What is Kavach Protection System: ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार रात एक भीषण हादसा हुआ. इस हादसे में कई लोगों ने अपनी जान गंवाई. तीन ट्रेनों के बीच हुई टक्कर में अब तक 250 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं रेस्क्यू ऑपरेशन अभी भी जारी है. लेकिन क्या आप जानते हैं रेलवे में एक ऐसी तकनीक होती है, जिससे हादसा टल सकता था. दरअसल इन सबके बीच एक सवाल उठ रहा है, सवाल रेलवे की उस तकनीक से है, जिसका डेमो कुछ समय पहले दिखाया गया था. आइए जानते हैं इस तकनीक का नाम, कैसे करता काम और क्या है. 

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दरअसल रेलवे के कवच प्रोटेक्शन को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं. इसे रेलवे ने जीरो एक्सीडेंट टार्गेट हासिल करने के लिए लॉन्च किया था. हालांकि रेलवे की इस टेक्नोलॉजी को सभी ट्रेक पर अभी तक जोड़ा नहीं गया है. मिली जानकारी के अनुसार, इस रूट पर कवच सिस्टम को नहीं लगाया गया था. इसका एक डेमो इस साल की शुरुआत में भी दिखाया गया था, जिसमें आमने-सामने आने पर दो ट्रेनें अपने आप रुक जाती हैं. 

क्या है रेलवे का Kavach Protection System?

रेलवे की कई ट्रेने ऐसी हैं, जिनमें कवच प्रोटेक्शन सिस्टम (Kavach Protection System) को जोड़ा गया है. कवच एक ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम (automatic train protection system) है. इसे भारतीय रेलवे ने RSDO (रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन) की तरफ से डेवलप किया गया था. इस सिस्टम पर रेलवे ने साल 2012 में करना करना शुरू कर दिया था. उस समय इस प्रोजेक्ट का नाम Train Collision Avoidance System (TCAS) था. 

क्यों लाया गया KPS?

रेलवे का इस सिस्टम को लाने के पीछे का मक्सद केवल जीरो एक्सीडेंट (Zero Accident Policy) था. इसका फर्स्ट ट्रायल साल 2016 में किया गया था. पिछले साल इसका लाइव डेमो भी दिखाया गया था. यानि दुर्घटना से पहले ही एक सेंसर के जरिए ड्राइवर को अलर्ट किया जा सकता है. ट्रेन में लगे सेंसर से ड्राइवर को पहले ही अर्लाम के जरिए अलर्ट भेजा जाता है, जिसमें उस रूट पर ट्रेन आ रही है या फिर ट्रेन में कोई खराबी है. इस सेंसर से जरिए स्टेशन से ही ट्रेन को कंट्रोल में किया जा सकता है. हालांकि अगर इस ट्रेन में कवच प्रोटेक्शन सिस्टम होता, तो ट्रेन को दुर्घटना होने से पहले ही रोका जा सकता था. 

कैसे काम करता है कवच प्रोटेक्शन सिस्टम? (How Kavach Protection System works)

KPS इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस का सेट है. इसमें रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइसेस को ट्रेन, ट्रैक, रेलवे सिग्नल सिस्टम और हर स्टेशन पर एक किलोमीटर की दूरी पर इंस्टॉल किया जाता है. इस सिस्टम को दूसरे कंपोनेंट्स से अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिए कम्युनिकेट किया जाता है. 

एग्जांपल: जैसे की कोई भी लोको पायलट किसी सिग्नल को जंप करता है, तो कवच एक्टिवेट हो जाता है. इसके बाद ये सिस्टम लोको पायलट को अलर्ट करता है और फिर ट्रेन के ब्रेक्स का कंट्रोल हासिल कर लेता है. जैसे की सिस्टम को अलर्ट मिल जाता है कि ट्रैक पर दूसरी ट्रेन आ रही है, तो वो पहली ट्रेन के मूवमेंट को रोक देता है. 

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