IPO vs FPO: Vodafone Idea का FPO 18 अप्रैल को खुलेगा, ये IPO से कितना होता है अलग? जानिए दोनों में अंतर
Vodafone FPO, IPO vs FPO: स्टॉक मार्केट में कंपनियों के लिए फंड जुटाने के कई तरीके होते हैं, जिसके जरिए वो अपने शेयर जारी करके फंडिंग जुटा सकती हैं. IPOs और FPOs दो सबसे ज्यादा यूज किए जाने वाले तरीके हैं.
कर्ज में दबी टेलीकॉम कंपनी Vodafone Idea बड़ा फंड जुटाने की तैयारी कर रही है. कंपनी ने 18,000 करोड़ का FPO (follow on public offer) लाने की घोषणा की है, इसके लिए बोर्ड से शुक्रवार को मंजूरी भी मिल गई है. साथ ही FPO के लिए प्राइस बैंड भी फिक्स कर दिया गया है.
FPO में कब लगा सकेंगे बोली?
Vodafone Idea के FPO के लिए 10-11 रुपए प्रति शेयर का प्राइस बैंड फिक्स किया गया है. FPO के लिए लॉट साइज 1298 शेयर होगा. 16 अप्रैल को एंकर निवेशकों को शेयर एलोकेशन पर बोर्ड बैठक होगी. FPO के लिए 18-22 अप्रैल के दौरान बोली लगा सकेंगे. 15 अप्रैल से FPO के लिए रोडशो शुरू होगा. लेकिन Vodafone Idea FPO की चर्चा के बीच हम यहां जानेंगे कि FPO होता क्या है और ये IPO से कैसे अलग होता है.
क्या होता है FPO?
FPO यानी Follow-on Public Offering भी कंपनियों के लिए फंड जुटाने का एक तरीका होता है. लेकिन FPO वही कंपनियां ला सकती हैं, जो शेयर बाजार में लिस्टेड हैं यानी जिनमें पब्लिकली ट्रेडिंग होती हैं. कंपनीज़ FPO तब लाती हैं जब उन्हें अतिरिक्त फंडिंग की जरूरत होती है. कंपनी अगर IPO लाकर लिस्टेड हो गई है, तो भी इसके बाद अपने बिजनेस ऑपरेशन के लिए फंडिंग की जरूरत पड़ सकती है. कंपनियों को अपने विस्तार, कर्ज चुकाने और दूसरी बिजनेस एक्टिविटीज़ के लिए फंड की जरूरत पड़ती है. और अब कंपनी के मालिक अपनी जेब से तो बिजनेस पर सारे खर्च नहीं कर सकते, इसके लिए वो बाहर से फंडिंग ढूंढते हैं. तो ऐसे में FPO के जरिए वो अपने अतिरिक्त शेयर बाजार में जारी करते हैं, जिसके बदले में निवेशक उन्हें फंडिंग देते हैं.
FPO vs IPO: दोनों में क्या फर्क है?
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स्टॉक मार्केट में कंपनियों के लिए फंड जुटाने के कई तरीके होते हैं, जिसके जरिए वो अपने शेयर जारी करके फंडिंग जुटा सकती हैं. IPOs और FPOs दो सबसे ज्यादा यूज किए जाने वाले तरीके हैं. IPO यानी कि Initial Public Offering के जरिए कोई भी कंपनी पहली बार अपने शेयर जनरल पब्लिक के लिए खोलती है. ऐसी कंपनी जो स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड नहीं हैं, यानी जिनकी प्राइवेट ओनरशिप है, वो IPO लाकर अपने शेयर जारी करती हैं और इनपर फंड इकट्ठा करती हैं. इससे उनकी शेयर में हिस्सेदारी भी कम होती है. IPO में निवेशकों के पैसा लगाने के बाद कंपनी एक्सचेंज पर लिस्ट हो जाती है.
और जैसा कि हमने बताया कि FPO लाती ही वो कंपनियां हैं जो पहले से बाजार में लिस्टेड होती हैं. यानी कि अगर कोई कंपनी IPO लेकर आई और उसे आगे चलकर और फंडिंग की जरूरत महसूस हुई तो वो FPO ला सकती है. कंपनियां FPO या तो एडिशनल फंडिंग जुटाने के लिए लाती हैं या फिर अपना कर्ज घटाने के लिए. वैसे FPO लाने पर कंपनी की प्रति शेयर पर कमाई कम हो जाती है.
04:29 PM IST