दूसरी छमाही में धीमी पड़ सकती है आर्थिक वृद्धि: यूबीएस रिपोर्ट
सुस्त पड़ती वैश्विक वृद्धि, कच्चे तेल के ऊंचे दाम और कठिन वित्तीय स्थिति के चलते चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी पड़ सकती है.
यूबीएस की रिपोर्ट में कहा गया कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी पड़ सकती है (फाइल फोटो)
यूबीएस की रिपोर्ट में कहा गया कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी पड़ सकती है (फाइल फोटो)
सुस्त पड़ती वैश्विक वृद्धि, कच्चे तेल के ऊंचे दाम और कठिन वित्तीय स्थिति के चलते चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी पड़ सकती है. वित्त वर्ष की पहली तिमाही में हालांकि, आर्थिक वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत के साथ मजबूत रही है. वैश्विक वित्तीय सेवा कंपनी यूबीएस ने अपनी एक रिपोर्ट में यह आशंका जताई है.
जीडीपी 07 फीसदी के करीब रह सकती है
यूबीएस के मुताबिक वर्ष की दूसरी छमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वास्तविक वृद्धि 7 से 7.3 प्रतिशत के दायरे में रह सकती है. जबकि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत के उच्चस्तर पर दर्ज की गई. यूबीएस सिक्युरिटीज की भारत में अर्थशास्त्री तन्वी गुप्ता जैन और रणनीतिकार रोहित अरोड़ा ने अपने एक शोध पत्र में कहा है, ‘‘हमें आने वाले समय में प्रतिकूल स्थिति नजर आ रही है. वित्तीय स्थिति कठिन होने के साथ साथ कच्चे तेल के ऊंचे दाम, सुस्त पड़ती वैश्विक वृद्धि, निजी क्षेत्र में अभी भी कमजोर चल रहे पूंजी व्यय और साथ ही कंपनियों के पुराने मामले जैसे कि ऊंचा रिण और कमजोर हिसाब किताब का आर्थिक वृ्द्धि पर असर पड़ना स्वाभाविक है.’’ आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल से जून की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 8.2 प्रतिशत की ऊंची दर से बढ़ी है। इसमें विनिर्माण और कृषि क्षेत्र का बेहतर योगदान रहा है.
आरबीआई यथा स्थिति रख सकता है
यूबीएस की रिपोर्ट में मौद्रिक नीति के मोर्चे पर कहा गया है कि तेल मूल्यों और व्यापार युद्ध जैसी वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच रिजर्व बैंक आने वाले कुछ महीनों में यथा स्थिति रख सकता है. रिपोर्ट में दोनों तरह की स्थिति के बारे में कहा गया है कि एक स्थिति यह है कि वैश्विक वृद्धि कमजोर पड़ती है, उपभोक्ता जिंस के दाम गिरते हैं आरबीआई यथा स्थिति रख सकता है, वहीं दूसरी स्थिति जब भारत पर तेल के बढ़ते दाम, पूंजी की निकासी, लोक लुभावन खर्च बढ़ने और राजनीतिक अनिश्चितता से जब वित्तीय स्थिति को लेकर चिंता बढ़ती हो तो वर्ष की बाकी अवधि में आधा प्रतिशत तक वृद्धि की जा सकती है.
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