1 रुपए से लेकर 2000 के नोट पर क्यों लगाया जाता है ‘सिक्योरिटी थ्रेड’? 170 साल से भी पुराना है इतिहास
history of security thread: नकली और असली नोटों में अंतर देखने के लिए RBI ने Security Thread का इस्तेमाल किया था, लेकिन ऐसा क्यों करना पड़ा पढ़े इसका इतिहास.
history of security thread: भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) देश का केंद्रीय बैंक है, जो इंडियन करेंसी को छापता है. छपे हुए एक रुपए के नोट और सिक्कों अलावा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया सभी नोटों को छापता है. इतने ट्रस्टी बैंक की तरफ से छापे गए इन नोटों की फिर भी लोग नकली कॉपी बना ही लेते हैं. यही सब देख RBI ने नोटों के अपने सभी नोटों की सुरक्षा और बढ़ा दी. ऐसे में बैंक ने कुछ ऐसे प्वाइंट्स को तैयार किया, जिससे नोट असली है या नकली, उसकी पहचान की जा सके.
हालांकि आज भी कई लोग ऐसे हैं जो नकली नोटों के झांसे में फंस जाते हैं. उन्हें अंदाजा भी नहीं होता कि वो नोट नकली है या नहीं. वहीं कई लोग नोट हाथ में लेते वक्त ज़रूर चेक करते हैं कहीं नोट नकली तो नहीं? ऐसे में सिक्योरिटी के तौर पर RBI ने नोटों में Security Thread जोड़ा था. इस धागे पर कुछ कोड उभरते दिखाई देते हैं. लेकिन शायद ही आप जानते होंगे की इस सिक्योरिटी थ्रेड (Security Thread) की शुरुआत कब से हुई.
Security Thread साल पुराना इतिहास
दरअसल धोखाधड़ी से बेचे गए नोटों के बीच सिक्योरिटी थ्रेड (Security Thread) पर विचार साल 1848 में इंग्लैंड में किया गया था. हालांकि उस समय इसका Patent तो हुआ, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया. करीब एक सदी बाद जब इसकी अती हो गई तो इस पर कड़ा फैसला लिया गया. उसकी के बाद से करेंसी नोटों पर मैटेलिक थ्रेड का इस्तेमाल होना शुरू हो गया.
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इंटरनेशनल बैंक नोट सोसाइटी (IBNS) के मुताबिक, Bank of England ने साल 1948 में पहली मेटल-स्ट्रिप करेंसी जारी की थी. अगर आप नोटों को लाइट में देखेंगे को आपको उसमें एक काली लाइन नज़र आएगी. बनाने का पूरा मतलब ये था कि धोखाधड़ी करने वाले फ्रॉड्सटर्स नकली नोट तो बना लेंगे, लेकिन वो नकली थ्रेड कभी नहीं बना पाएंगे. लेकिन इसके बाद भी ये आइडिया फ़ेल हो गया. क्योंकि फ्रॉड्सटर्स नोटों पर एक काली लाइन बना देते थे, और लोग आसानी से बेवकूफ़ बन जाते थे.
साल 1984 में बैंक ऑफ इंग्लैंड (Bank of England) ने टूटे मेटल के धागों जैसे लंबे डैश के साथ 20 पाउंड का नोट तैयार किया है. दरअसल उनकी तरफ से ये दावा किया गया कि इसकी नकल करना पॉसिबल नहीं है. लेकिन इस Yojana का कोई इस्तेमाल नहीं हुआ. धोखाधड़ी ने अल्यूमिनियम के टूटे धागों का सुपर ग्लू के साथ इस्तेमाल शुरू कर दिया.
RBI करता है अब तरह के Security Thread का इस्तेमाल
second World War जब हुआ था, तो उस दौरान जापान से नकली नोटों की डिलीवरी होनी शुरू हो रही थी. इसी के चलते RBI ने साल 1944 में फैसला लिया कि इन नोटों पर सिक्योरिटी थ्रेड का इस्तेमाल किया जाए. भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) ने भी साल 2000 के अक्टूबर महीने में 1000 रुपए का जो नोट जारी किया, उसमें थ्रेड के साथ शब्द भी प्रिंट करना शुरू हुआ. इसमें हिंदी में भारत, 1000 और RBI छपा हुआ था.
वहीं, अगर आप एक नजर 2000 रुपये के नए नोटों पर डालेंगे, तो उसमें भी आपको ब्रोकेन मैटेलिक स्ट्रिप (Broken Metallic Strip) नज़र आएगा. इसमें आपको हिंदी में भारत और अंग्रेज़ी में आरबीआई प्रिंट हुआ दिखाई देगा. इस पर प्रिंट Reserve में होता है. बता दें, इसी तरह का सिक्योरिटी थ्रेड 500, 100 के साथ 05, 10, 20 और 50 रुपए के नोट पर भी होता है.
04:20 PM IST