IIT लॉन्ड्रीवाला: 1 करोड़ का पैकेज छोड़ शुरू किया कपड़े धोने का स्टार्टअप, आज ₹100 करोड़ है टर्नओवर
आईआईटी मुंबई से पढ़ाई करने के बाद इस शख्स ने लोगों के गंदे कपड़ों को धोकर अपनी किस्मत चमका ली. हम बात कर रहे हैं UClean स्टार्टअप के फाउंडर अरुणाभ सिन्हा (Arunabh Sinha) की, जिन्होंने अपनी 1 करोड़ के पैकेज वाली नौकरी छोड़ जनवरी 2017 में लॉन्ड्री का बिजनेस शुरू किया.
स्टार्टअप्स (Startup) के इस दौर में आपने कई नाम सुने होंगे. कभी एमबीए चायवाला सुर्खियों में छा जाता है तो कभी बीटेक पानीपुरी वाली सोशल मीडिया पर वायरल होने लगती है. इसी बीच आज हम आपको बताने जा रहे हैं आईआईटी लॉन्ड्रीवाला (IIT Laundrywala) के बारे में. जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना. आईआईटी मुंबई से पढ़ाई करने के बाद इस शख्स ने लोगों के गंदे कपड़ों को धोकर अपनी किस्मत चमका ली. हम बात कर रहे हैं UClean स्टार्टअप के फाउंडर अरुणाभ सिन्हा (Arunabh Sinha) की, जिन्होंने अपनी 1 करोड़ के पैकेज वाली नौकरी छोड़ जनवरी 2017 में लॉन्ड्री का बिजनेस शुरू किया. पिछले करीब 6.5 सालों में जीरो से शुरू हुए इस स्टार्टअप का टर्नओवर आज की तारीख में 100 करोड़ रुपये का आंकड़ा छू चुका है. वित्त वर्ष 2023 में कंपनी की कुल एग्रीगेटेड सेल्स करीब 100 करोड़ रुपये रही है.
लॉन्ड्री बिजनेस आइडिया के पीछे की क्या है कहानी?
अरुणाभ सिन्हा बताते हैं कि UClean उनका पहला स्टार्टअप नहीं है. इससे पहले उन्होंने Franglobal नाम का एक स्टार्टअप शुरू किया था, जिसके जरिए वह इंटरनेशनल कंपनियों को भारतीय बाजार में लाते थे. इसके लिए वह पहले उन कंपनियों की मदद करते थे. अरुणाभ उन्हें बताते थे कि भारत का बाजार कैसा है, यहां कॉम्पटीशन क्या है और यहां प्राइसिंग कैसे होती है. उसके बाद उन्हें भारत में एक सही पार्टनर से मिलाते थे. जो भी कंपनियां वह भारत लाते थे, वह फ्रेंचाइजी मॉडल पर काम करती थीं. अरुणाभ भारत में उन्हें एक मास्टर फ्रेंचाइज पार्टनर बनाकर देते थे. इसके बाद ब्रांड इस पूरे काम के लिए उन्हें फीस चुकाते थे.
ये स्टार्टअप शुरू करने के बाद 2010 से ही अरुणाभ साउथ ईस्ट एशिया में काफी एक्टिव रहने लगे थे. इंडोनेशिया, मलेशिया और फिलीपीन्स उनका आना-जाना लगा ही रहता था. वहां का कल्चर, खाने-पीने का तरीका और यहां तक कि रहन-सहन भी भारत से काफी मिलता-जुलाता दिखा. उस समय अरुणाभ ने देखा कैसे वहां पर लॉन्ड्री बिजनेस बदल रहा है. अरुणाभ कहते हैं कि पहले वहां भी धोबी कल्चर ही था कपड़े धोने वालों को वहां भी धोबी ही कहा जाता था. 2010 से वहां ट्रांसफॉर्मेशन आया और छोटे-छोटे लॉन्ड्री स्टोर शुरू हो गए. ये सब अरुणाभ देख रहे थे, जो कहीं ना कहीं उनके दिमाग में बसता जा रहा था. 2015 में उनके निवेशकों ने ही कंपनी को खरीद लिया और उन्होंने अपने स्टार्टअप Franglobal से अच्छी एग्जिट ले ली.
स्टार्टअप से ली एग्जिट, करने लगे एक करोड़ वाली नौकरी
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अपना स्टार्टअप बेचने के बाद अरुणाभ Treebo Hotels के नॉर्थ इंडिया बिजनेस हेड बन गए और कंपनी का सारा काम-काज देखने लगे. यहां पर वह 2-3 स्टार होटल के साथ काम करते थे. वह उन्हें मार्केटिंग में मदद करते थे, सेल्स में मदद करते थे और उम्मीद करते थे कि ये होटल ग्राहकों को अच्छी सेवा देंगे. Treebo Hotels बढ़ने लगा तो देखा गया कि 60 फीसदी शिकायतें लॉन्ड्री से जुड़ी हुई थीं. कभी बेडशीट गंदी होने की शिकायत तो कभी टॉवेल गंदा होने की शिकायत. ये सब देखकर अरुणाभ ने इसका समाधान निकालने की सोची और मार्केट की स्टडी करने लगे. उसके बाद पता चला कि ये करीब 35-40 अरब डॉलर की इंडस्ट्री है, लेकिन पूरी तरह से अनऑर्गेनाइज्ड है. ऐसे में उन्होंने एक बड़ा मौका देखा और करीब 15 महीनों की नौकरी के बाद Treebo Hotels को अलविदा कह दिया. जब उन्होंने नौकरी छोड़ी उस वक्त उनका पैकेज करीब 1 करोड़ रुपये का था.
1 करोड़ की नौकरी छोड़ी, शुरू किया अपना लॉन्ड्री बिजनेस
बाजार में मौका देखते ही अरुणाभ ने खुद का लॉन्ड्री बिजनेस UClean शुरू कर दिया. इसमें उनकी मदद की उनकी पत्नी गुंजन सिन्हा ने और वह बन गईं कंपनी की को-फाउंडर. कंपनी ने पहला स्टोर दिल्ली के वसंत कुंज में खोला था, जो आज भी है. जब शुरुआत की गई तो मदर डेयरी के बूथ के पास में ही स्टोर खोला गया, ताकि अधिक से अधिक लोग उसे देख सकें. कंपनी ने अपने स्टोर में शीशे का दरवाजा लगाया, जिसके अंदर बड़ी-बड़ी लॉन्ड्री की मशीनें दिखती थीं. बहुत सारे लोग उत्सुकतावश मशीन देखने स्टोर जाने लगे और फिर धीरे-धीरे ऑर्डर आने शुरू हो गए. पैसे कम थे तो शीशे का दरवाजा लगाया और उस पर विज्ञापन भी नहीं किया, लेकिन पारदर्शी शीशे की वजह से ही लोग मशीनें देखने गए और फिर धीरे-धीरे दुकान में आने लगे. इसके बाद अरुणाभ ने हर स्टोर को ऐसा ही बनाना शुरू कर दिया, क्योंकि इससे उनके बिजनेस के बारे में लोगों को पता चलना शुरू हो गया.
कैसे काम करती है ये कंपनी?
UClean का ऐप है, वेबसाइट है और कॉल सेंटर भी है, जहां से आप अपना ऑर्डर प्लेस कर सकते हैं. यहां तक कि तमाम स्टोर का नंबर भी है, जिन्हें सीधे फोन कर के भी ऑर्डर दे सकते हैं. वॉट्सऐप पर चैटबोट भी बनाया गया है, जिससे ऑर्डर प्लेस हो सकता है. ऑर्डर देने के बाद आपके घर डिलीवरी ब्वॉय आएगा और कपड़े ले जाएगा. कपड़े किलो के हिसाब से चार्ज होते हैं. करीब 24 घंटे बाद आपके कपड़े आपको वापस मिल जाएंगे. ये एक रिटेल कंपनी है, जिसका 90 फीसदी बिजनेस रिटेल मार्केट से आता है. सिर्फ 10 फीसदी बिजनेस ही रेस्टोरेंट, सैलून और होटल से आता है.
देश से लेकर विदेश तक कंपनी के हैं कुल 363 स्टोर
अभी ये बिजनेस 107 शहरों में है. सभी 10 मेट्रो शहरों में कंपनी के स्टोर मौजूद हैं. आज की तारीख में यह कंपनी देश के हर राज्य में है. कम से कम एक स्टोर तो हर राज्य में है ही. कंपनी का बिजनेस सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी है. नेपाल में कंपनी के 2 स्टोर हैं, बांग्लादेश में भी हाल ही में एक स्टोर खोला है. कंपनी के अपने खुद के दो स्टोर हैं, बाकी सभी फ्रेंचाइजी स्टोर हैं. कंपनी का एक स्टोर फरीदाबाद में ऑफिस के पास ही है और दूसरा दिल्ली में है. बता दें कि आज की तारीख में कंपनी के कुल 363 स्टोर हैं.
क्या है कंपनी का बिजनेस मॉडल?
कंपनी का बिजनेस मॉडल पूरी तरह से फ्रेंचाइजी पर आधारित है. भारत के अलग-अलग हिस्सों में फ्रेंचाइज पार्टनर बनाए जाते हैं. हालांकि, इसके लिए आपका उसी इलाके से होना जरूरी है, तभी आपको फ्रेंचाइजी मिलेगी. शुरुआत में 17-18 लाख का निवेश होता है, जिसमें मशीनरी, फ्रेंचाइजी फीस और स्टोर का पूरा सेटअप होता है. उसके बाद कंपनी की तरफ से टीम रिक्रूटमेंट और ट्रेनिंग दी जाती है, उसके बाद फ्रेंचाइजी के पेरोल पर ये टीम काम करती है. कंपनी की तरफ से फ्रेंचाइजी के लिए ऑनलाइन लीड जनरेट की जाती है.
कितनी होती है कमाई?
हर फ्रेंचाइजी 5 लाख की फ्रेंचाइजी फीस देता है. ये पैसे ब्रांड नेम को इस्तेमाल करने के लिए चुकाए जाते हैं. उसके बाद जितनी भी स्टोर की सेल होती है, उसका 7 फीसदी रॉयल्टी के रूप में कंपनी को मिलता है. एक साल के बाद एक फ्रेंचाइजी स्टोर हर महीने 3-3.5 लाख रुपये कमाने लगता है. इसमें करीब 35 फीसदी मुनाफा होता है. नॉन-मेट्रो शहरों में तो यह मुनाफा 40-45 फीसदी तक पहुंच जाता है. यानी हर महीने सवा लाख से डेढ़ लाख रुपये की कमाई. अरुणाभ बताते हैं कि नॉन-मेट्रो शहरों में ही टॉप-5 परफॉर्मिंग स्टोर हैं. यानी नॉन मेट्रो शहरों के फ्रेंचाइजी आउटलेट ज्यादा पैसे कमाते हैं.
अब तक कंपनी को मिली कितनी फंडिंग?
आज तक कंपनी को कुल 9 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली है. 2017-18 में ही कंपनी ने फंडिंग उठाई थी. फ्रेंचाइजी मॉडल होने की वजह से कंपनी को लगातार पैसे मिलते रहते हैं, ऐसे में कंपनी का कैश फ्लो पॉजिटिव बना रहता है. अरुणाभ बताते हैं कि उनकी कंपनी पिछले 6 सालों में 5 साल प्रॉफिट में रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि कंपनी को फ्रेंचाइजी मॉडल से पैसे मिलते रहते हैं.
भविष्य की क्या है प्लानिंग?
कपड़े तो लोग धुलवाना ही चाहते हैं, लेकिन घर पर बहुत सारी चीजें हैं जो गंदी होती हैं, जिन्हें धुलने की जरूरत होती है, जैसे सोफा, कार्पेट, वॉशरूम, कार, जूते, सॉफ्ट टॉय. इसके बाद अरुणाभ ने अपना एक दूसरा वर्टिकल शुरू किया, जो डायरेक्ट टू होम था. इसके तहत लोगों के घर जाकर उनके तमाम सामान धुलने की सुविधा शुरू की गई. अब प्लान ये है कि UClean को वन स्टोर शॉप बनाया जाए. यहां आप सब कुछ धुलवा सकेंगे. अगर मुमकिन है तो कंपनी आपके प्रोडक्ट स्टोर पर ले जाकर उसे साफ करेगी और अगर स्टोर ले जाना मुमकिन नहीं तो इसके लिए आपके घर पर ही धुलाई की सुविधा दी जाएगी.
11:31 AM IST