EXCLUSIVE: रिसर्च एनालिस्ट और इनवेस्टमेंट एडवाइज रेगुलेशंस में बदलाव की तैयारी, सेबी जल्द लाएगा कंसल्टेशन पेपर
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, नियमों को और ज्यादा स्पष्ट करने के लिए सेबी गंभीरता से विचार कर रहा है. इस मामले पर कंसल्टेशन पेपर लाया जाएगा, ताकि जिन भी पहलुओं पर कंफ्यूजन है उसे दूर किया जा सके.
सितंबर 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि 1.12 लाख डीमैट धारकों के पीछे एक रिसर्च एनालिस्ट है. (Image: Reuters)
सितंबर 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि 1.12 लाख डीमैट धारकों के पीछे एक रिसर्च एनालिस्ट है. (Image: Reuters)
मार्केट रेग्युलेटर सेबी (SEBI) रिसर्च एनालिस्ट और इनवेस्टमेंट एडवाइज रेगुलेशंस पर नए सिरे से विचार कर रहा है. ज़ी मीडिया को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, नियमों को और ज्यादा स्पष्ट करने के लिए सेबी गंभीरता से विचार कर रहा है. इस मामले पर कंसल्टेशन पेपर लाया जाएगा, ताकि जिन भी पहलुओं पर कंफ्यूजन है उसे दूर किया जा सके. सेबी के नजरिए से बदलते वक्त के साथ नियमों में बदलाव लाना जरूरी है.
सेबी इस पर भी विचार कर रही है क्या रिसर्च एनालिस्ट और इनवेस्टमेंट एडवाइजर रेगुलेशंस का आपस में मर्जर किया जा सकता है? क्योंकि सेबी ने अपने आदेश में कहा था कि रिसर्च एनालिस्ट मॉडल पोर्टफोलियो की सेवाएं नहीं दे सकते, जिसके बाद सोशल मीडिया पर इसको लेकर काफी बहस हुई थी. कुछ कंपनियां जो इस तरह के रिसर्च रिपोर्ट साझा करती हैं उनका कामकाज भी प्रभावित हुआ था. कई रिसर्च एनालिस्ट कंपनियों ने भी अपनी पोर्टफोलियो प्रोडक्ट सेवाओं की मार्केटिंग बंद कर दी थी.
एडवाइजर्स की संख्या भी बढ़ाने के पक्ष में सेबी
दरअसल, सेबी की मंशा है कि रजिस्टर्ड रिसर्च एनालिस्ट और इनवेस्टमेंट एडवाइजर्स की संख्या भी बढ़े, लेकिन अगर कहीं कोई गलतफहमी है या नियमों में टकराव है, तो उसे भी दूर किया जा सके. आंकड़ों को देखें तो रिसर्च एनालिस्ट और इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स दोनों की संख्या काफी कम है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर 2021 तक देश में प्रति 76,510 डीमैट धारक निवेशकों पर एक रजिस्टर्ड इनवेस्टमेंट एडवाइजर हैं. जबकि रिसर्च एनालिस्ट की संख्या और भी कम है.
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सितंबर 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि 1.12 लाख डीमैट धारकों के पीछे एक रिसर्च एनालिस्ट है. हालांकि, हैरानी की बात ये है कि सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में निवेश सलाहकार, रिसर्च एनालिस्ट हैं. लेकिन, सेबी रजिस्टर्ड एनालिस्ट की संख्या इतनी कम है. कई बार कंप्लायंस और बाकी जिम्मेदारियों से भागने के लिए भी सेबी से रजिस्टर नहीं कराते. हालांकि, जानकारों की सलाह यही होती है कि सेबी रजिस्टर्ड रिसर्च एनालिस्ट और निवेश सलाहकारों पर ही भरोसा करें. क्योंकि, कुछ गलत होने पर सेबी के लिए इनके खिलाफ कार्रवाई करना आसान होता है, जबकि जो रजिस्टर्ड नहीं है उनकी धरपकड़ करना रेगुलेटर के लिए थोड़ा कठिन होता है.
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ट्रांसपैरेंसी बढ़ेगी, कम होंगी शिकायतें
अक्सर फीस में ट्रांसपैरेंसी, गारंटीड रिटर्न का झांसा, फीस और कमीशन दोनों लेना, हितों के टकराव, निवेशकों से पावर ऑफ अटॉर्नी लेकर दुरुपयोग जैसी शिकायतें आती रहती हैं. जानकार मानते हैं कि सेबी ने इसे ठीक करने के लिए कदम उठाए हैं. लेकिन बदलते वक्त के साथ नए सिरे से इसे देखने की जरूरत है, क्योंकि 2013 में जब रेगुलेशन आए थे उस वक्त करीब 2.5 करोड़ डीमैट धारक निवेशक थे. लेकिन अब ये संख्या 9 करोड़ के आसपास पहुंच चुकी है. बीते 2-3 साल में बड़ी संख्या में निवेशक बाजार से जुड़े हैं. ऐसे में रेगुलेशंस को भी नए सिरे से देखा जाना जरूरी है.
नियमों में सफाई और बदलाव पर चर्चा सेबी में लंबे समय से हो रही थी. लेकिन, हाल के एक ऑर्डर के बाद इसकी जरूरत ज्यादा महसूस की गई. दरअसल, सेबी ने स्टैलियन असेट मैनेजमेंट पर आर्डर पास किया था. जिसमें सेबी ने ये साफ किया था कि रिसर्च एनालिस्ट पोर्टफोलियो सर्विस नहीं दे सकते, बल्कि ये सर्विस केवल इनवेस्टमेंट एडवाइजर ही दे सकते हैं. स्टैलियम असेट मैनेजमेंट बतौर रिसर्च एनालिस्ट रजिस्टर्ड थी, लेकिन उस पर पोर्टफोलियो प्रोडक्ट की बिक्री का आरोप था. कंपनी के कर्मचारियों पर आरोप था कि वो इसे एडवाइजरी सर्विस बताकर इसकी मार्केटिंग कर रहे थे. बाद में कंपनी ने 28.60 लाख रुपये देकर मामले को सेबी के साथ सेटल किया.
09:53 AM IST