भारत में लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के लैप्स हो जाने यानी बीच में ही बंद हो जाने की दर दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले बहुत अधिक है. अगर 5 साल के समय को मानक बनाकर देखें तो हैंडबुक ऑफ इंडियन इंश्योरेंस स्टैटिस्क्सि के अनुसार इस दौरान पॉलिसियों के चालू रहने की दर 28 प्रतिशत है. इसका मतलब हुआ कि 5 साल बाद जीवन बीमा कंपनियां अपनी 28 प्रतिशत से भी कम पॉलिसियां सक्रिय रख पाती हैं.

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इसलिए जरूरी है कि बीमा पॉलिसी लेने से पहले नियम और शर्तों को अच्छी तरह समझ लें. ज्यादातर बीमा पॉलिसी इसलिए लैप्स होती हैं क्योंकि लोग नियम शर्तों और पॉलिसी से मिलने वाले फायदों को ठीक से समझे बिना ही पॉलिसी ले लेते हैं. कभी भी बीमा एजेंट के बदाव में आकर पॉलिसी न लें, बल्कि अपनी जरूरत को अच्छी तरह समझकर उसके हिसाब से ही पॉलिसी खरीदें.

समय पर प्रीमियम देने के लिए नियमित बचत करते रहें. साथ ही आपके पास इमरजेंसी फंड भी होना चाहिए, ताकि नौकरी छूटने जैसी स्थिति में उस फंड से आप प्रीमियम का भुगतान कर सकें और पॉलिसी बंद न हो.

पॉलिसी बंद करने के नुकसान

अगर आपने बीमा पॉलिसी बीच में बंद कर दी है, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान ये है कि आपको मिलने वाला बीमा कवर खत्म हो जाता है. यानी किसी अनहोनी की स्थिति में मृत्यु होने पर आपको बीमा का फायदा नहीं मिलेगा. इसके अलावा अगर आप पॉलिसी 3 साल या कम समय के लिए ही चलाते हैं, तो आपको कोई मैच्योरिटी बेनिफिट नहीं मिलेगा. हालांकि यूनिट लिंक्ड पॉलिसी में थोड़ी राहत दी जाती है. यूलिप को छोड़कर बाकी पॉलिसी बीच में सरेंडर करने पर भारी पैनाल्टी देनी पड़ती है.

क्या है वैकल्पिक साधन

अगर आपको पास आय का भरोसेमंद जरिया नहीं है, तो आपको ट्रेडिशनल प्लान लेने की जगह टर्म प्लान लेना चाहिए. इसमें बीमा कवर अधिक होता है, जबकि प्रीमियम बहुत कम देनी पड़ती है. ऐसे में पॉलिसी लैप्स होने का डर खत्म हो जाता है. अपनी बचत का बाकी पैसा आप पीपीएफ, किसान विकास पत्र या बीमा कंपनी के सिंगल प्रीमियम प्लान में लगा सकते हैं. इस तरह अगर किसी साल आपकी आमदनी कम होती है तो भी पिछली बचत पर इसका कोई असर नहीं होगा.