Kanya puja 2023: नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व है. नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजन के बाद ही भक्त व्रत पूरा करते हैं. भक्त अपने सामर्थ्य के मुताबिक भोग लगाकर दक्षिणा देते हैं. इससे माता प्रसन्न होती हैं. नवरात्र की सप्‍तमी से कन्‍या पूजन शुरू हो जाता है. सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर पूजा जाता है. नवरात्र में कन्या पूजन करते समय हमें किन विशेष बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है और किस उम्र की कन्या को पूजने का क्या लाभ है इस बारे में हमें विस्तार से बता रहे हैं श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रसिद्ध (ज्योतिषाचार्य) गुरूदेव पंडित ह्रदय रंजन शर्मा.

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नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व है. नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजन के बाद ही भक्त व्रत पूरा करते हैं. भक्त अपने सामर्थ्य के मुताबिक भोग लगाकर दक्षिणा देते हैं. इससे माता प्रसन्न होती हैं. इस दिन जरूर करें कन्या पूजन सप्‍तमी से ही कन्‍या पूजन का महत्व है. लेकिन, जो लोग पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वे तिथियों के मुताबिक नवमी और दशमी को कन्‍या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत खत्म करते हैं. शास्‍त्रों में भी बताया गया है कि कन्‍या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे अहम और शुभ माना गया है.

कैसे करें कन्या पूजन

कन्या पूजन के लिए कन्‍याओं को एक दिन पहले सम्मान के साथ आमंत्रित करें. खासकर कन्या पूजन के दिवस ही कन्याओं को यहां-वहां से एकत्र करके लाना उचित नहीं होता है. गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करना चाहिए. नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाना चाहिए.

कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ स्थान पर बैठाकर सभी के पैरों को स्वच्छ पानी या दूध से भरे थाल में पैर रखवाकर अपने हाथों से उनके पैर धोना चाहिए. पैर छूकर आशीष लेना चाहिए और कन्याओं के पैर धुलाने वाले जल या दूध को अपने मस्तिष्क पर लगाना चाहिए. कन्याओं को स्वच्छ और कोमल आसन पर बैठाकर पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए. उसके बाद कन्याओं को माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए. 

इसके बाद मां भगवती का ध्यान करने के बाद इन देवी स्वरूप कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं. कन्याओं को अपने हाथों से थाल सजाकर भोजन कराएं और अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और दोबारा से पैर छूकर आशीष लें. अपने घर में बुलाई जाने वाली कन्याओं की आयु दो वर्ष से 10 वर्ष के भीतर होना चाहिए.

कम से कम 9 कन्याओं को पूजन के लिए बुलाना चाहिए, जिसमें से एक बालक भी होना अनिवार्य है. जिसे हनुमानजी का रूप माना गया है. जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूरी नहीं पूर्ण नहीं होती, उसी प्रकार कन्या पूजन भी एक बालक के बगैर पूरा नहीं माना जाता. यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही है तो कोई आपत्ति नहीं, उनका स्वागत करना चाहिए.

हर उम्र की कन्या का है अलग रूप

नवरात्र के दौरान सभी दिन एक कन्या का पूजन होता है, जबकि अष्टमी और नवमी पर नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है.

  • दो वर्ष की कन्या का पूजन करने से घर में दुख और दरिद्रता दूर हो जाती है.
  • तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति का रूप मानी गई हैं. त्रिमूर्ति के पूजन से घर में धन-धान्‍य की भरमार रहती है, वहीं परिवार में सुख और समृद्धि जरूर रहती है.
  • चार साल की कन्या को कल्याणी माना गया है. इनकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है.
  • पांच वर्ष की कन्या रोहिणी होती हैं. रोहिणी का पूजन करने से व्यक्ति रोगमुक्त रहता है.
  • छह साल की कन्या को कालिका रूप माना गया है. कालिका रूप से विजय, विद्या और राजयोग मिलता है. 
  • 7 साल की कन्या चंडिका होती है. चंडिका रूप को पूजने से घर में ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
  • 8 वर्ष की कन्याएं शाम्‍भवी कहलाती हैं. इनको पूजने से सारे विवाद में विजयी मिलती है. 
  • 9 साल की की कन्याएं दुर्गा का रूप होती हैं. इनका पूजन करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है और असाध्य कार्य भी पूरे हो जाते हैं.
  • दस साल की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूरा करती हैं.

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