महिलाओं की लिपस्टिक खोल देती है राज, पता चलती है देश से जुड़ी ये अहम बात
महिलाओं की लिपस्टिक किसी भी देश की आर्थिक स्थिति के बारे में बता सकती है. दरअसल, लिपस्टिक एक इंडेक्स है जिससे देश की आर्थिक मंदी का पता लगाया जाता है.
किसी अर्थव्यवस्था में लिपस्टिक की बिक्री के माध्यम से लंबे समय की मंदी का अनुमान लगाया जा सकता है. (फोटो: रॉयटर्स)
किसी अर्थव्यवस्था में लिपस्टिक की बिक्री के माध्यम से लंबे समय की मंदी का अनुमान लगाया जा सकता है. (फोटो: रॉयटर्स)
लिपस्टिक को हमेशा ही महिलाओं के ब्यूटी प्रोड्क्ट के तौर पर देखा जाता था, लेकिन लिपस्टिक से किसी देश की हालत का भी पता लगता है ये सुनना शायद अजीब लगे. जी हां, महिलाओं की लिपस्टिक किसी भी देश की आर्थिक स्थिति के बारे में बता सकती है. दरअसल, लिपस्टिक एक इंडेक्स है जिससे देश की आर्थिक मंदी का पता लगाया जाता है. आज हम आपको ऐसे ही कुछ और इंडेक्स के बारे में बताएंगे, जिनके बारे में शायद आपने पहले नहीं सुना होगा.
लिपस्टिक इंडेक्स
पिछले एक दशक में प्रसिद्ध हुए सूचकांकों में से एक लिपस्टिक इंडेक्स है, जिसकी मदद से आर्थिक मंदी का पता लगाया जाता है. कई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि आर्थिक हालात बेहतर होने पर महिलाएं ज्यादा कपड़े खरीदती हैं, जबकि इसकी तुलना में मंदी में महिलाएं लिपस्टिक ज्यादा खरीदती हैं. किसी अर्थव्यवस्था में लिपस्टिक की बिक्री के माध्यम से लंबे समय की मंदी का अनुमान लगाया जा सकता है.
मंदी में महिलाओं का लिपस्टिक पर होता है अधिक खर्च
मुश्किल हालात में महिलाएं ज्यादा आकर्षक दिखने के लिए लिपस्टिक पर अधिक पैसे खर्च करने लगती हैं. यह देखा गया है कि ऐसे वक्त में महिलाओं की दिलचस्पी कपड़े, जूते, पर्स आदि से घटकर लिपस्टिक की तरफ मुड़ जाती है. मंदी की स्थिति में जहां एक ओर हर प्रोडक्ट की सेल घटती है, वहीं दूसरी ओर लिपस्टिक की सेल बढ़ने लगती है.
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1990 के दशक में बना था ये इंडेक्स
महिलाओं के इस व्यवहार को देखते हुए 1990 के दशक में एसटी लाउडर के चेयरमैन लियोनार्ड लाउडर ने एक इंडेक्स बनाया था, जो ऐसी स्थिति में इकोनॉमिक हेल्थ के इंडिकेटर की तरह काम करता है.
ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस इंडेक्स
भूटान ने 1971 से तरक्की को मापने के लिए जीडीपी को सिरे से खारिज कर रखा है. 1972 में भूटान नरेश जिग्मे सुंग वांगचुक ने दुनिया को सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता (ग्रॉस नेशनल हेप्पीनेस-जीएनएच) नापने का रास्ता दिखाया था. राष्ट्रीय प्रसन्नता नापने का एक फॉर्मूला भूटान स्टडीज सेंटर के मुखिया करमा उपा और कनाडियन डॉक्टर माइकल पेनॉक ने निकाला था. यह दुनिया से हटकर बिल्कुल नया नजरिया था. जो सकल राष्ट्रीय खुशहाली के औपचारिक सिद्धांत के तहत संपन्नता को मापता है.
प्रकृति की रक्षा के बिना नहीं रह सकता कोई खुश
जीएनएच में प्राकृतिक वातावरण के साथ ही लोगों के आध्यात्मिक, भौतिक, सामाजिक और स्वास्थ्य को शामिल किया गया है. इसका सूचकांक बनाने का आधार समान सामाजिक विकास, सांस्कृतिक संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और गुड गवर्नेंस को प्रोत्साहन देना है.
आम लोगों की खुशहाली में अहम भूमिका निभाने वाले पर्यावरण की सुरक्षा को यहां के संविधान में शामिल किया गया है. भूटान की सरकार का मानना है कि प्रकृति एवं पर्यावरण की रक्षा किए बिना देश के निवासी खुशहाल नहीं रह सकते.
हैमबर्गर इंडेक्स
साल 1986 में द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने दुनिया के विभिन्न देशों में खर्च की क्षमता को नापने के लिए बिग मैक सूचकांक तैयार किया था. यह सूचकांक दुनिया भर के विभिन्न देशों में मैकडोनल्ड के फूड स्टोर्स में बिकने वाले बिग मैक हैमबर्गर की कीमत को आधार बिंदु बनाकर तैयार किया गया था.
हैमबर्गर ही क्यों
द इकोनॉमिस्ट पत्रिका के अर्थशास्त्रियों ने पाया कि यह उत्पाद दुनिया के ज्यादातर देशों में उपलब्ध है और इस बर्गर की एक मानक कीमत तय की जा सकती है, जो उस देश की मुद्रा व डॉलर की विनिमय दर पर आधारित होगी. बीते 25 सालों में बिग मैक सूचकांक एक मानक सूचकांक के तौर पर उभर कर सामने आया है और सामान्यतया सही साबित हुआ है.
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विनिमय दर की जटिलता को देखते हुए हल्के-फुल्के तरीके से आए विचार ने गंभीर और बड़ी आर्थिक रिपोर्टों में भी अपनी जगह बनाई. हालांकि, एक समग्र ग्लोबल आर्थिक सूचकांक की खोज अभी जारी है.
02:10 PM IST