तेल कीमतों में फिर लग सकती है आग, जानिए क्या है इसके पीछे का बड़ा कारण
ओपेक और गैर-ओपेक तेल उत्पादक देशों के बीच उत्पादन में कटौती पर सहमति की खबरों के बीच ‘ब्रेंट नार्थ सी’ कच्चा तेल शुक्रवार को पांच प्रतिशत महंगा हो गया.
तेल उत्पादक देशों ने कच्चे तेल की गिरती कीमतों को देखते हुए तेल के उत्पादन में कटौती करने का फैसला लिया है
तेल उत्पादक देशों ने कच्चे तेल की गिरती कीमतों को देखते हुए तेल के उत्पादन में कटौती करने का फैसला लिया है
पेट्रोल-डीजल के दामों में लगातार आ रही गिरावट से आम आदमी को राहत मिल रही है. लेकिन जिस समय हम तेल की गिरती कीमतों की खबर पर राहत महसूस कर रहे थे, ठीक उसी समय वियाना में पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) और उनके सहयोगी तेल उत्पादक देशों की बैठक में लिए गए फैसले से आम आदमी की यह खुशी काफूर होने लगी है. ओपेक और उसके सहयोगी तेल उत्पादक देशों ने फैसला लिया है कि वे अगले 6 महीने तक कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करेंगे. और यह फैसला भारत समेत उन देशों पर पूरी तरह असर दिखाएगा, जो अपनी जरूरत का ज्यादातर कच्चा तेल आयात करते हैं.
बता दें कि ओपेक और उसके सहयोगी तेल उत्पादक देशों ने छह महीने की अवधि के लिए 12 लाख बैरल प्रतिदिन की दर से कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती पर सहमत जताई है. यह अवधि एक जनवरी से लागू होगी. ईरान के तेल मंत्री बिजान जांगनेह ने 24 तेल उत्पादक देशों की बैठक खत्म होने के बाद मीडिया को इसकी जानकारी दी. झांगनेह ने कहा कि वह इस बात से संतुष्ट थे कि ईरान तेल उत्पादन में कटौती की प्रतिबद्धता से मुक्त बना रहेगा. दुनिया में कुल तेल उत्पादन का 81.89 फीसदी तेल ओपेक देश तैयार करते हैं.
फैसले का तुरंत असर
ओपेक और गैर-ओपेक तेल उत्पादक देशों के बीच उत्पादन में कटौती पर सहमति की खबरों के बीच ‘ब्रेंट नार्थ सी’ कच्चा तेल शुक्रवार को पांच प्रतिशत महंगा हो गया. इसके बाद कच्चा तेल की कीमत 63.07 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई और न्यूयॉर्क का वेस्ट टेक्सास इंटरमीडियट (डब्ल्यूटीआई) कच्चा तेल की कीमत में पांच प्रतिशत का उछाल दर्ज किया गया.
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किमतें गिरने से लिया फैसला
तेल उत्पादक देशों ने कच्चे तेल की गिरती कीमतों को देखते हुए तेल के उत्पादन में कटौती करने का फैसला लिया है. ओपेक देशों का कहना है कि कच्चे तेल का उत्पादन अधिक होने से तेल की कीमतें तेजी से नीचे गिरी हैं. बीते 22 नवंबर को क्रूड ऑयल की कीमत 63.48 डॉलर प्रति बैरल थी. इस कीमत में लगातार गिरावट आ रही है. 30 नवंबर को यह कीमत 58.71 पर पहुंच गई थी. तीन दिसंबर को कीमतों को थोड़ा बहुत उछाल आकर क्रूड ऑयल 61.69 डॉलर पर पहुंच गया. ओपेक देशों का कहना है कि बीते दो महीनों में तेल की कीमतें 30 फीसदी से भी ज्यादा गिरी हैं.
अक्टूबर में कच्चे तेल की कीमतें 81.03 डॉलर प्रति बैरल थीं. और क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों के चलते भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम (दिल्ली में) क्रमश: 83.73 और 75.09 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गए थे. पेट्रोल-डीजल के आसमान छूते दामों के चलते देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने लगा और केंद्र सरकार को ईंधन की कीमतों पर एक्साइज ड्यूटी कम करनी पड़ी थी.
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2008 में क्रूड ऑयल (WTI) की कीमतों में सबसे ज्यादा उछाल देखने को मिला था. 3 जुलाई, 2008 को कच्चे तेल की कीमतें रिकॉर्ड 145.29 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गई थीं.
भारत पर सबसे ज्यादा असर
ओपेक देशों द्वारा कच्चे तेल का उत्पादन कम करने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में उछाल आएगा और इसका सबसे ज्यादा असर भारत पर पड़ेगा. क्योंकि भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल आयात करता है. तेल आयात के मामले में भारत दुनिया का तीसरा बड़ा देश है.
05:11 PM IST