NSE IPO: हाल के महीनों में BSE के शेयरों में जोरदार तेजी आई है. ऐसे में निवेशकों के मन में ये भी सवाल है कि देश के सबसे बड़े एक्सचेंज NSE का IPO कब आएगा. ज़ी बिजनेस को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक NSE के IPO में अभी और वक्त लग सकता है. क्योंकि रेगुलेटर ने NSE के IPO के लिए कई शर्तें रखी हैं. जिसमें सबसे अहम है कि NSE का सिस्टम पूरी तरह से तकनीकी खामियों से सुरक्षित हो जाए. साथ ही कॉरपोरेट गवर्नेंस को लेकर भी सारी चिंताएं दूर कर ली जाएं. एक और अहम शर्त है कि NSE के खिलाफ पुराने मामलों में जो भी कानूनी कार्रवाई चल रही है वो भी खत्म हो जाए. सारी शर्तें पूरी होने के बाद ही NSE के IPO पर विचार किया जाएगा. NSE का मैनेजमेंट चाहता है कि लंबे समय से अटके पड़े IPO प्रोसेस को आगे बढ़ाया जाए. क्योंकि ढेरों निवेशक इसका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

NSE के सामने SEBI की शर्तें

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

IPO के लिए जो शर्तें हैं उसके मुताबिक एक्सचेंज के टेक्नोलॉजी सिस्टम को काफी मजबूत किया जा चुका है. 24 फरवरी 2021 के बाद से ही टेक्नोलॉजी पर फोकस काफी बढ़ा है. नया मैनेजमेंट भी टेक्नोलॉजी को लेकर काफी गंभीर है. सूत्रों के मुताबिक टेक्नोलॉजी में कोई बड़ी समस्या अब नहीं होनी चाहिए. जहां तक कॉरोपरेट गवर्नेंस की बात है तो पिछले मामलों से सबक लेते हुए सारी प्रक्रिया को बदला गया है. जिन मामलों में सवाल उठे थे उनसे जुड़े ज्यादातर अधिकारी या तो रिटायर हो चुके हैं या अब NSE में नहीं हैं.

अब केवल पब्लिक इंटरेस्ट डायरेक्टर्स की नियुक्ति का ही मामला बचता है. NSE के भेजे नामों पर सेबी को फैसला लेना है. पिछले महीने ही NSE के चेयरमैन सहित तीन पब्लिक इंटरेस्ट डायरेक्टर्स का कार्यकाल पूरा हुआ है. जहां तक बात कानूनी मामलों की है तो NSE ने कई मामलों को निपटाने के लिए सेबी के पास सेटलमेंट की अर्जी दी है. जबकि एक मामला सुप्रीम कोर्ट में है और एक मामले में SAT में अभी सुनवाई ही पूरी नहीं हुई है. हालांकि, अगर रेगुलेटर को सब ठीक लगे तो ऐसे मामलों का पूरा डिस्क्लोजर देकर IPO लाने की मंजूरी भी संभव है.

NSE को पहले भी लग चुका है झटका

दरअसल, 2016 में NSE ने IPO की अर्जी दी थी. कंपनी की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक बाद में इश्यू साइज छोटा करने के कारण कंपनी को अर्जी नए सिरे से दाखिल करने के लिए वापस लेनी पड़ी. लेकिन बाद में NSE में को-लोकेशन, डार्कफाइबर और कॉरपोरेट गवर्नेंस के मामलों को लेकर काफी गड़बड़ियां सामने आईं. जिसके बाद सेबी ने कारण बताओ नोटिस इश्यू कर कार्रवाई की और कई अहम ऑर्डर पास किए. जिसमें एक ऑर्डर में बाजार से पैसे जुटाने और नए प्रोडक्ट लॉन्च करने पर मनाही भी थी. हालांकि ये पाबंदी की मियाद अक्टूबर 2019 में ही खत्म हो चुकी है. जिसके बाद NSE ने सेबी से IPO के लिए नो ऑब्जेक्शन लेटर मांगा था, जो अब तक नहीं मिला है. 

IPO पर SEBI की मंजूरी जरूरी

एक्सचेंजेज के रेगुलेशन का कामकाज सेबी के मार्केट रेगुलेशन डिपार्टमेंट के तहत आता है. इस डिपार्टमेंट को ही NSE के IPO के लिए नो ऑब्जेक्शन लेटर (NOC) देना है. जब तक ये लेटर नहीं मिलता, NSE के IPO की अर्जी देने पर भी बात बनना कठिन है. क्योंकि IPO की अर्जी पर मंजूरी का फैसला सेबी का कॉरपोरेट फाइनेंस डिपार्टमेंट करता है. ये डिपार्टमेंट IPO के वक्त मंजूरी देने की प्रक्रिया से पहले दूसरे डिपार्टमेंट से जांचता है कि किसी विभाग के पास IPO की अर्जी देने वाली कंपनी के खिलाफ कोई जांच तो नहीं जारी है या कोई शिकायत तो नहीं है.

NSE IPO को लेकर बढ़ेगा इंतजार?

अपनी तरफ से IPO का रास्ता साफ करने के लिए NSE उन मामलों में सेबी के पास कंसेंट की अर्जी भी दे चुका है, जिन्हें पैसे भरकर सुलझाया जा सकता है. दरअसल जानकारों का एक नजरिया ये भी है कि NSE और इसके पूर्व मैनेजमेंट से जुड़े मामलों की जांच में CBI, ED और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट जैसी एजेंसियां जांच में शामिल हो चुकी हैं. ऐसे में IPO की मंजूरी देने से पहले सब कुछ पाक साफ हो ये पक्का कर लेने के बाद ही रेगुलेटर आगे बढ़ना चाहेगा. क्योंकि कुछ दूसरे मामलों में लंबा वक्त बीतने के बाद भी अचानक जांच एजेंसियों की सक्रियता से खलबली मच गई थी.