बीते हफ्ते देश के तेल-तिलहन बाजारों में सरसों तेल (Mustard Oil) तिलहन कीमतों में आये सुधार को छोड़कर बाकी लगभग सभी तेल तिलहन कीमतों में गिरावट का रुख देखने को मिला. मूंगफली, सोयाबीन (Soybean) और बिनौला की नयी फसलों के धीरे-धीरे मंडियों में आना शुरू होने से तेल तिलहन कीमतों पर दवाब के बीच इनमें गिरावट आई. विदेशों में बाजार मंदा होने से सीपीओ (CPO) और पामोलीन तेल (Palmolein Oil) के भाव में भी गिरावट रही.

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बाजार सूत्रों ने कहा कि वैसे अब सरसों और मूंगफली तेल-तिलहन की बाजार हैसियत बाकी तेलों से कुछ अलग हो गयी है. जैसे कि मौजूदा समय में इन दोनों ही तेल तिलहनों के दाम आयातित तेलों से काफी महंगा बैठ रहे हैं और सस्ते आयातित तेलों के सामने मंडियों में ये तेल खप नहीं रहे हैं.

त्योहारी मांग निकले से सरसों की कीमतों में सुधार

इसके बावजूद किसान इन तिलहनों की सस्ते में बिकवाली करने से बच रहे हैं क्योंकि इन तेलों का कोई विकल्प नहीं है. मंडियों में कम आवक और त्योहारी मांग निकलने से सरसों तेल-तिलहन कीमतों में सुधार दर्ज हुआ. वैसे बाजार में सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी अपने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम दाम पर बिक रही है.

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पामोलीन तेल कीमतों में भी गिरावट

सूत्रों ने कहा कि मंडियों में मूंगफली, सोयाबीन और बिनौला की आवक धीरे-धीरे शुरू होने के बीच बीते हफ्ते मूंगफली और सोयाबीन तेल-तिलहन के साथ साथ बिनौला तेल कीमतों में गिरावट देखने को मिली. समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशों में सोयाबीन डीगम तेल का दाम अपने पिछले हफ्ते के 1,000-1,010 डॉलर से घटकर 960-970 डॉलर प्रति टन रह गया क्योंकि खाद्य तेलों के सबसे बड़े आयातक देश के आयात की मांग पहले के मुकाबले कम रही. इसी प्रकार समीक्षाधीन हफ्ते में पाम और पामोलीन तेल की मांग प्रभावित होने से कच्चा पामतेल (CPO) और पामोलीन तेल कीमतों में भी गिरावट दर्ज हुई.

सूत्रों ने कहा कि जिस तरह देशी तेल तिलहनों का इस बार हाल हुआ है वह तेल तिलहन कारोबार के भविष्य के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है. संभवत: प्रयास यह था कि त्योहारों के समय खाद्यतेलों की कमी ना होने पाये और उपभोक्ताओं को खाद्य तेल सस्ते में मिले जिस वजह से भारी मात्रा में खाद्य तेलों का आयात शुरू हुआ. लेकिन इन सस्ते आयातित तेलों की भरमार की वजह से कहीं अधिक लागत वाली देशी सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी जैसे तिलहन फसलें बाजार में खप नहीं सकीं जिससे किसानों को काफी निराश होना पड़ा.

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इसके अलावा देशी तिलहनों की कम उपलब्धता के कारण तेल मिलें ठीक से नहीं चल पाई और उनकी हालत नाजुक बनी हुई है. सबसे बड़ी बात सस्ते आयात का जो उपभोक्ताओं को सस्ते में खाद्य तेल उपलब्ध कराने का जो मकसद था वह तेल पैकर कंपनियों द्वारा अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) जरूरत से कहीं अधिक तय करने की वजह से ग्राहकों को सस्ते में मिलना तो दूर, बल्कि महंगा बना रहा.

सूत्रों ने कहा कि सस्ते में भारी आयात का विकल्प चुनने के बजाय सरकार को तेल कंपनियों के एमआरपी के ठीक निर्धारण के जरिये उसे दुरुस्त करने की ओर ध्यान देना चाहिए. देश की तेल मिलों के नहीं चलने से खल और डीआयल्ड केक (DOC) के दाम भी बढ़े हैं, जिसके कारण दूध के दाम और खुदरा मुद्रास्फीति में तेजी देखने को मिली है.

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