आर्थिक मंदी के दस साल, ऐसी चुनौतियां जिससे भारत पर फिर आ सकता है संकट!
वर्ष 2008 की मंदी में भारत ने खुद को काफी हद तक संभाले रखा था लेकिन आज भारत के सामने फिर से कई आर्थिक चुनौतियां सामने हैं, जिनसे निपटना जरूरी है.
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर
आज से दस साल पहले दुनिया के लिए वर्ष 2008 कभी न भूलने वाला साल रहा. वजह थी आर्थिक मंदी. इस मंदी ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को एक तरह से बर्बाद कर दिया. दुनियाभर में करोड़ों लोगों की अपनी गाढ़ी कमाई गंवानी पड़ी, नौकरियों से हाथ धोने पड़ गए, कइयों को अपना घर खोना पड़ा. जानकारों का कहना है कि वर्ष 1930 के बाद यह सबसे बड़ी आर्थिक मंदी थी. इस मंदी के लिए नई तकनीकों के अविष्कार में ठहराव को भी जिम्मेदारी बताया गया. वर्ष 2008 की मंदी के लिए अमेरिका ही जिम्मेदार था. आज भी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों और चीन के साथ अमेरिका के कारोबारी युद्ध से आने वाले समय में आर्थिक सुस्ती का खतरा भारत समेत दुनियाभर में महसूस किया जा रहा है. हालांकि, वर्ष 2008 की मंदी में भारत ने खुद को काफी हद तक संभाले रखा था लेकिन आज भारत के सामने फिर से कई आर्थिक चुनौतियां सामने हैं, जिनसे निपटना जरूरी है.
भारत के सामने ये हैं चुनौतियां
राजकोषीय घाटा
सरकार चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.3 प्रतिशत के बजटीय लक्ष्य में रखने को प्रतिबद्ध है. एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि देश राजकोषीय घाटे और चालू खाते के घाटे (कैड) की दोहरी समस्या से एक साथ नहीं जूझ सकता है. अधिकारी ने कहा कि रुपये में गिरावट और कच्चे तेल के दाम चढ़ने से निश्चित रूप से देश के चालू खाते के घाटे (कैड) पर दबाव बढ़ेगा. इस समय राजकोषीय मोर्चे पर किसी तरह की चूक से दोहरे घाटे की समस्या झेलनी पड़ सकती है.
अधिकारी ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में किसी तरह की कटौती की संभावना से इनकार करते हुए कहा कि कर राजस्व में तेल पर निर्भरता को कम किया जाना चाहिए. यह तभी हो सकता है जब जीडीपी में गैर-पेट्रोल कर राजस्व का हिस्सा बढ़े. अधिकारी ने कहा, ‘‘भारत राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को कायम रखेगा क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था उपभोग आधारित है और कर राजस्व भी बढ़ रहा है. हम इसे हासिल करने को प्रतिबद्ध हैं. हम खर्च में कटौती नहीं करेंगे क्योंकि इसका वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.’’
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अधिकारी ने कहा कि खर्च में कटौती कर राजकोषीय घाटे को कम करना सबसे आसान है. ‘‘यदि हम खर्च में एक लाख करोड़ रुपये की कटौती करते हैं तो राजकोषीय घाटा 2.9 प्रतिशत पर आ जाएगा. लेकिन इससे वृद्धि पर असर पड़ेगा.’’
रुपए में बड़ी गिरावट
अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर बढ़ने की आशंकाओं के चलते भारतीय करंसी पर दबाव बन रहा है. इसके अलावा महीने के आखिर में ऑयल मार्केटिंग कंपनियों (HPCL, IOC, BPCL) की ओर से डॉलर की मांग बढ़ जाती है. इसीलिए महीने के अंत में भारतीय रुपया कमजोर होता है.
आम आदमी पर क्या होगा कमजोर रुपए का असर
भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी पेट्रोलियम प्रोडक्ट आयात करता है.
-रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का आयात महंगा हो जाएगा.
-तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल की घरेलू कीमतों में बढ़ोतरी कर सकती हैं.
-डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई में तेजी आ सकती है.
-इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है.
-रुपये के कमजोर होने से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.
पेट्रोल-डीजल के दाम में लगातार बढ़ोतरी
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की अधिक कीमत से भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम में लगातार बढ़ोतरी का सिलसिला जारी है. कच्चे तेल की कीमतों में पिछले सत्र में आई गिरावट के बाद शुक्रवार को फिर तेजी आई. तेल निर्यातक देशों का संगठन ओपेक के उत्पादन में बढ़ोतरी के आंकड़े आने के बाद गुरुवार को तेल की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई. मगर तेजी के कारक प्रभावी होने के कारण रिकवरी आई. जानकारों के मुताबिक, ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध से कच्चे तेल की कीमतों को लगातार सपोर्ट मिल रहा है जिसके चलते फिर तेल की कीमतों में तेजी दर्ज की गई. नायमैक्स पर डब्ल्यूटीआई का अक्टूबर वायदा 0.42 फीसदी की बढ़त के साथ 68.88 डॉलर प्रति बैरल और आईसीई पर ब्रेंट क्रूड का नवंबर वायदा 0.29 फीसदी की बढ़त के साथ 78.41 डॉलर प्रति बैरल पर बना हुआ था.
06:40 PM IST