आए दिन हमें देखने को मिलता है कि कोई न कोई कंपनी अपना आईपीओ (IPO) ला रही है. आईपीओ का मतलब है इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग (Initial Public Offering). आईपीओ के जरिए तमाम कंपनियां बाजार से पैसा उठाती हैं और बदले में अपनी कंपनी के शेयर या यूं कहें कि कंपनी में हिस्सेदारी बेचती हैं. आज के वक्त में आईपीओ में बहुत सारे लोग पैसा लगाते हैं, लेकिन कम ही लोगों को इससे जुड़े तमाम टर्म्स के मतलब पता होते हैं. आइए Market Class सीरीज के तहत आज जानते हैं आईपीओ से जुड़े तमाम शब्दों के मतलब.

1- Draft Red Herring Prospectus (DRHP)

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कोई भी कंपनी अपना आईपीओ लाने से पहले DRHP तैयार करती है. इस डाक्युमेंट में कंपनी के मिशन और विजन के बारे में सब कुछ लिखा होता है. इसमें बताया गया होता है कि कंपनी ने अब तक कैसा प्रदर्शन किया है और आगे कैसा प्रदर्शन करना चाहती है. साथ ही कंपनी इसमें यह भी बताती है कि आईपीओ से पैसे जुटाकर उसका कहां इस्तेमाल होगा. यानी आसान भाषा में समझें तो इस दस्तावेज के जरिए कंपनी अपनी पूरी कुंडली जनता के सामने रख देती है. इस दस्तावेज को हर कंपनी को सेबी के पास जमा करना होता है, उसके बाद ही सेबी से किसी भी कंपनी को आईपीओ लाने की इजाजत मिलती है.

2- Bid Lot

आईपीओ में एक-दो शेयर नहीं खरीदे जाते, बल्कि लॉट में शेयर खरीदे जाते हैं. एक लॉट में कितने शेयर होंगे, यह कंपनी तय करती है. आमतौर पर एक लॉट की कीमत 15 हजार रुपये के करीब होती है. इसमें शेयरों की संख्या उनकी कीमत के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है. 

3- Fixed Price/Book Building

एक कंपनी दो तरीके से आईपीओ ला सकती है. पहला तरीका है Fixed price का और दूसरा तरीका है Book Building का. Fixed price के तहत कंपनी अपने आईपीओ या यूं कहें कि शेयरों की कीमत पहले ही बता देती है. वहीं Book Building के तहत कंपनी एक प्राइस रेंज सेट करती है और शेयर की कीमत को निवेशकों डिमांड देखते हुए उसी हिसाब से तय करती है. अधिकतर मामलों में Book Building के तरीके से ही आईपीओ लाया जाता है.

4- Floor Price/Cut-off Price

जब भी कोई कंपनी आईपीओ लाती है तो वह अपने शेयरों की कीमत की एक रेंज तय करती है. उदाहरण के लिए एक कंपनी अपने शेयर का प्राइस बैंड 100-105 रुपये तय कर सकती है. आप जिस कीमत पर शेयर खरीदने चाहते हैं, उस कीमत पर बिड यानी बोली लगा सकते हैं. हालांकि, अगर अधिकतर मामलों में उच्चतम स्तर पर ही शेयर बिकते हैं यानी ऊपर के उदाहरण के हिसाब से देखें तो यह 105 रुपये होगा. न्यूनतम स्तर को Floor Price कहा जाता है, जबकि उच्चतम स्तर को Cut-off Price कहा जाता है.

5- Issue Size

इससे पता चलता है कि आईपीओ कितना बड़ा है. मान लीजिए कि कोई कंपनी अपने 1 करोड़ शेयर बेच रही है और उसके लिए प्राइस बैंड 100-105 रुपये रखा है तो इसका इश्यू साइज 100 करोड़ से 105 करोड़ रुपये के बीच रहेगा. मान लीजिए कि सारे निवेश कपंनी के शेयर 105 रुपये के उच्चतम भाव पर खरीदते हैं तो ये कहा जाएगा कि कंपनी 105 करोड़ रुपये का आईपीओ लाई थी.

6- Offer For Sale (OFS)

जब भी कोई कंपनी आईपीओ लाती है तो या तो वह अपने मौजूदा शेयरों को ही जनता को बेच सकती है या फिर नए शेयर जारी कर सकती है. अगर कंपनी नए शेयर जारी करती है तो वह पैसे कंपनी को मिलते हैं, जिससे कंपनी के बिजनेस को बढ़ाया जाता है. वहीं अक्सर आईपीओ के तहत कंपनी के मौजूदा निवेशक और प्रमोटर अपने शेयर बेचते हैं और इस स्थिति को ओएफएस कहा जाता है. ओएफएस के तहत बेचे गए शेयरों से जो पैसे मिलते हैं वह कंपनी के पास नहीं जाते, बल्कि जिसके शेयर होते हैं उसके पास जाते हैं, जैसे प्रमोटर या निवेशक.

7- Oversubscribe/Undersubscribe

एक कंपनी ने आईपीओ के तहत जितने शेयर जारी किए होते हैं, ऐसा बहुत ही दुर्लभ स्थिति में होता है कि उतने ही शेयरों के लिए बोली भी लगे. अगर जारी किए गए शेयरों से कम के लिए बोली लगती है तो कहा जाएगा कि आईपीओ Undersubscribe हुआ है. वहीं अगर शेयरों की संख्या से अधिक शेयरों के लिए बोली लग जाती है तो उसे कहा जाएगा कि आईपीओ Oversubscribe हुआ है. अधिकतर मामलों में देखा जाता है कि शेयर ओवरसब्सक्राइब हो जाते हैं.

8- Share Allotment

शेयरों के लिए बोली लगाए जाने के बाद शेयरों का अलॉटमेंट होता है. इसके तहत देखा जाता है कि किसे कितने लॉट दिए जाएं. आईपीओ जितना ज्यादा ओवरसब्सक्राइब होता है, आपको कंपनी के शेयर मिलने की संभावना उतनी ही कम हो जाती है. मान लीजिए किसी कंपनी के शेयर 50 गुना ओवरसब्सक्राइब हो गए. यानी इस मामले में ये कहा जा सकता है कि हर एक लॉट के लिए 50 लोगों ने आवेदन किया है. ऐसे में इनमें से किसी एक को ही आईपीओ का लॉट मिलेगा, जबकि बाकी लोगों के पैसे रिफंड हो जाएंगे.

9- Demat Transfer

जब आपको शेयर अलॉट हो जाते हैं तो उन्हें आपके डीमैट खाते में ट्रांसफर किया जाता है. अलॉटमेंट के बाद यह प्रक्रिया अपने आप होती है, आपको इसके लिए कुछ करने की जरूरत नहीं होती है.

10- Application Supported by Blocked Amount (ASBA)

पहले अगर आपको आईपीओ लेना होता था कि जितने लॉट आप खरीदते थे, उतने पैसों का आपको भुगतान करना होता था. अगर ओवरसब्सक्राइब होने की वजह से आपको शेयर नहीं मिलते थे तो वह पैसे आपको रिफंड कर दिए जाते थे. अब सेबी के नियम के अनुसार आपको भुगतान नहीं करना होता है, बल्कि शेयर अलॉट होने पर पैसे काट लिए जाने की इजाजत देनी होती है. इस स्थिति में आपके अकाउंट से पैसे नहीं कटते हैं, बल्कि उसी में ब्लॉक हो जाते हैं. अगर आपको शेयर मिल जाते हैं तो पैसे कट जाते हैं, अगर नहीं मिलते हैं तो वह अनब्लॉक हो जाते हैं और आप उन्हें फिर कहीं भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

11- Listing Date

आईपीओ के तहत शेयरों के अलॉटमेंट के बाद जब कंपनी शेयर बाजार पर लिस्ट होती है तो उसे लिस्टिंग डे कहते हैं. इस दिन अगर कंपनी का शेयर आईपीओ की कीमत से कम पर लिस्ट होता है तो उसे डिस्काउंट लिस्टिंग कहते हैं, जबकि अगर अधिक कीमत पर लिस्ट होता है तो उसे प्रीमियम लिस्टिंग कहते हैं. स्टॉक मार्केट पर शेयर की कीमत उसकी डिमांड के हिसाब से तय होती है.

12- Non-Institutional Investor (NII)

आईपीओ के तहत जो शेयर जारी किए जाते हैं, उनमें अलग-अलग कैटेगरी के लिए कोटा पहले से ही तय होता है. इनमें से ही एक होते हैं गैर-संस्थागत निवेशक यानी एनआईआई. इनमें भारत के लोगों का समूह, एनआरआई, हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली, कंपनियां, कॉर्पोरेट बॉडी, ट्रस्ट, साइंस इंस्टीट्यूशन, सोसाएटी आदि आते हैं. अगर कोई निवेशक 2 लाख रुपये से अधिक निवेश करना चाहता है तो वह एनआईआई की कैटेगरी में आएगा.

13- Retail Individual Investors 

इसके तहत भारत के लोग, एनआरआई और हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली आती हैं. एनआईआई के तहत ये सभी 2 लाख से अधिक निवेश करते हैं, लेकिन रिटेल निवेशक की कैटेगरी में अधिकतम 2 लाख रुपये तक का ही निवेश किया जा सकता है.

14- Qualified Institutional Buyers

इस कैटेगरी के तहत म्यूचुअल फंड कंपनियां, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक, बैंक आदि आते हैं. बता दें कि इस कैटेगरी के तहत एक बार निवेश करने के बाद अलॉटमेंट तक वह अपनी बिड को कैंसिल नहीं कर सकते हैं. किसी भी आईपीओ में इनका निवेश सबसे ज्यादा होता है. इनके निवेश को लेकर कोई लिमिट नहीं होती है.

15- Anchor Investor

एंकर निवेशक एक तरह से क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर की ही एक सब-कैटेगरी होते हैं. यह किसी आईपीओ में 10 करोड़ या उससे अधिक की बोली लगाते हैं. इनके लिए बोली लगाने का दिन आईपीओ खुलने की तारीख से एक दिन पहले होता है.

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