बैंक हड़ताल से अटका कारोबार, राजस्थान में 3500 करोड़ का लेनदेन प्रभावित
देना बैंक और विजया बैंक को बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय करने के केंद्र सरकार के निर्णय के खिलाफ देश के बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों के 9 संगठनों के मंच यूनाइटेड फोरम आफ बैंक यूनियंस के आव्हान पर 10 लाख बैंक कर्मचारी और अधिकारी एक दिवसीय हड़ताल कर रहे हैं.
देश भर में बैंक हड़ताल के चलते हजारों करोड़ का कारोबार प्रभावित (फाइल फाेटो)
देश भर में बैंक हड़ताल के चलते हजारों करोड़ का कारोबार प्रभावित (फाइल फाेटो)
रिपोर्ट: (अंकित तिवाड़ी) देना बैंक और विजया बैंक को बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय करने के केंद्र सरकार के निर्णय के खिलाफ देश के बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों के 9 संगठनों के मंच यूनाइटेड फोरम आफ बैंक यूनियंस के आव्हान पर 10 लाख बैंक कर्मचारी और अधिकारी एक दिवसीय हड़ताल कर रहे हैं. हड़ताल से देश के व्यवसायिक निजी और विदेशी बैंकों में कामकाज पूरी तरह ठप हैं, जबकि देश के ग्रामीणों सहकारी बैंकों को यूनियनों ने इस हड़ताल से अलग रखा है. हड़ताली संगठनों का दावा है कि देशव्यापी हड़ताल का राजस्थान प्रदेश मैं बैंकों में व्यापक असर दिख रहा हैं और प्रदेश की 3500 से अधिक शाखाएं पूरी तरह बंद हैं. प्रशासनिक केंद्रों पर भी ताले हैं, हड़ताल से प्रदेश में लगभग 10 अरब का कारोबार प्रभावित होने का अनुमान है.
प्रदेशभर में प्रदर्शन
यूनाइटेड फोरम आफ बैंक यूनियंस के आव्हान पर प्रदेश के सभी जिलों में बैंक कर्मचारी अधिकारी संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं. जयपुर, कोटा, बीकानेर, जोधपुर, उदयपुर, अजमेर सहित सभी जिला मुख्यालयों पर बैंक संगठनों के सदस्यों और पदाधिकारियों ने प्रदर्शन किया. प्रदर्शन के बाद हड़ताली कर्मचारियों और अधिकारियों ने प्रदर्शन स्थल पर आम सभा की, जिसे यूनाइटेड फोरम के घटक संगठनों के विभिन्न नेताओं ने संबोधित किया जिसमें एआईबीईए के महेश मिश्रा, लोकेश मिश्रा, सूरजभान सिंह, आईबोक के विनय भल्ला- संजीव गुप्ता, एआईबीओए के नरेश शर्मा , एसएस नरूका, एनसीबीई के विनील सक्सेना, बेफी के जीएन पारीक, इन्बोक के सुभाष अग्रवाल नोबो के हजारी लाल मीणा एवं एनबीडब्ल्यू के अनिल माथुर आदि नेताओं ने संबोधित किया और सभी नेताओं ने केंद्र सरकार की श्रम विरोधी और बैंकों के विलय की नीति का जमकर विरोध किया और आगाह किया कि बैंकों के विलय जाने दिया देश हित में नहीं है अपितु एन पी ए घोटालों पर पर्दा डालने की साजिश है. सभा का संचालन वरिष्ठ नेता लोकेश मिश्रा ने किया.
विलय नहीं एनपीए का मर्ज
फोरम के जयपुर के संयोजक महेश मिश्रा में अपने संबोधन में बैंकों के विलय के मुद्दे पर अनेक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए. मिश्रा ने कहा कि देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय करने की जरूरत नहीं है, अपितु देश में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की शाखाओं के विस्तार की आवश्यकता है . मिश्रा ने दावा किया कि देश में छः लाख गांव हैं जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की शाखाएं अभी मात्र एक लाख है, यानि आम आदमी तक बैंकों की व्यवस्था पहुंचने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विस्तार की जरूरत है जबकि विलय किए जाने से बैंकों की शाखाएं बंद होती है और बैंकिंग तंत्र का संकुचन होता है, जो देशहित और जनहित में नहीं है. उन्होंने यह भी प्रश्न उठाया है कि अब से पूर्व बैंकों के किए गए विलय के अध्ययन से पता चलता है कि जिस दावे और उद्देश्य के साथ सरकार ने विलय किए हैं या करना चाहती है, वे कसौटी पर सही नहीं उतरे.
स्टेट बैंक की बंद हुईं शाखाएं
मिश्रा ने कहा कि गत वर्ष 2017 में देश के 5 सहायक बैंकों को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में इसी दावे के साथ विलय किया गया था कि इस विलय से यह बैंक देश का सबसे बड़ा बैंक बनेगा जिसका लाभ आम जनता को मिलेगा बैंक का आकार और व्यवसाय दोनों बढ़ेंगे किंतु गत 21 माह में में यह साबित हुआ कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की 1805 शाखाएं बंद हुई और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एनपीए में 48000 करोड रुपए का इजाफा हुआ जिससे स्टेट बैंक का एनपीए बढ़कर 225000 करोड हो गया और बैंक 2500 करोड़ से अधिक के घाटे में चला गया. इससे साबित होता है की व्यवसायिक पैमाने पर विलय से बैंक को नुकसान हुआ और दूसरी ओर हजारों कर्मचारी वीआरएस के माध्यम से नौकरी के बाहर कर दिए गए शाखाएं बंद होने से देश के युवाओं के पास रोजगार के अवसर सुलभ होने चाहिए थे, वह समाप्त हो गए. इस प्रकार के घाटों की पूर्ति के लिए बैंक बड़ी बेशर्मी से खाताधारकों पर न्यूनतम बैलेंस नहीं रखने पर पेनल्टी लगा रहे हैं और इस अवधि में छोटे ग्राहकों से बैंकों ने इस मद में 6476 करोड रुपयों की वसूली की है जो शर्मनाक लूट है. इसलिए यह विलय कारगर नहीं रहा अपितु एक अभिशाप बन गया.
01:38 PM IST