What is Arbitrage Funds: शेयर बाजार में रिकॉर्ड हाई बनाने के बाद इस महीने उतार चढ़ाव देखने को मिल रहा है. एक्सपर्ट का मानना है कि बाजार का वैल्युएशन हाई है और यह वोलैटिलिटी आगे भी जारी रह सकती है. ऐसे में बहुत से निवेशक खासतौस से जो बाजार का जेखिम नहीं लेना चाहते हैं, सीधे इक्विटी में पैसे लगाने से बच रहे हैं. ऐसे में अगर आप भी बाजार के उठा पठक में बिना रिस्क लिए सुरक्षित रिटर्न चाहते हैं तो म्यूचुअल फंड की खास कटेगिरी आर्बिट्राज फंड बेहतर विकल्प हो सकता है. ये बाजार के उतार चढ़ाव से आपके सुरक्षा दे सकते हैं. आर्बिट्राज फंड भी इक्विटी ओरिएंटेड फंड हैं, लेकिन इसे सुरक्षित निवेश की कटेगिरी माना जाता है. 

किन निवेशकों के लिए बेहतर

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बीपीएन फिनकैप के डायरेक्टर एके निगम का कहना है कि बाजार में लगातार उतार-चढ़ाव होने पर आर्बिट्राज फंड उनके लिए बेहतर है जे ज्यादा जोखिम से बचना चाहते हैं. वे अपने सरप्लस फंड को यहां निवेश कर सकते हैं. आर्बिट्राज फंड उन निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प है, जिनका निवेश का लक्ष्य 3 साल से 5 साल का है. ये फंड एग्जिट लोड चार्ज करते हैं, इसलिए इसमें निवेश करते समय शॉर्ट टर्म का टारगेट नहीं रखना चाहिए. इस फंड का रिटर्न हाई वोलैटिलिटी के एग्जीस्टेंस पर ज्यादा डिपेंड होता है, इसलिए यहां सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIPs) की बजाए एकमुश्त निवेश चुनना बेहतर विकल्प है. हालांकि बाजार में अगर वोलैटिलिटी न हो तो सेम इन्वेस्टमेंट होरीजॉन पर लिक्विड फंड बेहतर रिटर्न दे सकते हैं.

रिटर्न पर टैक्स 

आर्बिट्राज फंड पर टैक्स इक्विटी फंड्स की तरह ही लगता है. एक साल से कम समय तक ही निवेश रखते हैं तो शॉर्ट टर्म कैपिटन गेन के हिसाब से टैक्स देना हेगा, जो 15 फीसदी है. वहीं अगर इस फंड में 1 साल से अधिक समय तक निवेश बनाए रखते हैं तो यह लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (एलटीसीजी) की कटेगिरी में आएगा. यहां एक वित्त वर्ष में 1 लाख रुपये से अधिक मुनाफा हेने पर बिना इंडेक्सेशन के फायदे के 10 फीसदी की दर से टैक्स चुकाना होगा. लेकिन 1 लाख से कम मुनाफे पर टैक्स नहीं देना होता है. 

क्या होता है आर्बिट्राज फंड

आर्बिट्राज फंड स्पॉट और फ्यूचर मार्केट में इक्विटी शेयरों के भाव में अंतर पर काम करता है. ये कैश मार्केट और डेरिवेटिव मार्केट में शेयरों के भाव में अंतर का फायदा उठाने के लिए अपने फंड का इस्तेमाल करता है. म्यूचुअल फंडों की ये स्कीमें कैश सेग्मेंट में शेयरों को खरीदती हैं और साथ-साथ उसी कंपनी के डेरिवेटिव सेग्मेंट में फ्यूचर बेचती हैं. कॉस्ट प्राइस और सेलिंग प्राइस के बीच का अंतर ही निवेश पर रिटर्न है. यही वजह है कि शेयर बाजार में ज्यादा उतार-चढ़ाव के दौर में इस फंड का प्रदर्शन बेहतर रहता है. फंड मैनेजर इक्विटी में निवेश करने के बाद डेरिवेटिव मार्केट में उस सौदे को हेज करता है. इससे कैश मार्केट में खरीदे गए शेयर पर जोखिम काफी हद तक घट जाता है.