Trade Growth: विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने अगले साल व्यापार में महज 1 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान जताया है. इसका कारण मौजूदा संकट और चुनौतियों के कारण ऊर्जा की कीमतों और ब्याज दरों में बढ़ोतरी तथा चीन में कोविड-19 महामारी के असर से मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को लेकर अनिश्चितता समेत बाजार पर पड़ने वाला असर है. डब्ल्यूटीओ ने बुधवार को कहा कि विभिन्न देशों के बीच इस साल भेजे जाने वाले सामान की मात्रा में 3.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है. ये अप्रैल में जताए गए 3 प्रतिशत के अनुमान से अधिक है. अगले साल व्यापार मात्रा केवल 1 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो पहले जताए गए 3.4 प्रतिशत से काफी कम है.

रूस-यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग की वजह से व्यापार पर पड़ रहा बुरा असर

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डब्ल्यूटीओ की महानिदेशक नगोजी आकोन्जो इवेला ने कहा, ‘‘निश्चित रूप से अगले साल जोखिम कम होंगे.’’ विश्व व्यापार संगठन ने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध से ऊर्जा के ऊंचे दाम समेत अन्य कारण व्यापार को प्रभावित कर रहे हैं. युद्ध के कारण यूरोपीय संघ के सदस्य देशों समेत कई देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे ऊर्जा के दाम चढ़े हैं. यूरोपीय संघ रूसी तेल और गैस का सबसे बड़ा ग्राहक है.

चीन में अभी कहर बरपा रहा कोरोना वायरस

इवेला ने कहा, ‘‘आज, वैश्विक अर्थव्यवस्था विभिन्न संकटों का सामना कर रही है. अमेरिका सहित दुनिया के विभिन्न देशों में मौद्रिक नीति को कड़ा किए जाने का बढ़ोतरी पर बुरा असर पड़ रहा है. यूरोप में, ऊर्जा की ऊंची कीमतें घरों और कंपनियों के खर्च को प्रभावित कर रही हैं. चीन में कोविड-19 महामारी अब भी बनी हुई है. इससे उत्पादन और सामान्य आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं. कम आय वाले विकासशील देशों को विशेष रूप से खाद्य संकट और कर्ज समस्या बढ़ने को लेकर गंभीर जोखिम है.’’

डब्ल्यूटीओ ने कहा कि हालांकि कोविड-19 महामारी की शुरुआती दिनों के मुकाबले वैश्विक व्यापार में तेजी आई है. लेकिन अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व और अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों के ब्याज दर बढ़ाने से आवास, वाहन जैसे क्षेत्रों में खरीद पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. साथ ही बॉन्ड कीमतें भी प्रभावित हुई हैं.

केंद्रीय बैंक महंगाई के आधार पर करते हैं तय करते हैं दरें

व्यापार निकाय ने कहा कि लेकिन अंतिम वस्तुओं पर ‘परचेजिंग मैनेजर’ के आंकड़े और कच्चे माल के दाम के सूचकांक संकेत देते हैं कि मुद्रास्फीतिक दबाव संभवत: उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है और अब इसमें कमी आनी चाहिए. महंगाई के आधार पर केंद्रीय बैंक नीतिगत दर के बारे में निर्णय करते हैं.