Bhopal Gas Tragedy: 1984 के भोपाल गैस त्रासदी में पीड़ितों के लिए मुआवजे बढ़ाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. गैस त्रासदी पीड़ितों का मुआवजा बढ़ाने की केंद्र की क्यूरेटिव याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की क्यूरेटिव याचिका पर दखल देने से इंकार किया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र को इस मामले में पहले आना चाहिए था न कि तीन दशक के बाद. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि समझौते के दो दशक बाद केंद्र द्वारा इस मुद्दे को उठाने का कोई औचित्य नहीं बनता. पीठ ने कहा, ‘‘हम दो दशकों बाद इस मुद्दे को उठाने के केंद्र सरकार के किसी भी तर्क से संतुष्ट नहीं हैं. हमारा मानना है कि क्यूरेटिव याचिकाओं पर विचार नहीं किया जा सकता है.’’ पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी भी शामिल हैं. पीठ ने मामले पर 12 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था.

केंद्र सरकार की क्या थी मांग?

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केंद्र सरकार ने क्यूरेटिव याचिका में यूनियन कार्बाइड के साथ अपने समझौते को फिर से खोलने की मांग की थी. भोपाल गैस पीड़ितों को 7,400 करोड़ रुपए का अतिरिक्त मुआवजा दिलवाने के लिए केंद्र सरकार ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी. केंद्र 1989 में हुए समझौते के हिस्से के रूप में अमेरिकी कंपनी से प्राप्त 715 करोड़ रुपये के अलावा अमेरिका स्थित यूसीसी की उत्तराधिकारी कंपनियों से 7,844 करोड़ रुपये और चाहता है. मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए केंद्र ने दिसंबर 2010 में शीर्ष अदालत में उपचारात्मक याचिका दायर की थी. केंद्र इस बात पर जोर देता रहा है कि 1989 में मानव जीवन और पर्यावरण को हुई वास्तविक क्षति का ठीक से आकलन नहीं किया जा सका था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए आरबीआई के पास पड़ी 50 करोड़ रुपये की राशि का इस्तेमाल सरकार लंबित दावों को पूरा करने के लिए करे. याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समझौते को सिर्फ फ्रॉड के आधार पर रद्द किया जा सकता है और केंद्र सरकार की तरफ से समझौते में फ्रॉड को लेकर कोई दलील नहीं दी गई है.

क्या है भोपाल गैस त्रासदी? (Bhopal Gas Tragedy)

भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड संयंत्र से दो-तीन दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि को जहरीली मिथाइल आइसोसायनेट गैस का रिसाव होने लगा था जिसके कारण 3000 से अधिक लोग मारे गए थे, 1.02 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए थे और पर्यावरण को गंभीर नुकसान हुआ था. यूनियन कार्बाइड संयंत्र ने तब 47 करोड़ डॉलर का मुआवजा दिया था. इस कंपनी का स्वामित्व अब डाउ जोन्स के पास है.

(एजेंसी से इनपुट के साथ)

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