EXCLUSIVE: को-लैटरल शॉर्ट एलोकेशन पर ब्रोकर्स को राहत, अगस्त महीने के लिए नहीं लगेगी पेनाल्टी
मार्केट रेगुलेटर SEBI से विचार करने के बाद क्लीयरिंग कॉरपोरेशंस ने ब्रोकर्स पर लगाई गई करीब 225 करोड़ की पेनाल्टी को वापस लेने का फैसला किया है. बता दें कि 1 अगस्त से 31 अगस्त की मियाद में ही पेनाल्टी से राहत दी गई है.
Collateral segregation: शेयर ब्रोकर्स के लिए राहत की खबर है. जी बिजनेस को मिली जानकारी के मुताबिक सेबी से सलाह मशविरे के बाद क्लीयरिंग कॉरपोरेशंस ने एक अगस्त से एंड ऑफ डे शॉर्ट एलोकेशन पर लगी पेनाल्टी में रियायत का फैसला किया है. हालांकि ये रियायत केवल उन्हीं मामलों में लागू होगी जिसमें क्लाइंट से ब्रोकर ने को-लैटरल लिया था. लेकिन तकनीकी वजहों से एलोकेशन की फाइल अपलोड नहीं हो पाई. या फिर किसी और तकनीकी दिक्कत के कारण क्लीयरिंग कॉरपोरेशन के सिस्टम में जानकारी नहीं दी जा सकी. ये रियायत 1 अगस्त से 31 अगस्त तक के शॉर्टफॉल पर ही लागू होगी.
तकनीकी खामी के कारण को-लैटरल की सही जानकारी नहीं
ब्रोकर्स की शिकायत ये थी कई बार क्लीयरिंग कॉरपोरेशंस के सिस्टम में तकनाकी खामी होने, कई बार ब्रोकर्स को सही तरीका न पता होने या फिर बार बार नियम बदलने से ब्रोकर्स क्लाइंट को-लैटरल की जानकारी सिस्टम में नहीं दे सके. क्लीयरिंग कॉरपोरेशंस से फाइनल मार्जिन की जानकारी तय समय सीमा में नहीं मिल रही थी. जिससे मार्जिन के कैल्कुलेशन में दिक्कत आती थी. ब्रोकर्स का ये भी कहना था कि तकनीकी खामी से कई बार अलग अलग मार्जिन फाइल में मार्जिन अलग अलग थे. जैसे एक अगर किसी क्लाइंट से सुबह एक लाख रु के मार्जिन की जरूरत बताई जा रही थी बाद में ये अचानक बढ़ गई. ऐसे में ब्रोकर पर बोझ डालना ठीक नहीं था. भारी कंफ्यूजन रहता था कि आखिर कितना मार्जिन लेना है.
करीब 225 करोड़ तक की पेनाल्टी लगाई गई है
कम को-लैटररल लेने पर बाद में सेबी के नियमों के तहत क्लीयरिंग कॉरपोरेशंस ने ब्रोकर्स पर पेनाल्टी लगी दी थी. बाजार के जानकारों के मुताबिक पूरी ब्रोकिंग कम्युनिटी पर करीब करीब 225 करोड़ रु तक की पेनाल्टी का बोझ आया था. हालांकि ब्रोकर्स इसमें अपनी गलती कम और तकनीकी खामी को ज्यादा जिम्मेदार ठहरा रहे थे.
1 अगस्त से पेनाल्टी लागू की गई थी
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दरअसल मई में सेबी ने नियम लागू किया था कि सभी ब्रोकर हर क्लाइंट के हिसाब से अलग अलग कितना फंड है इसकी जानकारी क्लीयरिंग कॉरपोरेशंस को दें. जबकि नियमों का पालन न होने पर 1 अगस्त से पेनाल्टी लागू करने का नियम आया था. नियम लागू करने के पीछे सेबी की मंशा थी कि ब्रोकर एक क्लाइंट के पैसे का इस्तेमाल दूसरे क्लाइंट या खुद के लिए नहीं कर सकें.
शेयरों में रखा जाता था पूरा मार्जिन
पहले नियम ये था कि पूरा मार्जिन शेयरों में रखा जा सकता था. नियम इसलिए आया था कि क्लीयरिंग कॉरपोरेशन हर क्लाइंट कितना सौदा कर सकता है उसकी लिमिट तय कर सकें. जिससे ब्रोकर और क्लाइंट जरूरत से ज्यादा जोखिम न लें. इसके पहले सौदा करने की लिमिट क्लाइंट के बजाय ब्रोकर के हिसाब से तय होती थी. क्लीयरिंग कॉरपोरेशंस वो होते हैं जो स्टॉक एक्सचेंज पर सौदा होने के बाद उसके निपटारे में अहम भूमिका निभाते हैं.
07:35 PM IST