हाल ही में पीएम मोदी ने मन की बात में एक फिटनेस स्टार्टअप (Startup) का जिक्र किया, जिसका नाम है 'तगड़ा रहो' (Tagda Raho). यह स्टार्टअप गदा और मुग्दर के जरिए फिटनेस ट्रेनिंग कराता है. इस स्टार्टअप के मन की बात में चुने जाने के पीछे की सबसे बड़ी वजह भी रही है कि यह गदा और मुग्दर का इस्तेमाल करता है, जो प्राचीन काल में भारत में कसरत के लिए इस्तेमाल किए जाते थे.

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इस स्टार्टअप की शुरुआत अगस्त 2020 में एक प्रोजेक्ट की तरह हुई. हालांकि, इसे 11 अगस्त 2021 को कंपनी के तौर पर रजिस्टर कराया गया. 'तगड़ा रहो' की शुरुआत बेंगलुरु में रहने वाले 36 साल के रिषभ मल्होत्रा ने की थी. रिषभ ने बेंगलुरु से बिजनेस मैनेजमेंट किया हुआ है और साथ ही 'स्टेंथिंग कंडिशनिंग' की पढ़ाई भी की है. 'तगड़ा रहो' शुरू करने के कुछ समय बाद विशाल वाही भी उनके साथ को-फाउंडर की तरह जुड़ गए. 

आर्मी से आया 'तगड़ा रहो' नाम?

रिषभ के पिता सेना में थे और वहीं से आया है इस स्टार्टअप का नाम. असम रेजिमेंट में जब जवान एक दूसरे से मिलते हैं तो वह एक दूसरे का अभिवादन 'तगड़ा रहो' कह कर करते हैं. कंपनी का बिजनेस ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यम से चल रहा है. मौजूदा वक्त में कंपनी के 3 सेंटर हैं, जो बेंगलुरू में हैं. वहीं कंपनी अपना एक और सेंटर पुणे में शुरू करने जा रही है, जो इसी महीने 15 जनवरी से शुरू हो जाएगा.

इनके सेंटर में कोई मशीन नहीं होती है. यह सब कुछ मूवमेंट के साथ सिखाते हैं. इंफ्रास्ट्रक्चर पर बहुत कम खर्च होता है. इसे सिखाने वाली कोई संस्था भी नहीं है. ऐसे में इसे बड़ा बनाने के लिए रिषभ ने खुद ही मूवमेंट बनाए. उनके पहले क्लाइंट कोच और ट्रेनर थे, जबकि अब फिजियोथेरेपिस्ट, डॉक्टर और ऑर्थोपेडिक खुद को 'तगड़ा रहो' से सर्टिफाई करा रहे हैं और स्टार्टअप के मूवमेंट प्रोटोकॉल के जरिए कई मरीजों की मदद कर पा रहे हैं.

कैसे आया 'तगड़ा रहो' का आइडिया?

इस स्टार्टअप का आइडिया एक निजी हादसे के चलते आया. एक चोट की वजह से रिषभ के बाएं हाथ में पैरालिसिस जैसी स्थिति हो गई थी. इस स्थिति को ब्रेकल न्यूराइटिस कहते हैं, जो बहुत ही दुर्लभ होता है. इसका इलाज कराने के लिए उन्होंने काफी सारी चीजें ट्राई कीं. कई अस्पतालों में गए, लेकिन वह सही नहीं हो पाया. इतना ही नहीं, उनकी फिजियोथेरेपी भी कई महीनों तक चली, लेकिन उससे भी यह सही नहीं हुआ. रिषभ को साइकिलिंग का बहुत शौक है और इसी के चलते वह कश्मीर से कन्याकुमारी तक साइकिल से भारत भ्रमण पर निकले थे. इसी दौरान उन्हें हाथ में ये चोट लगी थी.

शुरुआत में रिषभ को लगा कि यह कोई मामूली चोट है, लेकिन बाद में पता चला यह एक दुर्लभ तरीके की कंडीशन है, जो बहुत ही कम लोगों को होती है. जब डॉक्टरों को दिखाया तो उन्होंने बताया कि इसका सिर्फ एक ही तरीका है कि ऑपरेशन करना होगा और उसके सफल होने के लगभग 30 फीसदी चांस हैं. इसके बाद रिषभ ने सोचा कि सर्जरी नहीं करानी है और उसका इलाज ढूंढने लगे. रिषभ जब कसरत से जुड़ी हुई 'स्ट्रेंथिंग कंडिशनिंग' की पढ़ाई कर रहे थे, उसमें बार-बार उन्हें पारंपरिक व्यायाम की तरफ ध्यान खींचने वाली विधि दिख रही थी.

रिषभ ने पढ़ाई के दौरान गदा और मुग्दर के बारे में समझा. इसमें सारा का सारा भार एक तरफ होता है, ना कि जिम जैसा, जिसमें भार बैलेंस में रहता है. गदा और मुग्दर में सारा वजन आपके खिलाफ काम कर रहा होता है. रिषभ को लगा कि इसका इस्तेमाल करते हुए दूसरे हाथ की मदद से बाएं हाथ को भी इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे उसमें धीरे-धीरे मूवमेंट शुरू हो सकता है. जब रिषभ ने गदा और मुग्दर ढूंढना शुरू किया तो वह कहीं मिले ही नहीं. इसके बाद उन्होंने खुद से लिए गदा और मुग्दर बनवाया और सोचते रहे कि आखिर ये आगे क्यों नहीं बढ़ा.

रिषभ ने पाया कि जिस तरह वक्त के साथ-साथ योग में कुछ बदलाव किए गए और उसे आधुनिक बनाया गया, जिसके चलते पूरी दुनिया ने उसे अपना लिया, वैसा गदा या मुग्दर के साथ नहीं हुआ. उसमें ना आप वजन बढ़ा-घटा सकते हैं ना ही ग्रिप में कोई बदलाव कर सकते हैं. इसके बाद रिषभ ने डिजाइन में बदलाव किए. जो इक्विपमेंट्स उन्होंने अपने लिए बनवाए, उसमें वजन बढ़ाने-घटाने और ग्रिप को कम-ज्यादा करने के हिसाब से कई टूल बनवाए. उसके बाद उन्होंने जब इसे इंस्टाग्राम पर डाला तो वहां लोगों का रिस्पॉन्स बहुत अच्छा था. तब रिषभ ने इसे एक प्रोजेक्ट की तरह शुरू करने के बारे में सोचा.

शुरुआत में भारत सरकार की तरफ से इस डिजाइन का पेटेंट लिया गया और उसके बाद प्रोडक्शन को बढ़ाया गया. शुरू में ये सिर्फ इक्विपमेंट्स से जुड़ा था, इससे जुड़े मूवमेंट तो रिषभ ने सिर्फ अपने लिए तैयार किए थे, ताकि वह खुद कसरत कर सकें. हालांकि, बाद में यह भी डिमांड आने लगी की इसे इस्तेमाल करने के तरीके और ट्रेनिंग भी दी जाए. तो रिषभ को अहसास हुआ कि इसकी भी जरूरत है और फिर उन्होंने ट्रेनिंग सेंटर भी शुरू किए. उन्होंने कुछ मूवमेंट बनाए, जो आम लोगों की जिंदगी में काम आएं. उसके बाद देखते ही देखते उन्होंने 50 से भी ज्यादा मूवमेंट बना दिए. भारतीय क्रिकेटर, फुटबॉल कोच, प्रो कबड्डी लीग एथलीट सभी उनके पास आए और बोले कि उन्होंने इससे बेहतर ट्रेनिंग कहीं नहीं देखी. महिलाएं भी तेजी से उनके सेंटर में आने लगीं हैं.

धोनी ने भी किया है निवेश

क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी ने भी इसमें निवेश किया हुआ है. उन्होंने खुद भी इस स्टार्टअप के कई प्रोडक्ट इस्तेमाल किए हैं. इसके बाद उन्हें भी लगा कि यह तो बहुत अच्छा है. महेंद्र सिंह धोनी यूं ही कहीं निवेश नहीं करते हैं, यही वजह है कि उन्होंने इस स्टार्टअप के प्रोडक्ट्स को भी इस्तेमाल कर के देखा, फिर निवेश किया. वहीं ये प्रोडक्ट भारत की परंपरा को दिखाते हैं, इसलिए भी धोनी ने इसमें निवेश किया, क्योंकि वह देश को बहुत प्यार करते हैं और हमेशा इसे आगे बढ़ते देखना चाहते हैं.  वह चाहते हैं कि भारत के ऐसे बिजनेस की मदद हो, इसलिए भी उन्होंने इसमें निवेश किया है. धोनी को ये बात बहुत अच्छी लगी कि यह स्टार्टअप एक पुराने वर्कआउट को नए फॉर्म में ला रहा है.

क्या है कंपनी का बिजनेस मॉडल?

मौजूदा वक्त में कंपनी 3 तरीकों से पैसे कमाती है. पहला तरीका है गदा और मुग्दर जैसे प्रोडक्ट बेचकर. कंपनी के पास अभी 15 से भी ज्यादा एसकेयू हैं. दूसरा तरीका है ऑफलाइन ट्रेनिंग देना, जिसके लिए वह लोगों से एक फीस चार्ज करते हैं. वहीं इस स्टार्टअप का तीसरा बिजनेस मॉडल है ट्रेनर सर्टिफिकेशन. यह स्टार्टअप ट्रेनिंग का सर्टिफिकेट मुहैया कराता है, जिसके लिए एक फीस चार्ज की जाती है. 

चुनौतियां भी कम नहीं

रिषभ बताते हैं कि अभी लोगों का माइंडसेट सबसे बड़ी चुनौती है. लोगों को लगता है कि यह तो मुफ्त में मिलना चाहिए. एक चुनौती ये है कि लोग इसे देखकर घबरा जाते हैं. वह सोचते हैं कि मैं इसे कर भी सकता हूं या नहीं? महेंद्र सिंह धोनी के साथ जुड़ने से काफी मदद मिली और क्रेडिबिलिटी मिली है. साथ ही लोगों को अवेयर करने में भी मदद मिली है. वहीं ऑफलाइन सेंटर के लिए स्पेस चाहिए होता है. रियल एस्टेट में रेंटल कहीं भी सस्ते नहीं हैं. ऐसे में आपको इस पर काफी पैसा खर्च करना पड़ रहा है. 

फंडिंग और फ्यूचर प्लान

रिषभ बताते हैं कि अभी तक यह स्टार्टअप पूरी तरह से बूटस्ट्रैप्ड था, लेकिन धोनी ने इसमें पहली बार निवेश किया है. हालांकि, रिषभ ने इस पर कोई कमेंट नहीं किया कि धोनी ने कितने पैसे डाले हैं. वहीं फ्यूचर को लेकर रिषभ कहते हैं कि जिस तरह योग हर घर में है, उसी तरह वह इस कसरत को भी हर घर में ले जाना है. रिषभ इसे उसी मुकाम पर ले जाना चाहते हैं, जहां ये पहले के जमाने में हुआ करता था. वह इसे पहला फिटनेस मूवमेंट बनना चाहते हैं, जो भारत का सबसे बड़ा मूवमेंट बन जाए. वह चाहते हैं कि यह पूरी दुनिया के हर कोने में हो. जब हम दुनिया भर के फिटनेस ब्रांड को बाहें फैला कर स्वीकार कर रहे हैं तो वह भी इसे स्वीकार करेंगे.

'तगड़ा रहो'फ्रेंचाइजी भी दे रहा है

इस स्टार्टअप के तीन मॉडल हैं, आउटडोर, इनडोर और सेमी आउटडोर. बेंगलुरु में ये तीनों मॉडल हैं और जो भी कंपनी की फ्रेंचाइजी लेना चाहता है वह बेंगलुरु में उनके इन मॉडल को देखकर तय कर सकता है कि उसे कौन सी फ्रेंचाइजी लेनी है. हालांकि, आपको पहले स्टार्टअप से बात करनी होगी और जानना होगा कि आपको उसकी फ्रेंचाइजी मिल भी सकती है या नहीं. कंपनी की फ्रेंचाइजी लेने में आपको 5 लाख रुपये तो फ्रेंचाइज फीस ही चुकानी होगी. उसके अलावा स्पेस खरीदने का खर्च, इक्विपमेंट का खर्च और सेटअप का पूरा खर्चा भी उठाना पड़ेगा. रिषभ बताते हैं कि एक शख्स को तगड़ा रहो की फ्रेंचाइजी करीब 30-50 लाख रुपये में मिल जाती है. वह कहते हैं कि इसे लेने वाला हर साल औसतन 40-45 फीसदी का रिटर्न कमा सकता है. यानी दो से ढाई साल में आपकी लागत निकल आएगी.