क़िस्सा-ए-कंज़्यूमर: कॉल वाला जाल, 'मुफ्त कार' वाली कटिया
इधर कुछ महीनों से एक नया तरीका खोजा है डिजिटल डकैतों ने. मुफ्त कार का झांसा दो और हजारों रुपए साफ कर दो. मुझ पर तो कई बार हाथ आजमाया जा चुका है. ताजा वाकया सुनिए.
हर दिन सैकड़ों की तादाद में आजमाया जा रहा है जालसाजी का ये नुस्खा.
हर दिन सैकड़ों की तादाद में आजमाया जा रहा है जालसाजी का ये नुस्खा.
एक जोक सुना था. लाल बत्ती जंप करते ही बाइक वाले को ट्रैफिक हवलदार ने धर लिया. लड़का बोला- 'क्या सर! इतने सारे लोग निकल गए, मैं ही मिला था आपको?' हवलदार हंसा- 'नदी में मछली पकड़ी है कभी?' लड़का हैरानी से बोला- 'हां सर, क्यों !?' हवलदार बोला- 'सारी की सारी पकड़ में आवें हैं के?' तो जनाब, ये अपने आप में एक दर्शन है. और इस दर्शन में बहुत दम है. ये दमदार दर्शन देश के हजारों लाखों जालसाजों को मोटिवेट करता है. दर्शन ये कि तुम बस फंदा फेंकते रहो. कोई न कोई तो फंसेगा ही. एक सौ तीस करोड़ का देश है. सारे के सारे समझदार हो गए क्या? कुछ तो होंगे जो हमारी असलियत से अंजान होंगे? कुछ तो होंगे जो हमारे चारे को भोजन समझ के गटक लेंगे. और फिर, इसके लिए करना भी क्या है? सिर्फ फोन ही तो करना है, थोड़ी पट्टी ही तो पढ़ानी है. कौन-सी बिजली खर्च हो रही है इसमें? बिना गोली की बंदूक है. डर गया तो हो गया काम. नहीं फंसा तो- तू नहीं और सही, और नहीं और सही. तो इसी दर्शन के साथ इधर कुछ महीनों से एक नया तरीका खोजा है डिजिटल डकैतों ने. मुफ्त कार का झांसा दो और हजारों रुपए साफ कर दो. मुझ पर तो कई बार हाथ आजमाया जा चुका है. ताजा वाकया सुनिए.
टाटा सफारी ले लो, महिंद्रा एक्सयूवी ले लो!
सुबह करीब 11 बजे फोन बजा. अननोन नंबर. मैंने उठा लिया. उधर से आवाज़ आई - 'सर, आपने फ्लिपकार्ट से शॉपिंग किये थे ना पिछले हफ्ते?' मैंने कहा- 'हां भाई, की तो थी. गलती हो गई, आगे से नहीं करूंगा'. वो अपनी रौ में था-'नहीं सर, बताना चाहूंगा कि फ्लिपकार्ट कंपनी की तरफ से आपको लकी कस्टमर चुना गया है. आपका प्राइज है महिंद्रा एक्सयूवी 500 कार जिसकी मार्केट में कीमत है 12 लाख 50 हजार रुपए'. 'अच्छाss!!??' मैंने ऐसे रिएक्ट किया जैसे खुशी के मारे गश खाकर गिर जाऊंगा. उसको पता नहीं था कि ऐसे कई फोन मैं पहले भी निपटा चुका था. मैं अच्छी तरह जानता था कि आगे क्या होने वाला है. मेरी उम्मीद के मुताबिक उसने पूछा 'तो सर आप कौन से कलर की गाड़ी लेना चाहते हैं?' मैंने कहा - 'भाई, कार तो है मेरे पास, कार के बदले पैसे मिल जाएंगे क्या?' उसने कहा- 'जी बिल्कुल मिल जाएंगे, आप अपना आधार कार्ड, पैन कार्ड का फोटो और अकाउंट नंबर व्हॉट्स ऐप कर दीजिए, मैं प्रोसेस शुरू करता हूं. लेकिन इसके लिए आपको 8,900 रुपए की रजिस्ट्रेशन फीस देनी होगी, हमारी कंपनी के डायरेक्टर के अकाउंट में.' मैंने कहा- 'भाई, पैसे तो मैं दे दूंगा लेकिन आजकल बहुत सारे फ्रॉड कॉल भी आते हैं, मैं कैसे भरोसा कर लूं?'
TRENDING NOW
FD पर Tax नहीं लगने देते हैं ये 2 फॉर्म! निवेश किया है तो समझ लें इनको कब और कैसे करते हैं इस्तेमाल
8th Pay Commission: केंद्रीय कर्मचारियों के लिए ताजा अपडेट, खुद सरकार की तरफ से आया ये पैगाम! जानिए क्या मिला इशारा
उसने कहा- 'सर फ्रॉड होता तो आपका नाम, नंबर और आपकी शॉपिंग की डीटेल हमको कैसे मालूम होती? ऐसी कोई बात नहीं है. हम आपको अपना एंप्लाई आईडी, आधार कार्ड, पैन कार्ड सब भेज देते हैं, तब तो आपको विश्वास हो जाएगा ना?' इसके बाद मेरे व्हॉट्सऐप पर बाकायदा फ्लिपकार्ट के लोगो के साथ एक आईडी कार्ड, एक पैन कार्ड और एक आधार कार्ड भी आया. नाम लिखा था- नितिन कुमार सिंह. फोटो किसकी थी, पता नहीं. मैंने मजे लेने के लिए कहा - 'आप ऐसा करो, मैं अपना अकाउंट नंबर देता हूं, मुझे 12 लाख 50 हजार भेज दो, उसके बाद मैं आपको 8,900 क्या, पूरे 1 लाख दे दूंगा, लेकिन पहले पैसे आप भेजो'. वो समझ गया. फौरन भाग लिया.
ये किसी कंपनी के नहीं, ये 'बदमाश कंपनी' है
हर दिन सैकड़ों की तादाद में आजमाया जा रहा है जालसाजी का ये नुस्खा. कभी सीधे फोन आता है, कभी फोन से पहले फर्जी एसएमएस. उसी लकी कस्टमर और मुफ्त कार वाली खुशखबरी के साथ. एसएमएस में होता है एक फोन नंबर जिसपर फंसने वाले मुर्गे फोन करते हैं. फंसाने वाले नाम लेते हैं किसी ऐसे ई-कॉमर्स ब्रांड का जिसपर आपको भरोसा हो, जिससे आपने हाल ही में शॉपिंग की हो. वो नाम अमेजॉन भी हो सकता है, फ्लिपकार्ट भी, स्नैपडील भी हो सकता है, शॉपक्लूज़ भी. होमशॉप 18 और क्लब फैक्टरी तक का नाम इस्तेमाल करते हैं ये जालसाज. जबकि असल में इन कंपनियों से इनका कोई लेना देना नहीं. ये सिर्फ इन तमाम कंपनियों का नाम खराब कर रहे हैं. किसी को टाटा नेक्सॉन बांट रहे हैं, किसी को टाटा सफारी, किसी को स्विफ्ट डिजायर दे रहे हैं तो किसी को महिंद्रा एक्सयूवी. ऑफर ये कि गाड़ी ले लो या फिर उसकी कीमत के बराबर पैसे. अफसोस की बात ये है कि कई बार लोग इनके ट्रैप में आ जाते हैं. सोचते हैं गुप्त तरीके से लाखों रुपए आने का योग बना है, ऐसे में 8-9 हजार खर्च भी हो गए तो क्या सोचना? मुफ्त का रोमांच ऐसा होता है कि किसी से राय-मशविरा भी नहीं करते. उन्हें पता नहीं होता कि जैसे ही पैसा उनके पास पहुंचेगा, वो चंपत हो जाएंगे और उनका सुंदर सपना छन्न करके टूट जाएगा. उसके बाद ना तो पुलिस कोई मदद कर पाएगी और न वो कंपनी जिसका नाम लेकर वो अपना उल्लू सीधा कर गया.
'मुफ्त' कुछ नहीं मिलता, कब समझेंगे?
जनाब हम तो उस देश के वासी हैं जहां बंपर डिस्काउंट के नाम पर ही पब्लिक अपनी अक्ल को घास चरने भेज देती है. यहां तो 'मुफ्त' की बात हो रही है. किसी न किसी का लहरा जाना लाजमी है. लेकिन समझने की बात ये है कि ये मुफ्त वाला लॉलीपॉप सिर्फ अक्ल पर पर्दा डालने के लिए ही इस्तेमाल होता आया है. दुनिया इतनी भी अच्छी नहीं है जनाब कि कोई आपको लाखों रुपए मुफ्त बांटने लगे. यहां हर किसी को अपनी जेब, अपनी कमाई की पड़ी है. कोई कंपनी आपको मुफ्त की कार या लाखों का इनाम क्यों देगी भला? मुफ्त तो शब्द ही ऐसा है जिसे सुनते ही दिमाग में शक वाली घंटी बजनी चाहिए. भारतेंदु हरिश्चंद्र की लिखी 'अंधेर नगरी' याद है आपको? उसमें भी गुरु जी अपने शिष्य को यही समझाते हैं कि 'बच्चा गोवर्धनदास! जिस नगरी में भाजी और खाजा दोनों टका सेर ही मिल रहे हों, वो जगह रहने लायक नहीं हो सकती'. लेकिन गोवर्धन दास को बात समझ में नहीं आती और आखिरकार हालात ऐसे बनते हैं कि दीवार, कारीगर, चूनेवाले, भिश्ती और कसाई से होते हुए फांसी का फंदा भोले-भाले गोवर्धनदास की गर्दन तक पहुंच जाता है और चेले की जान बचाने के लिए गुरुजी को चक्कर चलाना पड़ता है. लेकिन हम हैं कि समझ ही नहीं पाते ये बात. अक्सर 'मुफ्त' के फंदे में अपनी गर्दन दे देते हैं. वो शेर है ना शायर अफ़ज़ल ख़ान का-
तू भी सादा है, कभी चाल बदलता ही नहीं
हम भी सादा हैं, इसी चाल में आ जाते हैं.
(लेखक ज़ी बिज़नेस डिजिटल से जुड़े हैं)
01:04 PM IST