Wheat Crop: गेहूं सिंचित क्षेत्र की प्रमुख रबी फसल (Rabi Crop) है. गेहूं किस्मों में एचडी 3086, एचडी 2851, डीबीडब्ल्यू 187, डीबीडब्ल्यू 222, आरएजे 3077  आदि की बुवाई की जाती है. गेहूं में इस समय पीली रोली रोग का प्रकोप होने की संभावना रहती है. इसे देखते हुए राजस्थान कृषि विभाग ने किसानों (Farmers) के लिए इससे बचाव का परामर्श जारी किया है.

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राजस्थान कृषि विभाग के मुताबिक, इस रोग का प्रकोप अधिक होने से उपज में भारी गिरावट होती है. इसलिए इसके बचाव के लिए किसान भाई गेंहू फसल का नियमित रूप से निरीक्षण कर इस रोग के लक्षणों की पहचान कर इसका उपचार करें ताकि फसल का उत्पादन प्रभावित न हो.

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गेहूं में पीली रोली रोग के लक्षण

पीला रतुआ उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र और उत्तरी पष्चिमी मैदानी क्षेत्र का मुख्य रोग है. रोग का प्रकोप होने पर पत्तियों का रंग फीका पड़ जाता है और उन पर बहुत छोटे पीले बिंदु नुमा फफोले उभरते है. पूरी पत्ती रंग के पाउडरनुमा बिन्दुओं से ढक जाती है. पत्तियों पर पीले से नारंगी रंग की धारियों आमतौर पर नसों के बीच के रूप में दिखाई देती है. सक्रंमित पत्तियों का छूने पर उंगलियों और कपड़ों पर पीला पाउडर या धूल लग जाती है. पहले यह रोग खेत  में 10-15 पौधे पर एक गोल दायरे के रूप में होकर बाद में पूरे खेत में फैलता है.

प्रबंधन के उपाय

ठंडा और आद्र मौसम परिस्थिति, जैसे 6 डिग्री से 18 डिग्री सेल्सीयस तापमान, वर्षा, उच्च आद्रता, ओस, कोहरा इत्यादि इस रोग को बढ़ावा देते हैं. कृषि विभाग ने इसके प्रबंधन के लिए अलग-अलग उपायों जनकारी दी है. विभाग के मुताबिक, खेत मे जल जमाव न होने पर नाइट्रोजन युक्त के अधिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से बचने और विभागीय/खंडीय सिफारिशानुसार की उर्वरक और कीटनाशक की मात्रा का उपयोग करें, फसल का नियमित रूप से निरीक्षण करें और किसी भी लक्षण के संदेह में आने पर कृषि विभाग/कृषि विज्ञान केन्द्र/कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क कर रोग कर पुष्टी कराएं क्योंकि कभी-कभी पत्तियों का पीलापन रोग के अन्य कारण भी हो सकते है.

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रोग की पुष्टी होने पर सक्रंमित पौधो क समूह को एकत्र करके नष्ट करें और बिना देरी सक्रंमित क्षेत्र में कवक नाशी रसायनों का मौसम साफ होने पर खड़ी फसल में छिड़काव/भूरकाव कर नियंत्रण करें. अनुशिंसित फफूंदनाशकों द्वारा प्रभावित फसल का छिड़काव करें, जैसे प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. या टेबुकोनाजोल 25.9 ई.सी. का 1 मिली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 200 लीटर घोल का प्रति एकड़ छिड़काव करें और आवश्यक्तानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दुसरा छिड़काव करें.