तो लोगों को इसके बारे में पता चला और 2017 से ही इन प्रोडक्ट्स की लोकप्रियता बढ़ने लगी और 2021 में उन्होंने बिजनेस बढ़ाने के लिए स्टार्टअप हिम शिल्पी की शुरुआत की.
क्या है रिंगाल?
रिंगाल दिखने में काफी हद तक पतले बांस जैसा होता है. इसकी मोटी करीब आधा इंच होती है और लंबाई करीब 15-20 फुट तक हो सकती है. बता दें कि उत्तराखंड के रिंगाल को जीआई टैग मिला हुआ है. यह उत्तराखंड, हिमाचल और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में ही पाया जाता है. इसकी सबसे अच्छी बात ये है कि इसे किसी ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं होती है. बता दें कि बांस का कैमिकल से ट्रीटमेंट किया जाता है, ताकि उसमें फंगस ना लगे. राजेंद्र बताते हैं कि अगर रिंगाल में पानी ना लगे तो इससे बने प्रोडक्ट्स को 20-25 साल तक भी कुछ नहीं होता है.
शिपमेंट है सबसे बड़ी चुनौती
राजेंद्र पंत बताते हैं कि अभी उन्हें सबसे बड़ी दिक्कत अपने प्रोडक्ट्स के शिपमेंट में आ रही है. दरअसल, इस स्टार्टअप के प्रोडक्ट काफी बड़े हैं, जिसके चलते उनकी डिलीवरी करने में दिक्कतें आ रही हैं.
सियाचिन तक पहुंची इनकी बनाई राखियां
राजेंद्र बताते हैं कि उनके स्टार्टअप ने रिंगाल से राखियां भी बनाईं. उन्होंने कहा कि कभी भी सियाचिन के जवानों के पास राखी नहीं पहुंच पाती थी, उनकी बनाई राखियां वहां तक जा पहुंचीं. सियाचिन तक अपनी राखियां पहुंचा कर राजेंद्र पंत बहुत ही खुश हैं.
आईआईएम काशीपुर से मिला 5 लाख रुपये का ग्रांट
हिम शिल्पी को आईआईएम काशीपुर की तरफ से सीड फंड स्कीम के तहत चुना गया था. इसके तहत उन्हें आईआईएम काशीपुर की तरफ से 5 लाख रुपये का ग्रांट दिया गया है. राजेंद्र ने बताया कि अपने प्रोडक्ट बनाने में इस्तेमाल होने वाली एक खास मशीन उन्होंने बनाई है, जिसका वह पेटेंट भी कराएंगे और ग्रांट से मिले पैसों से उन्हें मशीन को बेहतर करने समेत अपना बिजनेस बढ़ाने तक में मदद मिलेगी. इस ग्रांट से पहले वह अपने खुद के करीब 5 लाख रुपये इस स्टार्टअप में लगा चुके हैं. राजेंद्र पंत का फोकस भविष्य में अपने बिजनेस को बढ़ाने में होगा.
10:45 AM IST