Mutual Funds: कम्पाउंडिंग चार्ट पर जरूर रखें नजर, एक्सपर्ट की सलाह- नुकसान दिखें तो फौरन उठाए ये कदम
Mutual Funds: म्यूचुअल फंड्स में निवेश लंबी अवधि के नजरिए से हमेशा फायदेमंद रहता है. ऐसा इसलिए क्योंकि लंबी अवधि के निवेश में निवेशकों को कम्पाउंडिंग का तगड़ा फायदा मिलता है. लेकिन, ऐसा जरूरी नहीं कि हर फंड में हमेशा कम्पाउंडिंग पॉजिटिव रहे.
(Representational Image)
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Mutual Funds: म्यूचुअल फंड्स में निवेश लंबी अवधि के नजरिए से हमेशा फायदेमंद रहता है. ऐसा इसलिए क्योंकि लंबी अवधि के निवेश में निवेशकों को कम्पाउंडिंग का तगड़ा फायदा मिलता है. लेकिन, ऐसा जरूरी नहीं कि हर फंड में हमेशा कम्पाउंडिंग पॉजिटिव रहे और वेल्थ क्रिएशन होता रहे. कई स्कीम्स में कम्पाउंडिंग चार्ट पॉजिटिव की बजाय निगेटिव भी हो जाता है. असल में इसे निगेटिव कम्पाउंडिंग (Negative Compounding) कहते हैं. एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर निवेशक अपने पोर्टफोलियो को लेकर अलर्ट है, तो वह निगेटिव कम्पाउंडिंग से बच सकता है.
क्या होती है निगेटिव कम्पाउंडिंग
BPN फिनकैप के डायरेक्टर अमित कुमार निगम कहते हैं, यह बात सही है कि वेल्थ क्रिएशन में हमेशा कम्पाउंडिंग की पावर काम आती है. लेकिन, निवेशकों को समय-समय पर निगेटिव कम्पाउंडिंग से बचने के भी कदम उठाने चाहिए. इसे ऐसे समझते हैं, मान लीजिए आपके पोर्टफोलियो में दो फंड हैं. एक स्कीम ने 20 फीसदी सालाना का रिटर्न दिया. जबकि, दूसरी स्कीम ने इसी अवधि में 15 फीसदी का निगेटिव रिटर्न रहा. यानी, आपका नेट रिटर्न महज 5 फीसदी रहा. इसमें अगर 6 फीसदी औसतन महंगाई दर को एडजस्ट कर लें, तो आपका रिटर्न निगेटिव हो जाएगा. इसका मतलब कि आपको एक स्कीम से कम्पाउंडिंग का जिस तरह जबरदस्त फायदा हो रहा है, दूसरी स्कीम उसे खत्म कर रही है.
निगेटिव कम्पाउंडिंग: निवेशक ऐसे बचें
अमित निगम का कहना है, आमतौर पर यह देखने को मिलता है कि जिन स्कीम का रिटर्न लगातार निगेटिव या कम बना हुआ है, उसमें वह इस उम्मीद में बना रहता है कि आगे तेजी आएगी. जबकि, फैसला इससे विपरीत लेना चाहिए. जो स्कीम अच्छा परफॉर्म कर रही है, उससे पैसा निकालने की बजाय हमेशा ऐसी स्कीम से बाहर निकलिये जो आपके पोर्टफोलियो की परफॉर्मेंस को कमजोर कर रही हैं.
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निगेटिव कम्पाउंडिंग से बचने के लिए निवेशक के लिए सबसे जरूरी बात यह है कि उसे अपने पोर्टफोलियो की समय-समय पर रिव्यू करनी चाहिए. ऐसी स्कीम से दूरी बनाइए, जिसका प्रदर्शन लगातार अच्छा नहीं है. किसी की भी सलाह या दूसरों को देखकर फंड न चुनें. फंड हमेशा अपने गोल, रिस्क क्षमता को देखकर ही चुनें.
उनका कहना है, जिस प्रोडक्ट के बारे में समझ न हो, उसे दूरी बना लेनी चाहिए. एक अहम बात यह कि एक्सपेरिमेंट करने के चक्कर में आमतौर पर निवेशकों का पैसा डूब जाता है. इसलिए ऐसा न करें. अगर प्रोडक्ट की समझ है, तो ठीक है वर्ना एडवाइजर से परामर्श जरूर करनी लें.
(डिस्क्लेमर: म्यूचुअल फंड में निवेश बाजार के जोखिमों के अधीन है. निवेश से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें.)
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08:09 AM IST