BSNL की कहानी: क्यों और कैसे धीरे-धीरे घाटे में चली गई कंपनी?
टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल (BSNL) 20वीं सदी में एक चमकता हुआ सितारा थी, लेकिन आज स्थिति ये है कि कंपनी अपने 1.75 लाख कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पा ही है.
बीएसएनएल का नाम पहले 'दूरसंचार सेवा विभाग' था (फोटो- DNA).
बीएसएनएल का नाम पहले 'दूरसंचार सेवा विभाग' था (फोटो- DNA).
टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल (BSNL) 20वीं सदी में एक चमकता हुआ सितारा थी, लेकिन आज स्थिति ये है कि कंपनी अपने 1.75 लाख कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पा ही है. बीएसएनएल एक ऐसी कंपनी थी, जिसके ग्राहक उसके बिना रह नहीं सकते थे. बाजार पर बीएसएनएल के एकाधिकार और लोकप्रियता का मंजर ये था कि जब प्राइवेट कंपनियां अपना सिम 20-25 रुपये में देती थीं, बीएसएनएल का सिम 2000 रुपये में ब्लैक में मिलता था. लेकिन एक एक करके बीएसएनएल के ग्राहक उससे दूर होते गए. इसके लिए जिम्मेदार खुद बीएसएनएल ही है.
बीएसएनएल का नाम पहले 'दूरसंचार सेवा विभाग' था. 1 अक्टूबर 2000 को इसका नाम बदलकर भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) कर दिया गया. इसके साथ ही बीएसएनएल एक पीएसयू की तरह काम करने लगा. तर्क ये दिया गया कि इससे बीएसएनएल की कार्यक्षमता बढ़ेगी और ये निजी कंपनियों का मुकाबला अधिक पेशेवर तरीके से कर सकेगी. इसके बाद बीएनएनएल ने तेजी से विस्तार योजनाओं पर काम शुरू किया. बीएसएनएल की वेबसाइट के मुताबिक कंपनी ने 2000 में इंटरनेट, 2002 में 2जी मोबाइल, 2005 में ब्रॉडबैंड सेवा और 2010 में 3जी मोबाइल सेवा शुरू की. इसके बावजूद बीएसएनएल का घाटा लगातार बढ़ता गया. बीएसएनएल के पास 2000 में 2.8 करोड़ लैंडलाइन कनेक्शन थे, जो लगातार घटते गए. बीएसएनएल की सबसे अधिक कमाई लैंडलाइन कनेक्शन से ही होती थी. मार्च 2018 में कंपनी का घाटा बढ़कर करीब 8000 करोड़ रुपये हो गया.
आखिर कभी सरकार और ग्राहकों दोनों की चहेती बीएसएनएल दोनों के लिए बोझ क्यों बन गई. आइए उन कारणों की पड़ताल करें, जिसके चलते बीएसएलएन का घाटा लगातार बढ़ता रहा-
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1) लैंडलाइन कनेक्शन में कमी
दूरसंचार विभाग के आंकड़ों के मुताबिक देश में मोबाइल क्रांति जोर पकड़ने के साथ ही लैंडलाइन कनेक्शन में तेजी से गिरावट हुई. 2006-07 में बीएसएनएल के 3.8 करोड़ लैंडलाइन ग्राहक थे, जो 2014-15 में घटकर 1.6 करोड़ रह गए. जब मोबाइल कनेक्शन लाइफटाइम फ्री थे, तब बीएसएनएल के लैंडलाइन कनेक्शन का न्यूनतम चार्ज 125 रुपये प्रति माह था.
2) खराब सर्विस, जो और खराब होती गई
बीएसएनएल ने 2000 से लैंडलाइन कनेक्शन तेजी से बढ़ाए, लेकिन बढ़ते कनेक्शन के साथ सर्विस खराब होती गई. आए दिन केबल फाल्ट और महीनों कनेक्शन ठीक नहीं होने की शिकायत आम हो गई. तंग आकर लोग अपने कनेक्शन बंद कराने लगे. बीएनएसएल का कनेक्शन बंद कराना भी आसान नहीं था. इसलिए लोगों ने बिल देना छोड़ दिया.
3) ग्रामीण क्षेत्रों में लैंडलाइन का विस्तार
इंडिया स्पैंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीएसएनएल ने गांवों में लैंडलाइन नेटवर्क बिछाने के लिए भारी निवेश किया. बीएसएनएल की 2008-09 की ऑडिट रिपोर्ट में बताया गया कि ग्रामीण लैंडलाइन सेवा पर हर महीने प्रति कनेक्शन 702 रुपये खर्च कर रहा था, जबकि उसे बदले में सिर्फ 78 रुपये मिल रहे थे. 2003-04 में कंपनी को ग्रामीण लैंडलाइन सेग्मेंट में 9528 करोड़ रुपये का घाटा हुआ.
4) सरकार ने सोशल ऑब्लिगेशन सब्सिडी वापस ली
सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र में दूरसंचार सेवाओं के विस्तार और सोशल ऑब्लिगेशन के तहत 1999 की टेलीकॉम पॉलिसी में बीएसएनएल के लाइसेंस फी और स्पेक्ट्रम चार्जेज को माफ कर दिया था. लेकिन इस छूट को 2006-07 में खत्म कर दिया गया. इसके बाद बीएसएनएल को हर साल 3000 करोड़ रुपये का घाटा होने लगा.
5) रिलायंस जियो का असर
रिलायंस जियो द्वारा पेश की गई सस्ती मोबाइल डेटा सर्विस ने सभी टेलीकॉम कंपनियां प्रभावित हुईं, लेकिन बीएसएनएल पर इसका खास असर पड़ा. अब तक बीएसएनएल के लैंडलाइन कनेक्शन बहुत घट गए थे और इनकी मांग मुख्य रूप से ब्रॉडबैंड कनेक्शन के लिए थी. दूसरे मोबाइल ऑपरेटर्स की डेटा सर्विस के मुकाबले बीएसएनएल का ब्रॉडबैंड सस्ता और तेज था. लेकिन इसकी सेवाएं अक्सर बाधित रहती थीं. ऐसे में जियो के रूप में सस्ता विकल्प मिलने पर बड़ी संख्या में लोग ने बीएसएनएल का ब्रॉडबैंड छोड़ दिया.
इसके अलावा समय समय पर सरकारों ने बीएसएनएल की टेंडर प्रक्रिया को धीमा किया और प्रतिस्पर्धी कंपनियों को फायदा पहुंचाया. यही वजह है कि बीएसएनएल आज इस स्थिति में खड़ी है.
07:16 PM IST