Mutual Fund Ki master class: म्‍यूचुअल फंड (Mutual Funds) निवेशकों को अब इंटरनेशनल कंपनियों में निवेश करने का भी मौका मिल रहा है. निवेशक अपने पोर्टफोलियो में ग्‍लोबल निवेश (Global investment) का तड़का देकर शानदार रिटर्न हासिल कर सकते हैं. अब सवाल यह है कि इंटरनेशनल मार्केट में क्‍यों निवेश करना चाहिए, इंटरनेशनल फंड (International Funds) में निवेश का क्‍या तरीका है और इन फंड्स में किसे निवेश करना चाहिए? मिराए एसेट इन्‍वेस्‍टमेंट मैनेजर्स के हेड (ETF प्रोडक्‍ट)  सिद्धार्थ श्रीवास्‍तव से जानते हैं इंरटनेशनल फंड्स से जुड़ी हर जानकारी.

इंटरनेशनल फंड्स क्‍या हैं और क्‍यों करें निवेश

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इंडियन इक्विटी मार्केट (Indian Equity Market) ग्‍लोबल इक्विटी मार्केट का सिर्फ 3 फीसदी हिस्‍सा है. इंटरनेशनल मार्केट में कई ऐसे सेक्‍टर हैं, जैसेकि इलेक्ट्रिक व्‍हीकल्‍स, ऑटोनामस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जो भारतीय मार्केट में नहीं है. जब आप ग्‍लोबल इन्‍वेस्टिंग कर रहे हैं, तो आपको एक मौका मिलता है कि आप इस तरह की कंपनीज और सेक्‍टर में निवेश कर सकते हैं. दूसरी बात यह कि पिछले 10 साल का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो ग्‍लोबल मार्केट ने कई समय भारतीय मार्केट के मुकाबले अच्‍छा परफॉर्म किया है. जैसेकि, US मार्केट बेंचमार्क ने पिछले 10 साल में इंडियन बेंचमार्क को 9 फीसदी से आउटपरफॉर्म किया है.

तीसरा, यह कि जब आप डॉलर या उस तरह की दूसरी प्रभावी करंसी (जो रुपये के मुकाबले मजबूत है) में निवेश करते हैं, तो जैसे रुपये में गिरावट आती है, तो उसका रिटर्न भी आपके फंड में जुड़ता है. चौथा यह कि, जब आप ग्‍लोबल मार्केट में निवेश करते हैं, तो आप अपने इक्विटी एक्‍सपोजर का डायवर्सिफिकेशन कर रहे होते हैं, क्‍योंकि हर मार्केट का अलग रिस्‍क फैक्‍टर है और वो अलग तरीके से चलते हैं. इसका मतलब कि जब आप ग्‍लोबल मार्केट में निवेश करते हैं, तो आप अपने रिस्‍क का डायवर्सिफिकेशन कर रहे होते हैं.

इन चारों वजहों से ग्‍लोबल इन्‍वेस्टिंग ज्‍यादा पॉपुलर होती जा रही है. सबसे महत्‍वपूर्ण वजह है कि लोग इन नई उभरती कंपनियों और सेक्‍टर में एक्‍सपोजर लेना चाहते हैं. इन कंपनियों ने काफी अच्‍छा परफॉर्म किया और इनका फ्यूचर भी मजबूत है. 

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इंटरनेशनल मार्केट में कैसे करें निवेश

इस समय विदेशी मार्केट में निवेश करने के 3 तरीके हैं. पहला स्‍टॉक में सीधे निवेश कर सकते हैं. दूसरा तरीका म्‍यूचुअल फंड का है और इसमें दो तरह से निवेश किया जा सकता है. पहला, एक्टिव म्‍यूचुअल फंड्स और दूसरा पैसिव म्‍यूचुअल फंडस. पैसिव म्‍यूचुअल फंड्स में ईटीएफ, इंडेक्‍स फंड्स आते हैं. 

एक्टिव म्‍यूचुअल फंड्स में फंड मैनेजर यह तय करता है किस स्‍टॉक और सेक्‍टर में निवेश करना है. उसके फैसले के आधार पर निवेशक को रिटर्न मिलता है. जबकि, पैसिव फंड्स एक इंडेक्‍स को ट्रैक करते हैं. जैसेकि, S&P 500 या S&P 500 टॉप 50  या नैस्‍डैक 100  की कंपनियों में निवेश किया जाता है. इसमें जो रिटर्न इंडेक्‍स दे रहा होता है, वही रिटर्न निवेशक को मिलता है.

भारत में भी ETF लोकप्रिय हो रहे हैं. उसकी वजह है कि कई मार्केट सेगमेंट में एक फंड मैनेजर लगातार मार्केट को आउटपरफॉर्म नहीं कर पाता है. ये बात विदेशी मार्केट जैसेकि US मार्केट में और ज्‍यादा देखी जा रही है. पिछले एक-दो दशकों में जो एक्टिव म्‍यूचुअल फंड्स हैं, वो अंडरलाइन बेंचमार्क इंडेक्‍स को आउटपरफार्म नहीं कर पा रहे हैं. इसलिए शायद बेहतर तरीका यही है कि आप एक पैसिव फंड में निवेश करिए जो इंडेक्‍स को ट्रैक करते हैं और मार्केट रिटर्न देते हैं. इसमें कास्‍ट काफी कम होती है. इसमें कोई फंड मैनेजर रिस्‍क नहीं होता है.

किसे करना चाहिए इंटरनेशनल फंड्स में निवेश

इंटरनेशनल फंड्स में निवेश से पहले निवेशक को यह समझना जरूरी है कि फॉरेन फंड्स में रिस्‍क फैक्‍टर काफी अलग होते हैं. भारतीय फंड्स के मुकाबले उनका रिस्‍क फैक्‍टर अलग है. विदेशी फंड में निवेश करने से पहले निवेशक को अपनी रिस्‍क प्रोफाइल समझनी चाहिए. निवेशक फॉरेन फंड्स का रिस्‍क ले सकता है या नहीं, उसके बाद निवेश का फैसला लेना चाहिए.

अगर सिर्फ US मार्केट की बात की जाए, तो यूएस मार्केट में निवेश करने के लिए दो तरह के फंड आते हैं. एक सेक्‍टर स्‍पेशिफिक जैसेकि टेक फंड्स या हेल्‍थकेयर फंड्स. ये सिर्फ इसी सेक्‍टर की कंपनियों में निवेश करते हैं. टेक फंड्स का रिटर्न भी ज्‍यादा है, लेकिन इनके साथ रिस्‍क भी ज्‍यादा है. इनमें काफी वॉलेटिलिटी है. दूसरा, आप एक ऐसे फंड में निवेश करिए जो सेक्‍टर ओरिएंटेड न हो, वो हर सेक्‍टर में निवेश करता हो. इससे निवेशक को एक बड़ा एक्‍सपोजर मिलता है. भले ही इनमें रिटर्न कम बना हो लेकिन रिस्‍क दूसरे फंड से कम है. 

एक जरूरी बात यह  कि आपकी निवेश होरिजन ज्‍यादा होनी चाहिए. वैसे भी इंटरनेशनल फंड्स में कम से कम तीन साल के लिए निवेश करना चाहिए तभी आपको इंडेक्‍सेशन का बेनेफिट मिलेगा. आमतौर पर इन फंड्स में कम से कम 5 साल के लिए करना चाहिए ताकि उस कंट्री और मार्केट की जो ग्रोथ होती है. उस पूरी ग्रोथ जर्नी का फायदा निवेशक वेल्‍थ किएशन के नजरिए से उठा पाए.