Lumpy Virus Vaccine: कई राज्यों में मवेशियों में लम्पी स्किन रोग (Lumpy Skin disease) तेजी से फैल रहा है. ऐसे में अब इसके उपचार की दिशा में बड़ी सफलता मिली है. देश के पशुधन के लिए बड़ी राहत प्रदान करते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पशुओं को लम्पी स्किन रोग से बचाव हेतु स्वदेशी वैक्सीन (लम्पी- प्रो वैक-इंड/ Lumpi-ProVacInd) लॉन्च की. यह वैक्सीन राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार (हरियाणा) ने भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर (बरेली) के सहयोग से बनाई गई है. तोमर ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICRA) के तहत यह वैक्सीन विकसित करके एक और नया आयाम स्थापित किया गया है. 2019 में जब से यह बीमारी भारत में आई, तब से ही संस्थान वैक्सीन विकसित करने में जुटे थे.

Lumpy स्किन रोग से हजारों मवेशियों की मौत

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Lumpy स्किन रोग की वजह से छह राज्यों में कई मवेशियों की मौत हो गई है. 8 अगस्त तक, राजस्थान में 2,111 मवेशियों की मौत हुई है, इसके बाद गुजरात में 1,679, पंजाब में 672, हिमाचल प्रदेश में 38, अंडमान और निकोबार में 29 और उत्तराखंड में 26 मवेशियों की इस रोग से मौत हुई हैं.

जानवरों को बचाना बड़ी जिम्मेदारी

तोमर ने कहा, जानवरों को बचाना हमारी बड़ी जिम्मेदारी है. उन्होंने इस टीके की उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया ताकि यह जल्द से जल्द जमीनी स्तर तक पहुंचे और 30 करोड़ पशुओं का टीकाकरण किया जा सके. उन्होंने कहा कि पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कोरोना से बचाव के लिए हमारे वैज्ञानिकों ने वैक्सीन विकसित की, जिससे पूरे देश के साथ ही अन्य देशों को काफी लाभ हुआ.

 

इस दौरान, रूपाला ने इस स्वदेशी टीके के विकास के लिए आईसीएआर के वैज्ञानिकों की सराहना की. उन्होंने कहा कि इससे LSD को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा, वैज्ञानिक इस टीके को विकसित करने का प्रयास कर रहे थे क्योंकि एलएसडी रोग पहली बार 2019 में ओडिशा में सामने आया था. आज, तकनीक शुरू हो गई है और अब हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे कि यह टीका उन किसानों तक कैसे पहुंचे जिनके पास मवेशी हैं. रूपाला ने कहा कि यह एक बहुत ही उत्साहजनक घटनाक्रम है क्योंकि एलएसडी का प्रसार एक गंभीर मुद्दा बन गया है.

2.5 लाख डोज का हो सकता है प्रोडक्शन

आईसीएआर के उप महानिदेशक (पशु विज्ञान) बी एन त्रिपाठी ने कहा कि दोनों संस्थान प्रति माह इस दवा की 2.5 लाख खुराक का उत्पादन कर सकते हैं. उन्होंने कहा, प्रति खुराक की लागत 1-2 रुपये है. उन्होंने कहा कि सजातीय जीवित एलएसडी टीकों से प्रेरित प्रतिरक्षा क्षमता आमतौर पर एक वर्ष की न्यूनतम अवधि के लिए बनी रहती है.