1 दिसंबर को दुनियाभर में विश्‍व एड्स दिवस (World Aids Day) मनाया जाता है. Aids एक ऐसी बीमारी है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता. बचाव ही इसका इलाज है. हर साल एड्स डे के दिन लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरुक किया जाता है. समाज में इस बीमारी को लेकर फैले मिथकों को दूर किया जाता है और इस बीमारी के लक्षण और बचाव वगैरह के बारे में बताया जाता है. कई जगहों पर इसके लिए कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं.

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राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) की संकलक : स्टेटस ऑफ नेशनल एड्स रेस्पांस 2022 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 24.01 लाख लोग एचआईवी/एड्स संक्रमित हैं. हर साल एचआईवी संक्रमण के 62,967 नए मामले दर्ज होते हैं और हर साल 41,968 लोगों की मौत होती है. आज विश्‍व एड्स दिवस के मौके पर यहां जानिए इस बीमारी से जुड़ी खास बातें-

क्या है इस दिन का इतिहास और थीम

विश्‍व एड्स दिवस 01 दिसंबर, 1988 को मनाया गया था. उस समय के अनुमान के मुताबिक करीब 90,000 से 1,50,000 व्यक्ति एचआईवी पॉजिटिव थे. विश्‍व एड्स दिवस, ग्‍लोबल हेल्‍थ के तौर पर मनाया जाने वाला पहला इंटरनेशनल डे था.1996 तक WHO ने विश्व एड्स दिवस को लेकर सालाना कई सारे कार्यक्रमों का आयोजन किया. उसके बाद संयुक्त राष्ट्र एजेंसी यूएन एड्स ने इन जिम्मेदारियों को अपने हाथों में ले लिया. हर साल इस दिन यूनाइटेड नेशंस की एजेंसियां, सरकारें और लोग एचआईवी से जुड़ी खास थीम पर अभियान चलाने के लिए साथ जुड़ते हैं और लोगों को इस बीमारी के लिए जागरुक करते हैं. इस साल वर्ल्ड एड्स डे की थीम लेट कम्यूनिटीज लीड (Let Communities Lead) है. AIDS की रोकथाम में समाज की अहम भूमिका के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए, इस थीम को चुना गया है.

क्‍या होता है एड्स

एड्स का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम (Acquired Immunodeficiency Syndrome- AIDS ) है. यह एक संक्रामक बीमारी है, जो एक से दूसरे व्यक्ति में फैलती है. जिस वायरस से एड्स होता है, उसे एचआईवी (Human Immunodeficiency Viruses) कहते हैं. एचआईवी एक ऐसा वायरस है जो सीधे व्यक्ति के इम्यून सिस्टम पर अटैक करता है और उसे बेहद कमजोर बना देता है. एचआईवी से पीड़ित मरीज के शरीर में तेजी से व्हाइट ब्लड सेल्स कम होना शुरू हो जाते हैं और उसका शरीर अन्‍य बीमारियों से बचाव में असमर्थ हो जाता है. ऐसे में एड्स के अलावा तमाम अन्‍य रोग भी उसे तेजी से चपेट में लेते हैं और व्‍यक्ति की स्थिति खराब होने लगती है कि वो मौत की दहलीज पर पहुंच जाता है.

क्‍या हैं एड्स के लक्षण

  • मुंह में सफेद चकत्तेदार धब्बे उभरना 
  • अचानक वजन कम होना
  • तेज बुखार और लगातार खांसी
  • अत्यधिक थकान
  • शरीर से अधिक पसीना निकलना
  • बार-बार दस्त लगना
  • शरीर में खुजली और जलन
  • गले, जांघों और बगलों की लसिका ग्रंथियों की सूजन से गांठें पड़ना,,
  • निमोनिया और टीबी
  • स्किन कैंसर की समस्‍या आदि

कैसे होता है एड्स का इलाज

एचआईवी को मारने वाला वैक्‍सीन अभी नहीं बन पाया है, लेकिन इससे पीड़ित लोगों के लिए कुछ ऐसी दवाएं आ चुकी हैं, जो शरीर में एचआईवी वायरस के अमाउंट को नियंत्रित कर सकती हैं. इन दवाओं को ART कहते हैं. ART के जरिए करीब छह माह के अंदर एचआईवी वायरस काबू में आ जाते हैं. समय रहते अगर एड्स के मरीजों को सही दवाएं दी जाएं, तो उनकी उम्र को बढ़ाया जा सकता है. 

क्‍यों नहीं बन सकी एड्स की वैक्‍सीन 

पोलियो, जॉन्डिस, सर्वाइकल कैंसर और यहां तक कि कोरोना जैसी घातक बीमारियों के टीके तक बन चुके हैं. लेकिन एड्स को जड़ से समाप्त करने के लिए वर्षों से लगातार शोध हो रहे हैं, लेकिन फिर भी इसमें सफलता नहीं मिल पायी है. इसकी कई वजह हैं. दरअसल जब एचआईवी का वायरस शरीर में प्रवेश करता है, तो ये वायरस शरीर में लंबे समय तक छिपा रहता है. यहां तक कि इम्यून सिस्टम भी काफी समय तक इसका पता नहीं लगा पाता है. 

इसके अलावा एचआईवी वायरस में काफी ज्यादा म्यूटेशन होते हैं. ऐसे में इम्‍यून सिस्‍टम इस वायरस को खत्‍म नहीं कर पाता, लेकिन ये वायरस इम्‍यून सिस्‍टम को जरूर बेहद कमजोर कर देता है और उस पर अपना अधिकार जमा लेता है. वायरस के छिपने और समय-समय पर स्‍वरूप बदलने की प्रवृत्ति वैक्‍सीन के मामले में भी समस्‍या पैदा करती है. इसके अलावा अधिकतर वायरस की वैक्‍सीन डेड वायरस और आरएनए से बनती है. जब डेड वायरस शरीर में डाला जाता है तो इससे शरीर में एंटीबॉडीज बनती है. लेकिन एचआईवी के संक्रमण के मामले में डेड वायरस से एंटीबॉडी नहीं बन पाती है. इन तमाम कारणों से एड्स की वैक्‍सीन बना पाना आज भी एक चुनौती बना हुआ है.