अगर आप शार्क टैंक इंडिया (Shark Tank India) देखते हैं तो ये बात समझते ही होंगे कि हर निवेशक ऐसे स्टार्टअप (Startup) में पैसे लगाना पसंद करता है, जो मोटी कमाई करता हो और मुनाफा कमाता हो. शार्क टैंक इंडिया के तीसरे सीजन में एक ऐसा स्टार्टअप आया भी था, जिसकी कमाई सुनकर सारे जज के होश उड़ गए. वहीं ये स्टार्टअप मुनाफा भी कमा रहा था. इसके बावजूद किसी भी शार्क ने इस स्टार्टअप में पैसे नहीं लगाए. अब सवाल ये उठता है कि आखिर गड़बड़ कहां हो गई, जिसकी वजह से उन्हें फंडिंग (Startup Funding) नहीं मिल पाई? 

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इस स्टार्टअप का नाम है बाक्का बुक्की (Bacca Bucci), जिसे साल 2014 में नटवर अग्रवाल और अनुज नेवेटिया ने शुरू किया था. दोनों ही को-फाउंडर्स ने सीए की पढ़ाई की है. उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फुटवियर प्रोड्यूसर है, लेकिन यहां पर अधिकतर मार्केट पर इंटरनेशनल ब्रांड्स का कब्जा है. जूते की कीमत की बात करें तो 1000 रुपये से ज्यादा और 3000 रुपये से कम के मार्केट में कोई भी अच्छा ब्रांड नहीं है. ऐसे में जेन जी को फोकस करते हुए इस फास्ट फुटवियर ब्रांड की शुरुआत की गई. फाउंडर्स का मानना है कि 2025 तक 1000-3000 रुपये के बीच के जूते खरीदने वालों का मार्केट 18 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच सकता है.

2014 के दौरान यह कंपनी शुरू करने से पहले दोनों ही अच्छी कंपनियों में काम कर रहे थे. उस वक्त उन्होंने पाया कि वह जिन जूतों को खरीदना चाह रहे थे, वह बहुत महंगे थे. इसके बाद उन्होंने बेहतर डिजाइन वाले ऐसे जूत लॉन्च किए, जो दिखने में शानदार हों और बड़े-बड़े ब्रांड को टक्कर दें, लेकिन कीमत कम हो. इसी के साथ उन्होंने बाक्का बुक्की की शुरुआत की. उसके बाद कॉम्पटीशन से टक्कर लेने के लिए इन्होंने बहुत सारी डिजाइन के जूते बनाने शुरू किए. 

बेच चुके हैं 30 लाख से ज्यादा जूते

इस स्टार्टअप के तहत तीन कैटेगरी में जूते बेचे जाते हैं. पहली है स्नीकर्स, जिसे बाक्का बुक्की स्ट्रीट नाम दिया है. दूसरी है बूट्स की कैटेगरी, जिसे बाक्का बुक्की एक्टिव कहते हैं. वहीं तीसरी कैटेगरी है स्पोर्ट्स की, जिसे बाक्का बुक्की एडवेंचर नाम दिया गया है. अब तक ये स्टार्टअप 30 लाख से भी ज्यादा जूते बेच चुका है. अब तो इस स्टार्टअप ने अक्टूबर 2023 से ही टीशर्ट की कैटेगरी में भी कदम रख दिया है. कोविड से पहले तक ये ब्रांड सिर्फ ब्लैक और ब्राउन जूते बेचता था. 

80 करोड़ रुपये कमाएंगे इस साल!

इस स्टार्टअप के जूतों को देखकर हर शार्क ने तारीफ की, लेकिन हर किसी को उनकी वैल्युएशन खटक रही थी. स्टार्टअप फाउंडर्स ने 250 करोड़ रुपये के वैल्युएशन पर 1 फीसदी के बदले 2.5 करोड़ रुपये मांगे थे. इस स्टार्टअप ने 2020-21 में 19 करोड़, 2021-22 में 29 करोड़ और 2022-23 में 47 करोड़ रुपये की कमाई की है. वहीं इस साल यानी 2023-24 में उन्हें उम्मीद है कि कंपनी का रेवेन्यू 75-80 करोड़ रुपये रहेगा. कंपनी के रेवेन्यू में हर साल 50-60 फीसदी की ग्रोथ देखी जा रही है. कंपनी बूटस्ट्रैप्ड है और इसका 7-8 फीसदी एबिटडा है. इतना सब होने के बावजूद किसी भी शार्क ने पैसे नहीं लगाए. आइए समझते हैं ऐसा क्यों हुआ.

'कोई यूएसपी नहीं है, ब्रांडिंग और कल्चर बनाना जरूरी'

सबसे पहले नमिता थापर ने कहा कि इस बिजनेस में उन्हें कोई यूएसपी नहीं दिख रही है. एक बिजनेस में ब्रांडिंग और कल्चर बनाना बहुत जरूरी है. उन्हें इस कंपनी का विजन क्लीयर नहीं लगा. ऐसे में इन चीजों पर ध्यान देने का सुझाव देते हुए नमिता इस डील से बाहर हो गईं.

'ग्रॉस प्रॉफिट कम है, ब्रांड पर पैसे नहीं खर्च कर पाएंगे'

इस बिजनेस पर अपनी राय देते हुए विनीता ने कहा कि अमेजन में फैशन बिजनेस बनाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि वहां पर सारा वैल्यू फॉर मनी वाला ऑडिएंस है. यही वजह है कि बड़े ब्रांड अमेजन में इन्वेस्ट नहीं करते, फैशन डिस्कवरी के लिए ये जगह अच्छी नहीं है.  वह बोलीं कि आपका बिजनेस वैल्यू फॉर मनी पोजिशन पर आ रहा है, जिससे ब्रांडिंग नहीं बन पाती. उन्होंने कहा था कि ग्रॉस प्रॉफिट असल में सिर्फ 23 फीसदी ही है. विनीता के अनुसार जिन भी स्टार्टअप का ग्रॉस प्रॉफिट 50-60 फीसदी नहीं होता है, उनके लिए ब्रांडिंग पर पैसे खर्च करना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में एक निवेशक की तरह यह ठीक नहीं लग रहा, इसलिए वह भी डील से आउट हो गईं.

'आप लोगों की मेंटेलिटी ट्रेडिंग वाली है'

अमन गुप्ता ने कहा कि जूते अच्छे लगे, प्राइस अच्छा है, रिटर्न अच्छा है और लोग ढूंढ भी रहे हैं ऐसा कुछ, लेकिन क्या वो ब्रांड बाक्का बुक्की बन पाएगा या नहीं, ये समझ नहीं आ रहा. अमन ने कहा कि आप लोगों की मेंटेलिटी ट्रेडिंग वाली है, जबकि वह इन फाउंडर्स से कल्चर और ब्रांड की बातें सुनना चाह रहे थे.

'डिजाइन लैंग्वेज खराब है, इसके बिना नहीं बनेगा ब्रांड'

दीपिंदर गोयल बोले कि जो ब्रांड्स को चुनते हैं, दिखावे के लिए ब्रांड पहनते हैं, वह सस्ते के चक्कर में नहीं पड़ते हैं. पसंद और क्लास तमाम तरह की मीट्रिक से ज्यादा जरूरी होता है. कंपनी के लोगो में एरर भी था और वह भी उन्हें पसंद नहीं आया. दीपिंदर ने ब्रांड की डिजाइन लैंग्वेज पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसे बेहतर किए बिना ब्रांड नहीं बन सकता.

'नंबर अच्छे हैं, लेकिन इतनी बड़ी वैल्युएशन नहीं दे सकता'

अनुपम मित्तल ने भी ब्रांडिंग को ठीक नहीं कहा. हालांकि, उन्होंने माना कि कंपनी के नंबर बहुत अच्छे हैं. इसके बावजूद उन्हें कंपनी की वैल्युएशन बहुत ज्यादा लगी और वह डील से बाहर हो गए. जाते-जाते उन्होंने ऑफलाइन स्टोर खोलने का सुझाव दिया, ताकि ग्राहकों का फीडबैक मिले और एक बड़ा बिजनेस बनाया जा सके.