हर साल 19 दिसंबर को गोवा मुक्ति दिवस (Goa Liberation Day) मनाया जाता है. 15 अगस्‍त 1947 को भारत को अंग्रेजों से तो मुक्ति मिल गई थी, लेकिन देश का एक हिस्‍सा ऐसा था, जो तब भी आजाद नहीं हो पाया था. वो जगह थी गोवा. गोवा पर 450 सालों से भी ज्‍यादा समय तक पु‍र्तगालियों का कब्‍जा रहा है. आजादी के बाद इसे भारत का हिस्‍सा बनने में करीब 14 साल का समय लगा था. गोवा को आजादी 19 दिसंबर 1961 को मिली. आज गोवा मुक्ति दिवस के मौके पर आइए आपको बताते हैं इस दिन  से जुड़ी खास बातें. 

गोवा के राष्ट्रवाद का जनक थे डॉ.टी.बी.कुन्हा 

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जब भारत के बड़े क्षेत्र पर अंग्रेज शासन कर रहे थे तब गोवा, दमन और दीव पर पुर्तगाल का शासन था. गोवा को पुर्तगालियों से मुक्‍त कराने के लिए संघर्ष 19वीं शताब्दी में ही छोटे स्तर पर शुरू हो गया था. लेकिन सही मायने में गोवा की आजादी के लिए यहां पर स्वतंत्रता आंदोलन तब शुरू हुआ था, जब गोवा के राष्ट्रवादियों ने मिलकर 1928 में मुंबई में 'गोवा कांग्रेस समिति' का गठन किया था. इस समिति के अध्यक्ष डॉ.टी.बी.कुन्हा थे. इन्‍हें गोवा के राष्ट्रवाद का जनक माना जाता है. दो दशक तक ये आंदोलन तो चला, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली.

 डॉ.राम मनोहर लोहिया ने दी आंदोलन को नई दिशा

1946 में प्रमुख समाजवादी नेता डॉ.राम मनोहर लोहिया जब गोवा पहुंचे तो इस आंदोलन को नई दिशा मिल गई. 18 जून 1946 को बीमार राम मनोहर लोहिया ने पुर्तगाली प्रतिबंध को पहली बार चुनौती दी. उस समय वहां नागरिकों को सभा सम्बोधन का भी अधिकार नहीं था. लेकिन लोहिया ने वहां 200 लोगों की एक सभा बुलाई और पहली बार एक जनसभा को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने पुर्तगाली दमन के विरोध में आवाज उठाई. इसके बाद राम मनोहर लोहिया को पुर्तगालियों ने गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया. गोवा की जनता जब इसके विरोध में सड़कों पर उतरी तो पुर्तगालियों को उन्‍हें छोड़ना पड़ा. लेकिन पुर्तगालियों ने लोहिया के गोवा आने पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया. हालांकि गोवा की आजादी का संघर्ष तब भी जारी रहा.

दिसंबर 1961 में शुरू हुआ गोवा मुक्ति अभियान

1947 में जब अंग्रेजों ने भारत को स्‍वतंत्र देश घोषित किया, तब भी  पुर्गताली गोवा को छोड़कर नहीं गए. आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने पुर्तगालियों से गोवा को आजाद करने की कई बार आग्रह किया, लेकिन वो नहीं माने. उस समय दमन और दीव भी गोवा का हिस्‍सा था. बार-बार किए गए आग्रह को न मानने के बाद भारत के पास ताकत का इस्‍तेमाल करने के अलावा कोई रास्‍ता नहीं था. 1 नवम्बर 1961 में भारतीय सेना के तीनों अंगों को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा गया. भारतीय सेना ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने के साथ आखिरकार दो दिसंबर को गोवा मुक्ति का अभियान शुरू कर दिया.

19 दिसंबर को पुर्तगालियों से मुक्‍त हुआ गोवा

जमीन से सेना, समुद्र से नौसेना और हवा से वायुसेना गई. इसे 'ऑपरेशन विजय' का नाम दिया गया. वायु सेना ने आठ और नौ दिसंबर को पुर्तगालियों के ठिकाने पर अचूक बमबारी की, थल सेना और वायुसेना के हमलों से पुर्तगाली तिलमिला गए. आखिरकार पुर्तगालियों को अपनी हार स्‍वीकार करनी पड़ी. 19 दिसंबर 1961 की रात साढ़े आठ बजे भारत में पुर्तगाल के गवर्नर जनरल मैन्यु आंतोनियो सिल्वा ने समर्पण सन्धि पर हस्ताक्षर कर दिए, इसे साथ ही गोवा में 450 साल पुराने पुर्तगालियों के शासन का अंत हो गया.

1987 में गोवा बना पूर्ण राज्‍य

पुर्तगालियों से आजादी मिलने के बाद में गोवा में चुनाव हुए और 20 दिसंबर, 1962 को दयानंद भंडारकर गोवा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने. उस समय गोवा को महाराष्‍ट्र में विलय की चर्चा जोरों पर थी क्‍योंकि गोवा महाराष्‍ट्र के नजदीक था. लेकिन जब 1967 में वहां जनमत संग्रह हुआ तो गोवा के लोगों ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में रहना पसंद किया. इसके बाद 30 मई, 1987 को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और ये भारतीय गणराज्य का 25वां राज्य बना. यही कारण है कि हर साल 30 मई को गोवा स्‍थापना दिवस मनाया जाता है.