MDH मसाले के मालिक को मिला पद्म भूषण, खुद पीसते थे मसाले, आज है अरबों का कारोबार
MDH मसालों के विज्ञापनों से घर-घर में पहचान बना चुके इसके मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को पद्म भूषण से सम्मानित किया.
एक तांगे वाले से अरबपति बनने की उनकी ये कहानी कड़ी मेहनत और लगन का नतीजा है (फोटो- पीआईबी/फाइल).
एक तांगे वाले से अरबपति बनने की उनकी ये कहानी कड़ी मेहनत और लगन का नतीजा है (फोटो- पीआईबी/फाइल).
MDH मसालों के विज्ञापनों से घर-घर में पहचान बना चुके इसके मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को पद्म भूषण से सम्मानित किया. एमडीएच (MDH) मसाले का पूरा नाम महाशियां दी हट्टी है और इसे भारतीय खाद्य उद्योग में कामयाबी की एक बड़ी मिसाल माना जाता है. लेकिन इस कंपनी को इस मुकाम तक पहुंचाने वाले 95 वर्षीय धर्मपाल गुलाटी का सफर आसान नहीं था. धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1927 को पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था. उन्होंने 1933 में 5वीं कक्षा की पढ़ाई बीच में छोड़ दी और कुछ साल बाद पिता की मदद से शीशे का छोटा सा बिजनेस शुरु किया. उसके बाद साबुन और दूसरे कई कारोबार किए लेकिन उनका मन नहीं लगा. उन्होंने बाद में मसालों का कारोबार शुरू किया, जो उनका पुश्तैनी कारोबार था.
कुछ समय तांगा चलाया
हमारी सहयोगी बेवसाइट जी न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक भारत बंटवारे के वक्त 27 सिंतबर 1947 में महाशय जी भारत आ गए. उनकी जेब में सिर्फ 1500 रुपए थे. उन्होंने 650 रुपए में एक तांगा खरीदा और चलाने लगे. वह दो आना प्रति सवारी लेते थे. उन्होंने ने कई बार अपने तांगे पर गांधीजी को बिठाकर शहर घुमाया है. उसके बाद उन्होंने एक खोखा खरीदा और उसमें अपना मसालों का बिजनेस देगी मिर्च वालों के नाम से फिर से शुरु किया. 10 अक्टूबर 1948 में धर्मपाल ने अपना तांगा और घोड़ा बेच दिया. सियालकोट की एक बड़ी दुकान से उठ कर धर्मपाल का पूरा परिवार एक छोटे से खोखे में आ पहुंचा. लेकिन आगे चल कर धर्मपाल ने मिर्च मसालों का जो साम्राज्य स्थापित किया उसकी नींव इसी छोटे से खोखे पर रखी गई थी. अखबारों में विज्ञापन के जरिए जैसे-जैसे लोगों को पता चला कि सियालकोट की देगी मिर्च वाले अब दिल्ली में हैं धर्मपाल का कारोबार तेजी से फैलता चला गया.
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खुद पीसते थे मसाले
महाशय धर्मपाल के परिवार ने छोटी सी पूंजी से कारोबार शुरू किया था लेकिन, कारोबार में बरकत के चलते वह दिल्ली के अलग–अलग इलाकों में दुकान दर दुकान खरीदते चले गए. परिवार ने पाई–पाई जोड़कर अपने धंधे को आगे बढ़ाया और मिर्च-मसालों की बिक्री जब ज्यादा होने लगी तो उनकी पिसाई का काम घर के बजाए अब पहाड़गंज की मसाला चक्की में होने लगा था. सियालकोट के दिनों से ही मसालों की शुद्धता गुलाटी परिवार के धंधे की बुनियाद थी. यही वजह थी कि धर्मपाल ने मसाले खुद ही पीसने का फैसला कर लिया. लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था. वो भी उन दिनों में जब बैंक से कर्ज लेने का रिवाज नहीं था. लेकिन महाशय धर्मपाल की ये मुश्किल ही उनकी कामयाबी की वजह बन गई. गुलाटी परिवार ने 1959 में दिल्ली के कीर्ति नगर में मसाले तैयार करने की अपनी पहली फैक्ट्री लगाई थी. 93 साल के लंबे सफर के बाद सियालकोट की महाशियां दी हट्टी आज दुनिया भर में एमडीएच के रूप में मसालों का ब्रांड बन चुकी है.
आज है अरबों रुपये का कारोबार
धर्मपाल मसालों की दुनिया में आज बेमिसाल हैं. उनकी कंपनी सालाना अरबों रुपयों का कारोबार करती है. लेकिन एक तांगे वाले से अरबपति बनने की उनकी ये अदभुत कामयाबी 60 सालों की कड़ी मेहनत और लगन का नतीजा है. दौलत के ढेर पर बैठ कर आज भी महाशय धर्मपाल ईमानदारी, मेहनत और अनुशासन का पुराना पाठ भूले नहीं है. यही वजह है कि आज उनके मसाले दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में इस्तेमाल किए जाते हैं और इसके लिए उन्होंने देश और विदेश में मसाला फैक्ट्रियों का एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर दिया है.
दुबई में फैक्ट्री, लंदन, शारजाह, यूएस में ऑफिस है. MDH के पूरी दुनिया में डिस्ट्रिब्यूटर हैं. इसके अलावा गल्फ देशों में भी आपको एमडीएच के मसाले मिलेंगे. ऑस्ट्रेलिया चले जाएं, साउथ अफ्रीका चले जाएं, न्यूजीलैंड चले जाएं, हांगकांग, सिंगापुर यहां तक चीन और जापान में भी MDH है. 40 सुपर स्टॉक हैं पूरे इंडिया में और 1000 डिस्ट्रिब्यूटर हैं. हर महीने छह लाख आउटलेटस को केटर करते हैं.
(इनपुट जी न्यूज)
06:37 PM IST