5 महीने की बच्ची का लीवर ट्रांसप्लांट कर डॉक्टरों ने रचा इतिहास, 10 घंटे तक चली सर्जरी
भारत मे पहली बार है जब 5 महीने की बच्ची का एक्यूट लिवर फेल्यर होने की वजह से लिवर ट्रांसप्लांट करा गया. इस सर्जरी में 10 घंटे लगे जबकि इसकी तैयारी 18 घंटे से चल रही थी.
कई बार छोटे बच्चों में लीवर ट्रांसप्लांट किया जा चुका है लेकिन ये मामला अपने आप में अनोखा है. (फोटो : Zee Business)
कई बार छोटे बच्चों में लीवर ट्रांसप्लांट किया जा चुका है लेकिन ये मामला अपने आप में अनोखा है. (फोटो : Zee Business)
जिंदगी और मौत के बीच जूझती 5 महीने की मासूम अरियाना के मां-बाप को जब उसकी बीमारी का पता चला तो उसे लेकर कोलकाता के हर बड़े अस्तपताल घूमे. लेकिन सभी ने बच्ची की नाजुक उम्र देखते हुए बचने की बहुत कम गुंजाइश बताई. बच्ची की बिगड़ती हालात देख कर मां-बाप फौरन उसे दिल्ली लेकर आए. यहां के अस्पताल पहुंचने तक बच्ची की हालत ज्यादा बिगड़ चुकी थी, उसके मुंह से खून आ रहा था. इसलिए डॉक्टरों ने बच्ची के लीवर ट्रांसप्लांट की तैयारी शुरू कर दी.
मैक्स अस्पताल के पित्त विज्ञान केंद्र के डायरेक्टर डॉ सुभाष गुप्ता ने बताया कि आरियाना के मामले में तुरंत ट्रांसप्लांट करना ही एकमात्र विकल्प था क्योंकि उसके लीवर ने काम करना बिल्कुल बंद कर दिया था. आमतौर पर 1 साल से कम उम्र की बच्चे का ट्रांसप्लांट करना बहुत कठिन है. 30 साल के इंसान के लिवर को 1 बच्चे में फिट करना अपने आप मे चुनौती है. उन्होंने कहा कि मैंने पिछले 30 साल में ऐसा केस कभी नहीं देखा.
पहली बार इतनी छोटी बच्ची की बची जान
भारत मे पहली बार है जब 5 महीने की बच्ची का एक्यूट लिवर फेल्यर होने की वजह से लिवर ट्रांसप्लांट करा गया. इस सर्जरी में 10 घंटे लगे जबकि इसकी तैयारी 18 घंटे से चल रही थी. इससे पहले कई बार छोटे बच्चों में लीवर ट्रांसप्लांट किया जा चुका है लेकिन ये मामला अपने आप में अनोखा है
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बच्ची का केस अलग
आम तौर पर जब भी 1 साल से कम उम्र के बच्चों में लीवर से संबंधित जो परेशानियां पैदा होती हैं, वह पता चल जाती हैं और उनका इलाज करने के लिए डॉक्टर के पास काफी समय होता है लेकिन अरियाना का केस अलग था. यह एकदम स्वस्थ थी और अचानक एक दिन उसे जॉन्डिस के साथ-साथ उल्टियां होनी शुरू हो गईं. जांच करने पर सामने आया कि उसके लीवर ने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया है और ट्रांसप्लांट के अलावा इसका कोई और विकल्प नहीं था.
पहले ही हो गए थे टेस्ट
मैक्स सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के पीडियाट्रिक हेप्टोलॉजी के डॉक्टर शरत वर्मा के मुताबिक पहले बच्ची को पिता का लीवर लगाया जाना था लेकिन लीवर बड़ा होने के वजह से फिर मां का लीवर लगाया गया. कोलकाता के अस्पताल में शुरुआती टेस्ट कर लिए गए थे. जब बच्ची को दिल्ली लाया जा रहा था तब तक लगातार कोलकाता के डॉक्टरों से संपर्क किया गया और जैसे ही बच्ची दिल्ली एयरपोर्ट पहुंची वहाँ पहले से ही एम्बुलेंस तैयार थी, जिसमें डॉक्टर मौजूद था. छोटे बच्चों में लीवर फेल्यर का कारण इन्फेक्शन हो सकता है, जिसमें शुरुआती लक्षण जॉन्डिस होता है.
मां ने दान किया लीवर
आरियाना को अंग दान करने वाली उनकी मां श्यानतानी डे ने बताया कि आरियाना जन्म के समय बिल्कुल स्वस्थ थी. एक बार जॉन्डिस हुआ था और उस से पूरी तरह रिकवर कर चुकी थी. अचानक से एक दिन उसको तेज़ बुखार हुआ और आंखे पीली पड़ने लगी. डायपर बदलते वक्त हमने देखा कि उसका पेशाब नारंगी से रंग का था. हमने उसको कोलकाता के एक बड़े अस्पताल में भर्ती करवाया. वहां के डॉक्टरों ने कह दिया कि आपकी बच्ची सिर्फ 5 दिन की मेहमान है लेकिन फिर भी अगर आप कोशिश करना चाहते हैं तो बच्ची को दिल्ली मैक्स अस्तपाल के डॉ सुभाष गुप्ता के पास ले जाइए. डॉ सुभाष ने मेरी बच्ची को जीवन दान दिया है. उसको एक नई जिंदगी मिली है.
लिवर ट्रांसप्लांट का खर्च
PGI में लिवर ट्रांसप्लांट पर खर्च करीब 15 लाख रुपए का आता है. हालांकि प्राइवेट अस्पताल में यह खर्च कहीं अधिक है. डॉक्टरों की मानें तो प्राइवेट अस्पतालों में इस प्रक्रिया पर 25 लाख रुपए तक खर्च आता है.
11:27 AM IST