World Wildlife Day 2023: जानें क्यों मनाते हैं ये दिन, क्या है महत्व और कौन से हैं वो पेड़-पौधे और जानवर जो अब नजर नहीं आते?
World Wildlife Day 2023 Significance and Theme: हर साल 3 मार्च को विश्व वन्य जीव दिवस किस उद्देश्य से मनाया जाता है, साल 2023 में इस दिन की क्या थीम रखी गई है.
सांकेतिक तस्वीर Source-Pixabay
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विश्व वन्य जीव दिवस (World Wildlife Day) हर साल 3 मार्च को मनाया जाता है. ये दिन दुनियाभर में तेजी से विलुप्त हो रहे पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से मनाया जाता है. इस दिन लोगों को जंगली वनस्पतियों और जीवों (Wild Flora and Fauna) की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण के फायदे बताकर जागरुक किया जाता है और वन्यजीव अपराध और वनों की कटाई के कारण वनस्पतियों और जीवों को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए आह्वान किया जाता है.आइए आपको बताते हैं इस दिन का इतिहास और उन पेड़-पौधों व जीव-जंतुओं के बारे में जो तेजी से लुप्त होते जा रहे हैं.
विश्व वन्य जीव दिवस का इतिहास और थीम
विश्व वन्य जीव दिवस को मनाने की शुरुआत साल 2013 में हुई थी. 20 दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने 68वें अधिवेशन में वन्यजीवों की सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने और वनस्पति के लुप्तप्राय प्रजाति के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हर 3 मार्च को हर साल विश्व वन्यजीव दिवस मनाने की घोषणा की थी. तब से ये दिन हर साल 3 मार्च को मनाया जाता है. हर साल विश्व वन्य जीव दिवस की थीम निर्धारित की जाती है. साल 2023 की थीम 'वन्यजीव संरक्षण के लिए साझेदारी' है.
जानें वो पौधे जो लुप्त हो चुके हैं
1. होपिया शिंकेंग- ये पौधा पूर्वी हिमालय में कभी बड़ी संख्या में पाया जाता था, लेकिन बीते 100 से ये नजर नहीं आता.
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2. आइलेक्स गार्डनेरियाना- ये सदाबहार प्रजाति का वृक्ष है. अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार ये अब भारत में खत्म हो चुका है. इसके खत्म होने की मुख्य वजह तेजी से जंगलों की कटाई को माना गया है.
3. मधुका इंसिग्निस- ये पौधा कभी कर्नाटक में पाया जाता था, लेकिन अब ये वर्षों से नजर नहीं आया है. आईयूसीएन की 1998 में जारी सूची में इसे विलुप्त की श्रेणी में रखा गया है.
4. स्टरकुलिया खासियाना- मेघालय के खासी जनजातीय पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाने वाला ये पौधा भी भारत में बहुत तेजी से खत्म हुआ है. आईयूसीएन ने इसे भी लुप्त हो चुके पादपों की श्रेणी में रखा है. हालांकि इसकी सह प्रजातियों के जरिए इसे फिर से जंगल में लौटाने का प्रयास किया जा रहा है.
ये जीव-जंतु हो चुके हैं लुप्त
1. नॉर्दर्न वाइट राइनोसॉरस- नॉर्दर्न वाइट राइनोसॉरस अंतिम नर की 2018 के मार्च में मृत्यु हो गई थी. अब आखिरी दो जीवित उत्तरी वाइट राइनोसॉरस हैं और दोनों मादा हैं. जाहिर है कि दोनों जन्म देने में असमर्थ हैं. ऐसे में इस प्रजाति को विलुप्त माना जा रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह इनका शिकार है.
2. डोडो- डोडो एक पक्षी था जो कभी मॉरीशस में पाया जाता था. आखिरी बार डोडो को 1660 के दशक में देखा गया था. नाविकों ने डोडो का खूब शिकार किया और तमाम जानवरों ने इनके अंडे खाए, जिसके कारण ये प्रजाति विलुप्त हो गई.
3. पैसेंजर पीजन- पहले पैसेंजर पीजन (यात्री कबूतर) की संख्या लाखों में हुआ करती थी, लेकिन अब ये नजर नहीं आते. कहा जाता है कि लोगों ने इनका जमकर शिकार किया, जिसकी वजह से ये गायब हो गए.
4. गोल्डन टॉड- गोल्डन टॉड आखिरी बार 1989 में देखा गया था. इसके बाद ये कभी नजर नहीं आया. साल 1994 में इसे विलुप्त घोषित कर दिया गया. माना जाता है कि एक घातक त्वचा रोग ने इसकी आबादी को नष्ट कर दिया था. प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और चिट्रिड त्वचा संक्रमण आदि को इसके विलुप्त होने की वजह माना जाता है.
5. डच बटरफ्लाई- एल्कॉन ब्लू कलर की डच बटरफ्लाई की एक उप-प्रजाति मुख्य रूप से नीदरलैंड के घास के मैदानों में पाई जाती थी. आखिरी बार इसे 1979 में देखा गया था. खेती और घरों के ज्यादा निर्माण से एल्कॉन ब्लू के घरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और धीरे-धीरे ये विलुप्त हो गई.
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09:48 AM IST