Indian Railways: देश और दुनियाभर में आज (मंगलवार) 18 अप्रैल 2023 को ‘World Heritage Day’ यानि ‘विश्व विरासत दिवस’ मनाया जा रहा है. इसी उपलक्ष्य में देश में ‘विरासत भी और विकास भी’ के संकल्प के साथ भारतीय रेलवे की यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल चार स्थलों की भव्यता को बनाए रखने का रेलवे ने संकल्प लिया है.

‘विश्व विरासत दिवस’ पर भारतीय रेलवे ने लिया संकल्प

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केवल इतना ही नहीं भारतीय रेलवे ने इस संबंध में एक ट्वीट कर इसकी जानकारी भी साझा की है. भारतीय रेलवे ने ट्वीट में लिखा ”विरासत दिवस मनाते हुए, भारतीय रेलवे ने रेलवे के चार यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की भव्यता को संजोकर रखने और उसे कायम रखने का संकल्प लिया है. ये हमारे देश के गौरवशाली अतीत और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखे हुए हैं.”

 

भारतीय रेल का 170 वर्षों से अधिक का समृद्ध इतिहास

गौरतलब हो, भारतीय रेल का अपना 170 वर्षों से अधिक का समृद्ध इतिहास रहा है, जो मूर्त और अमूर्त दोनों धरोहरों की एक व्यापक भव्यता को प्रस्तुत करता है. भारतीय रेल के चार विश्व धरोहर स्थल जिनमें दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (1999), नीलगिरी माउंटेन रेलवे (2005) कालका शिमला रेलवे (2008) और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई (2004) शामिल हैं. इन्हें यूनेस्को द्वारा मान्यता प्रदान की गई है.

इनमें से भारत के पर्वतीय रेलवे के तीन रेलवे विश्व विरासत स्थलों की बात करें तो इनमें दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे, नीलगिरी पर्वतीय रेलवे और कालका-शिमला रेलवे शामिल हैं. आजविश्व विरासत दिवस के अवसर पर हम इनके बारे में जानेंगे…

दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे

यह भारत में पहाड़ी यात्री रेल सेवा का पहला बेहतरीन उदाहरण है. इसकी शुरुआत साल 1879 और 1881 के बीच में दार्जिलिंग स्टीम ट्रामवे कंपनी ने की थी. ब्रिटिश काल के दौरान सर एशले ईडन पश्चिम बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे. उन्होंने एक समिति बनाई जिसपर पूर्वी बंगाल रेलवे कंपनी के एजेंट फ्रेंकलिन प्रेस्टेज का भी साथ मिला और इस नायाब रेल सेवा की शुरुआत हो सकी.

रेलवे लाइन को बनाने का काम साल 1879 में शुरू हुआ था. इसे जुलाई 1881 में पूरा कर लिया गया था. हालांकि, 15 जुलाई 1881 को कंपनी ने इसका नाम बदलकर दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे कंपनी रख दिया. इसके बाद 20 अक्टूबर 1948 को दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे कंपनी को भारत सरकार ने अधिग्रहित कर लिया था. पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग के बीच स्थित यह रेलवे ट्रैक 88 किमी लंबा है. घूम स्टेशन को इस रेलवे ट्रैक का सबसे ऊंचा स्टेशन माना जाता है. इसकी ऊंचाई 7,407 फीट है. यह भारत का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है. साल 1999 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत में शामिल किया.

नीलगिरी माउंटेन रेलवे

नीलगिरी माउंटेन रेलवे को ‘द टॉय ट्रेन ऑफ साउथ भी कहा जाता है. यह सिंगल ट्रैक और मीटर गेज लाइन वाली रेलमार्ग है. यह देश का एक मात्र रैक रेलवे है जिसकी लंबाई करीब 46 किलोमीटर है. तमिलनाडु में ‘ब्लू माउंटेंस’ के नाम से जानी जाने वाली नीलगिरी पहाड़ियों में स्थित यह पर्वतीय शहर उडगमंडलम को मट्टूपलयम शहर से जोड़ता है. इसके निर्माण का काम साल 1908 में शुरू हुआ था.

इस रेलमार्ग पर अल्टरनेट बिटिंग सिस्टम (ABT) जिसे रैक एंड पिनियन के तौर पर जाना जाता है के साथ भाप इंजनों का प्रयोग किया जाता है. रेलमार्ग पर चलने वाली रेलगाड़ी अपनी यात्रा के दौरान 208 मोड़ों, 16 सुरंगों और 250 पुलों से होकर गुजरती है.

इस रेलमार्ग पर ऊपर की ओर यात्रा करने के दौरान 4.8 घंटे का समय लगता है. वहीं, ढलान पर यात्रा के दौरान 3.6 घंटे का समय लगता है. रेलमार्ग पर मेट्टूपलयम शहर से 7.2 किमी की दूरी पर पहाड़ी स्टेशन कल्लर है. यह दूरी 12 सुरंगों से होकर तय की जाती है. जुलाई 2005 में यूनेस्को ने नीलगिरी पर्वतीय रेलवे को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी थी.

कालका-शिमला रेलवे

यह हिमाचल प्रदेश में हिमालय के तलहटी में स्थित है. इस रेलवे का निर्माण दिल्ली-अंबाला-कालका रेलवे कंपनी ने किया था. 7,234 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस रेलवे ट्रैक की साल 1898 में 2 फीट की छोटी लाइन वाली पटरियों के साथ शुरुआत हुई थी. इसलिए इसे ‘ ए सिनिक नैरो गेज रेलवे’ भी कहा जाता है. इस रेल ट्रैक की लंबाई 96 किलोमीटर से अधिक है. इसे 9 नवंबर 1903 को यातायात के लिए खोल दिया गया था. साल 1905 में भारतीय युद्ध विभाग द्वारा निर्धारित पैरामीटर को देखते हुए इस लाइन को 2 फीट 6 इंच कर दिया गया था.

इस सेक्शन पर 103 सुरंग और 864 पुल हैं. इसी के लिए शिमला में आखिरी सुरंग का नाम 103 सुरंग रख दिया गया है. इसके ऊपर बने बस स्टॉप को भी अंग्रेजों के जमाने से 103 स्टेशन ही कहा जाता है. इस पूरी परियोजना को एच एस हेरलिंगटन ने शुरू किया था. भारत में इसका उद्घाटन उस समय के वायसराय लार्ड कर्जन ने किया था. 1 जनवरी 1906 में रेलवे ने इसे 1.71 करोड़ में खरीद लिया. साल 2008 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत का दर्जा दिया.

छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस

इसके अलावा आइकोनिक ‘छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस’ और ‘भारत गौरव ट्रेन’ के माध्यम से भारतीय रेलवे देश की विरासत से पूरी दुनिया को परिचित कराने का प्रयास कर रही है. दरअसल, भारतीय रेल की अपनी विशेष पहचान के अलावा भारत के राष्ट्रीय धरोहरों के मामले में भी इसका अपना विशेष स्थान है. भारत गौरव ट्रेन के माध्यम से इसी कार्य को पूरा किया जा रहा है. वाकयी भारतीय रेलवे का यह प्रयास सराहनीय है. इन्हीं प्रयासों के बलबूते देश के विभिन्न स्थलों को आज यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में जगह मिल पाई है.

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