कंपनियों को प्लास्टिक न्यूट्रल बना रहा ये Startup, 5 लाख किलो कचरे से दिलाया छुटकारा, यूनीक है Business Idea
द डिस्पोजल कंपनी की शुरुआत कोविड के दौरान अक्टूबर 2020 में भाग्यश्री ने की थी. महज 29 साल की उम्र में ही भाग्यश्री ने ना सिर्फ भारत, बल्कि विदेशों तक अपना बिजनेस फैला लिया है. कंपनी का काम पूरे देश में है, लेकिन इसका ऑफिस जयपुर और मुंबई में है.
जब आप ग्रेजुएशन में थे, उस वक्त आपके मन में क्या चल रहा था? अधिकतर लोग तो पोस्ट ग्रेजुएशन की सोचते हैं और कुछ होते हैं जो नौकरी करने की सोचते हैं. लेकिन दिल्ली में पली-बढ़ी भाग्यश्री भंसाली इन सबसे अलग हैं. उन्होंने बीबीए के सेकेंड ईयर के दौरान ही नौकरी करनी शुरू कर दी, वो भी दिल्ली सरकार के पब्लिक ग्रिव्यांस मॉनिटरिंग सिस्टम यानी पीजीएमएस विभाग में. वहां वह लोगों की परेशानियां सुना करती थीं और उसी दौरान पहली बार उन्हें पता चला कि लोग गाजीपुर लैंडफिल की वजह से होने वाले प्रदूषण से बहुत परेशान हैं. बता दें कि दिल्ली का गाजीपुर लैंडफिल ना सिर्फ भारत, बल्कि पूरे एशिया के सबसे बड़े कूड़े के पहाड़ों में से एक है. गाजीपुर लैंडफिल की वजह से ही भाग्यश्री भंसाली ने द डिस्पोजल कंपनी (The Disposal Company) की शुरुआत की.
द डिस्पोजल कंपनी की शुरुआत कोविड के दौरान अक्टूबर 2020 में भाग्यश्री ने की थी. महज 29 साल की उम्र में ही भाग्यश्री ने ना सिर्फ भारत, बल्कि विदेशों तक अपना बिजनेस फैला लिया है. कंपनी का काम पूरे देश में है, लेकिन इसका ऑफिस जयपुर और मुंबई में है. इसके अलावा उनका बिजनेस सिंगापुर, यूके और मिडिल ईस्ट के कतर तक फैला हुआ है. आज तक ये कंपनी 5 लाख किलो प्लास्टिक वेस्ट को रीसाइकिल कर चुकी है. कंपनी ने करीब 70 ब्रांड्स के साथ काम किया है, जिनमें mCaffeine, Slurrp Farm, The Souled Store, Bombay Shaving Company, Blue Tokai Coffee और SLAY Coffee शामिल हैं.
कैसे आया The Disposal Company का आइडिया?
बीबीए की पढ़ाई के दौरान दूसरे साल में ही भाग्यश्री ने दिल्ली सरकार के साथ काम करना शुरू कर दिया था. वह पीजीएमएस विभाग में थीं, जहां लोगों की परेशानियां सुनती थीं. उसी दौरान जनता की तरफ से पानी और स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम समस्याएं सामने आती थीं. उनकी एक बड़ी वजह थी गाडीपुर लैंडफिल की वजह से होने वाला प्रदूषण. इसके बाद भाग्यश्री ने गाजीपुर लैंडफिल पर रिसर्च शुरू की और पता चला कि वहां पर प्लास्टिक वेस्ट का एक बड़ा हिस्सा है. जब उससे निपटने के तरीकों पर रिसर्च की तो पता चला कि जर्मनी और चीन के बाद प्लास्टिक वेस्ट से निपटने की शानदार तकनीक है, लेकिन भारत में मामला कुछ अलग है.
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दरअसल, वहां पर तमाम तरह का कूड़ा अलग-अलग किया जाता है, लेकिन भारत में हर तरह का कूड़ा एक साथ मिक्स हुआ पड़ा है. वहीं प्लास्टिक वेस्ट को रीसाइकिल करने में जो फाइनेंसिंग लगती है, वह भी एक बड़ी चुनौती दिखी. उसके बाद भाग्यश्री ने एक लोकल रीसाइकिलिंग फैसिलिटी के साथ काम किया, कूड़ा उठाने वालों के साथ काम किया और समझा कि वेस्ट को अलग-अलग कैसे किया जा सकता है. अपनी जानकारी को मजबूत करने के लिए उन्होंने कई कंपनियों के साथ कंसल्टेंट की तरह काम किया और समझा कि फैक्ट्री बेस्ड वेस्ट से कैसे निपटा जा सकता है, क्योंकि वह थोड़ा आसान था. 2014 से शुरू कर के 6 साल तक यानी 2020 तक भाग्यश्री यही सब करती रहीं और फिर उनकी शादी हो गई.
भाग्यश्री की शादी राजस्थान के जयपुर में हुई. उसी दौरान कोविड ने दस्तक दी थी. भाग्यश्री ने राजस्थान सरकार के साथ भी कंसल्टेंट के तौर पर काम किया. वह प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट में सरकार की मदद करती थीं, क्योंकि इसी में उनका बड़ा अनुभव है. भाग्यश्री बताती हैं कि उस दौरान आए दिन कोई ना कोई डी2सी ब्रांड शुरू हो रहा था. वहीं पूरी एफएमसीजी इंडस्ट्री की एक बड़ी दिक्कत है कि इसमें लो वैल्यू प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है. भाग्यश्री जानती हैं कि लो वैल्यू प्लास्टिक वेस्ट को मैनेज करना कितना मुश्किल होता है. ऐसे में उन्होंने इस प्रॉब्लम का सॉल्यूशन निकालने के मकसद से ही अक्टूबर 2020 में द डिस्पोजल कंपनी की शुरुआत की.
क्या है कंपनी का बिजनेस मॉडल?
कंपनी के बिजनेस मॉडल में दो मोर्चों पर काम होता है. पहला है ब्रांड के साथ और दूसरा है जमीनी स्तर पर वेस्ट यानी कचरा जमा करना. सबसे पहले द डिस्पोजल कंपनी किसी ब्रांड के साथ मिलकर उन्हें प्लास्टिक न्यूट्रल बनाने का ऑफर देती है. इसके तहत पहले कंपनी का प्लास्टिक फुटप्रिंट बनाया जाता है. इसके तहत समझा जाता है कि ब्रांड की तरफ से उसके तमाम तरह के प्रोडक्ट में कौन-कौन सा प्लास्टिक इस्तेमाल हो रहा है और वह कितनी मात्रा में इस्तेमाल हो रहा है. साथ ही यह भी देखा जाता है हर महीने उनकी कितनी सेल हो रही है. इससे प्लास्टिक फुटप्रिंट कैल्कुलेट होता है और पता चलता है कि किसी ब्रांड की तरफ से एक महीने के अंदर किस तरह का कितना प्लास्टिक समाज में गया है.
इसके बाद द डिस्पोजल कंपनी उसी तरह का उतना ही प्लास्टिक लैंडफिल से जमा करती है. उसे साफ कर के अलग-अलग किया जाता है और फिर उसे रीसाइकिल किया जाता है. जब प्लास्टिक रीसाइकिल हो जाता है तो इसकी रिपोर्ट सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को भेजी जाती है कि किस ब्रांड के लिए कौन से तरह का कितना प्लास्टिक रीसाइकिल किया गया है. जितना प्लास्टिक किसी ब्रांड की तरफ से एक महीने में बेचा गया होता है, उतना ही प्लास्टिक ये कंपनी रीसाइकिल कर देती है और इस तरह वह ब्रांड प्लास्टिक न्यूट्रल बन जाता है.
कैसे आता है कंपनी का रेवेन्यू?
ये कंपनी जिस भी ब्रांड के साथ काम करती है, उससे प्रति किलो के हिसाब से एक अमाउंट चार्ज करती है. उसी पैसों से कंपनी प्लास्टिक वेस्ट जमा करती है और फिर उसे रीसाइकिल करती है. इन्हीं पैसों में से कूड़ा उठाने वालों को भी पैसे दिए जाते हैं और फिर जो मार्जिन बचा है, वह कंपनी की कमाई होती है. बता दें कि यह कंपनी पहले दिन से ही मुनाफे में है. कंपनी ने लगभग 500 रैग पिकर्स यानी कूड़ा बीनने वालों को रोजगार भी दिया हुआ है.
चुनौतियां भी कम नहीं
द डिस्पोजल कंपनी के सामने प्लास्टिक वेस्ट को रीसाइकिल करने में सबसे बड़ी चुनौती ये है कि भारत में तमाम तरह का प्लास्टिक ही आपस में मिक्स नहीं होता है, बल्कि अन्य तरह का सूखा-गीला कचरा भी उसमें मिक्स होता है. ऐसे में उसे साफ करना और फिर उसे रीसाइकिल करना एक बड़ी चुनौती रहती है. भाग्यश्री कहती हैं कि भारत में रीसाइकिल हुए प्लास्टिक पर लगने वाली जीएसटी भी अभी एक दिक्कत है. उनका मानना है कि जब प्लास्टिक रीसाइकिल होकर वापस सिस्टम में आता है तो उसके लिए इंसेंटिव मिलना चाहिए. वह बताती हैं कि रीसाइकिल किए गए प्लास्टिक ग्रैन्यूल्स पर 18 फीसदी जीएसटी लगती है, जिससे इसके एडॉप्शन में समस्या आती है. साथ ही उनका मानना है कि वेस्ट मैनेजमेंट को स्कूल-कॉलेज में पढ़ाया जाना चाहिए.
अब तक मिल चुकी है कितनी फंडिंग?
द डिस्पोजल कंपनी ने अभी तक सिर्फ एक राउंड की फंडिंग उठाई है. इसके तहत एक्सेंचर और आईआईएम अहमदाबाद ने कंपनी में 42 लाख रुपये इन्वेस्ट किए हैं. भाग्यश्री बताती हैं कि उनके बिजनेस को अभी सरकार की तरफ से तो किसी तरह की फंडिंग या ग्रांट नहीं मिला है, लेकिन सरकार की तमाम पॉलिसी उनके बिजनेस को सपोर्ट मिलता है. हाल ही में ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम लॉन्च किया गया है, जिससे भी द डिस्पोजल कंपनी को सपोर्ट मिलेगा.
फ्यूचर का क्या है प्लान?
भाग्यश्री अपनी कंपनी को एक इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन बनाना चाहती हैं. भारत में अभी तक रीसाइकिलिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की फ्रेंचाइजी नहीं दी जाती है, लेकिन भाग्यश्री इस दिशा में भी काम करना चाहती हैं. अभी तो कंपनी प्लास्टिक वेस्ट पर काम कर रही है, लेकिन आने वाले दिनों में कंपनी कार्बन न्यूट्रैलिटी पर भी काम करने की योजना बना रही है. दीपिका पादुकोन की कंपनी 82°E के साथ मिलकर उन्होंने अपना पहला कार्बन फुटप्रिंट का प्रोजेक्ट किया था और अब अलग-अलग इंडस्ट्री में कार्बन न्यूट्रैलिटी पर काम किया जा रहा है.
02:16 PM IST