क़िस्सा-ए-कंज़्यूमर: आपके बैंक अकाउंट पर भी अटैक कर सकता है CoronaVirus
खास तौर पर तब जबकि वो ई-मेल आपके मेलबॉक्स में बिन बुलाए मेहमान की तरह गिरा हो. फिर चाहे वो ई-मेल WHO के नाम पर ही क्यों न हो. दूसरी बात- डोमेन नेम को ध्यान से देखने पर कई बार फर्जीवाड़ा खुद पकड़ में आ जाता है.
आपको सावधान करने के लिए ये किस्सा बहुत जरूरी है.
आपको सावधान करने के लिए ये किस्सा बहुत जरूरी है.
यूं तो ये किस्सा विदेश का है लेकिन ऐसे वक्त में जबकि विदेश की बीमारी देश की सरहद में दाखिल हो चुकी हो और पूरे हिंदुस्तान में हड़कंप मचा हो, इस बीमारी से जुड़ी जालसाजी से भी बाखबर रहना जरूरी है. वैसे भी ऑनलाइन फ्रॉड की कोई सरहद नहीं होती. ई-मेल के जरिए सेंध लगाने वाले कहीं से अपने मंसूबों को अंजाम दे सकते हैं. इसलिए आपको सावधान करने के लिए ये किस्सा बहुत जरूरी है. तो हुआ कुछ यूं कि यूके और इटली में कारोबार करने वाले एक सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर वेंडर को पिछले हफ्ते एक ई-मेल मिला. ई-मेल जानी मानी यूनिवर्सिटी मिलान के एड्रेस से आया था. इस ई-मेल में दिनों-दिन पैर पसारते जा रहे कोरोना वायरस के खतरे से आगाह किया गया था. साथ ही बताया गया था कि इसे फैलने से रोकने के लिए क्या करें.
ई-मेल में कोरोना आउटब्रेक को इमरजेंसी के हालात बताते हुए एक डाउनलोड लिंक पर क्लिक करने को कहा था जिसमें कोरोना से जुड़ी जानकारियां होने की बात कही गई थी. दिलचस्प बात ये थी कि सेंडर का ऐड्रेस असली था. यानी मिलान यूनिवर्सिटी की असली ई-मेल आईडी से मेल भेजा गया था. ऐसे में किसी का भी झांसे में आ जाना लाज़मी है. लिहाजा ई-मेल रिसीव करने वाले ने उस डाउनलोड लिंक पर क्लिक कर दिया. क्लिक करते ही एक पेज खुला. ये पेज था Microsoft Office 365 का जिसमें यूजर को अपनी लॉगिन आईडी और पासवर्ड की मदद से लॉगिन करना था. ये पेज देखते ही यूजर का माथा ठनका. उसने मामले की छानबीन कराई. पता चला कि मिलान यूनिवर्सिटी किसी को भी ऐसा कोई ई-मेल नहीं भेज रही. मतलब साफ था, हैकर ने किसी तरह से यूनिवर्सिटी का ई-मेल अकाउंट हैक कर लिया था और अब वो लोगों पर्सनल डीटेल्स हैक करने के लिए यूनिवर्सिटी की आईडी से मेल कर रहा था. और ये सब हो रहा था कोरोना वायरस के बहाने.
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WHO और CDC के नाम पर भी चल रहा फर्जीवाड़ा
इंसान भी कमाल का प्राणी है. अपनी ही दुनिया को मुसीबत में देखकर भी अपना धंधा चमकाने के मौके तलाश लेता है. कोरोना को लेकर मचे कोहराम के बीच साइबर लुटेरों को भी ऐसा ही मौका दिखाई दे रहा है. तभी तो WHO यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन से लेकर CDC यानी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन जैसी जानी-मानी संस्थाओं तक के फर्जी आईडी बनाकर ये जालसाज दनादन ई-मेल भेज रहे हैं. इन सभी ई-मेल्स का मजमून तकरीबन एक जैसा है. पहले कोरोना वायरस खौफ दिलाना. इसके बाद बचाव के उपाय का झांसा देकर एक ऐसे लिंक पर क्लिक करने को कहना जो उनके बिछाए जाल की पहली सीढ़ी है. जहां क्लिक करके आप अपनी उन डीटेल्स के लिए खतरा पैदा कर देते हैं जिनकी मदद से कोई आपके बैंक खातों तक पहुंच सकता है. आपका ईमेल आईडी, पासवर्ड, इंटरनेट पिन, डेबिट/क्रेडिट कार्ड नंबर, सीवीवी नंबर, ओटीपी जैसा कोई भी प्राइवेट डाटा हैकर के हाथ लग सकता है. इस ऑनलाइन स्कैम को फिशिंग कहते हैं. इसमें आपके पास ई-मेल के अलावा फोन कॉल, एसएमएस या व्हॉट्सऐप मैसेज के जरिए भी फंसाने की कोशिश की जा सकती है. साइबर ठगों की ये जमात जापान, चीन, अमेरिका और यूरोप के बाद अब भारत में लोगों को अपना शिकार बनाने की फिराक में है. यही वजह है कि महाराष्ट्र समेत तमाम राज्यों की पुलिस इस फ्रॉड से जुड़ी एडवाइजरी पहले ही जारी कर चुकी है.
कोरोना वाला ई-मेल कैसे बन जाता है खाते के लिए खतरा?
अब तक ऐसे जितने मामले सामने आए हैं उनमें ज्यादातर 4 तरह के पैटर्न देखने को मिल रहे हैं. पहला ये कि आपके पास किसी नामी संस्था की फर्जी आईडी से ई-मेल या मैसेज आएगा. उसमें कोरोना के खतरे पर फिक्र जताई गई होगी. और फिर आपसे कहा जाएगा कि अगर आप अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा चाहते हैं तो लिंक पर क्लिक करें. लिंक पर क्लिक करते ही एक पेज खुलता है जिसमें आपको अपना यूजर आईडी और पासवर्ड डालकर लॉगिन करने को कहा जाता है. यहां आपने जो डीटेल डाली हो सीधे हैकर के पास चली जाती है. इसके आगे भी आपसे कोई ऑनलाइन फॉर्म भरने को कहा जा सकता है जिसमें आपकी पर्सनल डीटेल्स हों. इनका इस्तेमाल करके वो आपके बैंकिंग या क्रेडिट कार्ड डीटेल्स और पासवर्ड तक पहुंच सकता है. दूसरा पैटर्न ये है कि ई-मेल में आपसे जिस फाइल पर क्लिक करने को कहा गया उसपर क्लिक करते ही कोई मालवेयर या वायरस आपके कंप्यूटर में इंस्टॉल हो जाएगा, यानी आपका कंप्यूटर इन्फेक्टेड हो जाएगा. इस तरह आपके सिस्टम का कंट्रोल उसके हाथ में चला जाएगा. तीसरा पैटर्न ये है कि ई-मेल या मैसेज में कोरोना के प्रकोप और उसके पीड़ितों की बात होती है और उनकी मदद के लिए बने फंड में डोनेशन देने के लिए किसी लिंक पर क्लिक करने के लिए कहा जाता है. अब अव्वल तो हो सकता है उस लिंक पर क्लिक करके ही आप मुसीबत में पड़ जाएं. नहीं तो आपका दिया डोनेशन की गलत हाथों में जा रहा हो. चौथा पैटर्न ये है कि कुछ ई-मेल्स पर कोरोना से बचाने वाली वैक्सीन बेचने का दावा किया जा रहा है. जाहिर है घबराए हुए लोग ऐसे किसी भी लिंक पर फौरन क्लिक कर देंगे. लेकिन WHO के मुताबिक ऐेसे मेल भी पूरी तरह फर्जी हैं.
ऐसे दिख जाएगा कि दाल में कुछ काला है
सबसे जरूरी बात- WHO और CDC ने खुद साफ किया है कि वो किसी को भी पर्सनल ई-मेल या मैसेज नहीं भेजते. इसलिए अगर आपको WHO और CDC का ऐसा मेल मिल रहा है जो आपकी अपनी ई-मेल आईडी पर भेजा गया है तो समझिए मामला गड़बड़ है. WHO ने यहां तक कहा है कि वो कभी कोई सेफ्टी इनफॉर्मेशन देखने के लिए लॉन-इन करने को नहीं कहता, बिना मांगे ई-मेल या अटैचमेंट नहीं भेजता, www.who.int के बाहर किसी लिंक पर जाने को नहीं कहता, साथ ही किसी इमरजेंसी रिस्पॉन्स प्लान को सीधे डोनेशन देने की सलाह भी नहीं देता. वैसे भी, किसी अनजान ई-मेल के साथ आए लिंक को क्लिक करने से पहले सौ बार सोचिए. खास तौर पर तब जबकि वो ई-मेल आपके मेलबॉक्स में बिन बुलाए मेहमान की तरह गिरा हो. फिर चाहे वो ई-मेल WHO के नाम पर ही क्यों न हो. दूसरी बात- डोमेन नेम को ध्यान से देखने पर कई बार फर्जीवाड़ा खुद पकड़ में आ जाता है.
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मसलन- CDC के नाम पर जो ई-मेल आ रहे हैं उनमें डोमेन नेम लिखा है CDC-GOV.ORG जबकि असली वेबसाइट का डोमेन नेम CDC.GOV है. कई बार स्पेलिंग में गलतियां मिल जाती हैं. एक तरीका ये भी है कि मेल या मैसेज में आये लिंक पर क्लिक करने के बजाय आप उसके URL को सर्च इंजन में डालकर क्रॉस चेक कीजिए. हो सकता है यहीं गड़बड़ी पकड़ में आ जाए. तीसरी बात- बहुत से लोग अलग-अलग वेबसाइट पर एक ही पासवर्ड इस्तेमाल करते हैं. इससे खतरा ये होता है कि अगर किसी को आपका एक पासवर्ड पता चल गया तो वो दूसरे अकाउंट्स पर आजमा कर उन्हें एक्सेस कर सकता है. कोशिश कीजिए कि हर वेबसाइट के लिए आपका पासवर्ड अलग हो. आखिरी और सबसे जरूरी बात- किसी भी संदिग्ध मैसेज या लिंक को बिना वेरीफाई किए किसी फॉरवर्ड ना करें वर्ना आपके दोस्त या रिश्तेदार आपके भेजे गए मैसेज पर भरोसा कर लेंगे और न चाहते हुए भी आप उनके नुकसान की वजह बन जाएंगे.
11:57 AM IST